मुंबई। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी ने ‘तटस्थता की अवधारणा’ को बरकरार रखने के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) सहित चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक कॉलेजियम प्रणाली गठित करने की आज हिमायत की। कुरैशी ने कहा कि चुनाव आयुक्तों को राजनीतिक नियुक्तियों का एक ‘अवांछित टैग’ मिलता है और वक्त आ गया है, जब सीईसी सहित सभी चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियां एक कॉलेजियम प्रणाली के जरिए की जाए। साल 2010 से 2012 तक इस संवैधानिक संस्था के प्रमुख रहे कुरैशी ने कहा कि चुनाव आयोग दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए शानदार काम कर रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन एक चीज मुझे हैरान करती है कि हमारे पास एक ऐसी प्रणाली नहीं है, जहां आयुक्तों को कॉलेजियम प्रणाली के जरिए नियुक्त किया जाए। हमें राजनीतिक नियुक्तियों का एक अवांछित टैग मिला है और यह सुनना वाकई में खराब लगता है।’’ कुरैशी ने उपनगर जुहू में पृथ्वी थियेटर में आयेाजित ‘मुंबई लिटफेस्ट’ में यह बात कहा। उन्होंने कहा कि दुनिया भर में चुनाव आयोगों के प्रमुख और यहां तक कि भारत में केंद्रीय सतर्कता आयोग और केंद्रीय सूचना आयोग जैसी अन्य संस्थाओं के प्रमुखों को एक कॉलेजियम प्रणाली के जरिए चुना जाता है और जहां चयन में सरकार एवं विपक्षी नेता की आमराय होती है। लेकिन दुर्भाग्य से चुनाव आयोग को इस व्यवस्था से वंचित रखा गया है। कुरैशी ने ‘ऐन अनडॉक्युमेंटेड वंडर – द मेकिंग ऑफ द ग्रेट इंडियन इलेक्शन’ पुस्तक लिखी है। वह ‘काउंटिंग एवरी वोट’ विषय पर प्रख्यात पत्रकार एन राम के साथ अपने विचार रख रहे थे। कुरैशी ने प्रत्येक वोट के महत्व का जिक्र करते हुए कांग्रेस नेता सीपी जोशी की हार को याद किया जो 2008 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में एक वोट से हार गए थे। दिलचस्प है कि उनकी पत्नी और बेटी ने कथित तौर पर अपना – अपना वोट नहीं डाला था।
पूर्व आईएएस अधिकारी ने कहा, ‘‘जिस दिन मैंने आयोग का प्रभार संभाला था, मेरे पास दो चुनौतियां थी – पहली चुनौती धन के इस्तेमाल पर रोक लगाना था और दूसरी चुनौती मतदान करने के प्रति मतदाताओं की उदासीनता थी। हम इन चुनौतियों से निपटने में काफी सफल हुए लेकिन अब भी काफी कुछ किए जाने की जरूरत है।’’ कुरैशी ने देश में विचाराधीन कैदियों के मताधिकार का समर्थन किया और कहा कि जेलों के अंदर भी मतदान केंद्र बनाए जाने चाहिए, ताकि वे लोग भी अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर सकें। वरिष्ठ पत्रकार एन राम ने कहा कि चुनाव आयोग काफी अच्छा काम कर रहा लेकिन यह धन के इस्तेमाल और मतदाताओं को रिश्वत दिए जाने पर रोक लगाने में नाकाम रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि इसके लिए चुनाव आयोग ही सिर्फ जिम्मेदार है। मुझे लगता है कि मतदाताओं को दी जाने वाली रिश्वत पर रोक लगाने में आयोग नाकाम रहा है। वोट डालने से पहले हर मतदाता को किसी न किसी तरह से रिश्वत दी जाती है। यह भ्रष्टाचार के चलते होता है।’’ उन्होंने राजनीतिक दलों को मिलने वाले कोष में बेहिसाबी धन का भी मुद्दा उठाया और कहा कि नकद चंदे की सीमा 2,000 रूपया करना एक मजाक है।