-राकेश कुमार शर्मा
जयपुर। देश के सबसे बड़े औद्योगिक गलियारे दिल्ली-मुंबई कॉरिडोर (डीएमआईसीसी) के तहत डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर (डीएफ सीसीआईएल) के राजस्थान में चल रहे प्रोजेकट कार्यों में खराब मास्ट खपाने के मामले में अफसर लीपापोती में लगे हुए हैं। विद्युत लाइनों के लिए लगने वाले मास्ट (खंबे) टेस्टिंग में फेल होने के बाद भी इन्हें खपाने में लगे हुए हैं। करोड़ों रुपए के फेल मास्टों को खपाने के लिए रेलवे, डीएमआईसीसी, डीएफसीसीआईएल के आला अफसर खुला खेल खेल रहे हैं। इसमें मास्ट सप्लाई करने वाली कंपनियां भी शामिल है। मिलीभगत के इस खेल को पिछले महीने जनप्रहरी एक्सप्रेस समाचार पत्र और जनप्रहरी एक्सप्रेस डॉट कॉम (न्यूज वेबसाइट) में प्रमुखता से उजागर किया था।
इन समाचारों के बाद हरकत में आए डीएफसीसीआईएल के डीजीएम (जनसंपर्क) राजेश खरे ने हमारे संवाददाता को फोन पर बताया कि फेल मास्ट की रिपोर्ट के आधार पर ठेके निरस्त कर दिए हैं। मामले की जांच शुरु कर दी है। हालांकि राजेश खरे ने यह बयान तो दे दिया, लेकिन इसका असर राजस्थान रीजन में नहीं दिख रहा है। डीएफसीसीआईएल ना तो फेल मास्ट को सील कर रहा है और ना ही उन्हें ठेकेदारा फर्म को उठाने को कह रहा है। ऐसे में इन फेल मास्ट के फिर से राजस्थान या डीएमसीसीआईएल के देश के अन्य हिस्सों में चल रहे प्रोजेक्ट में खपने का अंदेशा है। खराब और फेल मास्ट की रिपोर्ट मीडिया में आने के बाद भले ही इस प्रोजेक्ट से जुड़े अफसरों व एजेंसियों में खलबली हो, लेकिन कोई ठोस एक्शन नहीं होने के कारण अंदरखाने मास्टों के भुगतान करने की कवायद शुरु हो गई है।
यहीं नहीं जो टेस्टिंग में मास्ट खराब पाए गए हैं, उन्हें वहां से गुपचुप से हटाकर उनके स्थान पर दूसरे नए मास्ट डाल दिए गए हैं, ऐसे भी सूचना है, ताकि फिर से जांच हो तो टेस्टिंग रिपोर्ट को गलत ठहराया जा सके। वैसे भी फेल मास्ट को तत्काल ही गोदाम में रखकर सील के प्रावधान है, लेकिन अभी तक डीएफसीसीआईएल और डीएफसीसीआई ने सील की कार्रवाई नहीं है, उलटे यह सामने आया है कि ठेकेदार फर्म को मास्ट लाने का एक ओर ठेका दिया है, जबकि पहले वाले मास्ट भी इसी फर्म ने भेजे थे। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि जो नया ठेका दिया गया है, वे तय मानकों के मुताबिक आएंगे या पहले से ही कॉरीडोर में पड़े हुए मास्टों को खपा दिया जाएगा। यह भी सवाल उठ रहे हैं कि फेल मास्ट मामले में अभी तक कोई एक्शन नहीं लिया गया तो क्यों उसी फर्म को वापस ठेका दिया जा रहा है। क्यों उस पर कार्रवाई नहीं की जा रही है?
फायदे देने और लेने के लिए जांच नियम ही बदल दिए…
डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर के रेलवे प्रोजेक्ट में होने वाले कार्यों के ठेके में आपूर्ति होने वाले सामान की दो जगह जांच का प्रावधान है। नियमों के मुताबिक, पहली जांच सामान निर्माता कंपनी के यहां होनी है और दूसरी जांच माल की आपूर्ति के बाद परियोजना निर्माण स्थल पर। पंजाब स्थित जैन स्टील इंडस्ट्रीज में जब इंजीनियर जांच करने गए तो वहां माल सही होने की रिपोर्ट दे दी। लेकिन जब यहीं माल राजस्थान पहुंचा और उसकी जांच हुई तो पोल खुल गई। हर दस में आठ खंबे खराब गुणवत्ता के पाए गए। यह भी सामने आया कि कंपनी में जांच में पास हुए खंबों पर कोई निशान नहीं लगाए गए थे और ना ही कोई टैग था। यानि यह अंदेशा जाहिर किया जा रहा है कि वहां मिलीभगत करके इंजीनियर ने रिपोर्ट दे दी। जब माल प्रोजेक्ट स्थल पर आया और टेस्टिंग की गई तो ५० में से मात्र ९ खंबे ही सही पाए गए। ४१ खंबे लगने योग्य नहीं थे। इस रिपोर्ट को कुछ दिन तक उजागर होने नहीं दिया और ना ही दिल्ली, अजमेर और नोएडा कार्यालय में इसकी सूचना दी। मिलीभगत से चल रहे इस खेल में मास्टों के फेल आने की रिपोर्ट आई तो प्रोजेक्ट अफसरों, ठेकेदार फर्म और आपूर्तिकर्ता फर्म में हडकंप मच गया। सब मिलकर इसका तोड़ ढूंढने में लग गए।
इस तोड़ का एक रास्ता उन्होंने ढूंढा। उन्होने परियोजना स्थल पर जांच के प्रावधान को ही हटा दिया जाए। इस संबंध में एक राय होकर फाइल चलाई, जो एक के बाद एक अफसर से पास होती गई और सभी ने भारतीय मानक ब्यूरो के इस महत्वपूर्ण प्रावधान को हटाने की सिफारिश करते रहे, जबकि इसी प्रावधान के चलते भ्रष्टाचार पर तो अकुंश है, साथ ही आपूर्तिकर्ता और ठेकेदार फर्मों पर खराब माल नहीं देने की तलवार भी लटकी रहती है। इस प्रावधान को हटा दिया गया। अफसरों ने दूसरी ओर कंपनी परिसर में जांच करवाकर रिपोर्ट प्राप्त करने और उसके आधार पर माल लेने के प्रावधान कर लिए, ताकि कंपनी मालिक और ठेकेदार फर्म से मिलीभगत करके खराब और गलत माल भी लिया जा सके। हालांकि इस नियम को वे बदल नहीं पाए हैं। यह फाइल दिल्ली और नोएडा कार्यालय गई तो अफसरों ने इस नामंजूर कर दिया। जनप्रहरी एक्सप्रेस के पास नियमों में बदलाव के तमाम दस्तावेज मौजूद हैं।
पीएम नरेन्द्र मोदी, रेल मंत्री सुरेश प्रभु और आला अफसरों को शिकायतें
दिल्ली-मुंबई कॉरिडोर (डीएमआईसीसी) के डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर (डीएफ सीसीआईएल) राजस्थान में चल रहे प्रोजेक्ट कार्यों में खराब और फेल मास्ट खपाने की शिकायतें पीएम नरेन्द्र मोदी, रेलमंत्री सुरेश प्रभु, डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर, डीएमआईसीसी और रेलवे के आला अफसरों को दी है। साथ ही अफसरों, ठेकेदारों फर्मों और आपूर्तिकर्ता कंपनी की मिलीभगत से हो रहे इस खेल से संबंधित दस्तावेज की प्रतियां भी दी है। ताकि भ्रष्टाचार पर रोक लग सके और भ्रष्ट अफसरों पर कार्रवाई।
कर ली थी फेल मास्ट खपाने की तैयारी
मुंबई औद्योगिक कॉरिडोर के लिए राजस्थान में बिछने वाले रेलवे ट्रेक के दोनों तरफ चालीस हजार शुद्ध लोहे के जस्तायुक्त मास्ट लगने हैं। मास्ट की आपूर्ति का ठेका एलएण्डटी कंपनी के पास है। कंपनी ने इसे बनाने का ठेका पंजाब की जैन स्टील इंडस्ट्रीज को दिया है। जैन स्टील इंडस्ट्रीज ने २६८८ खंबे सप्लाई भी कर दिए। भारतीय मानक ब्यूरो के तय नियमों के मुताबिक, इन खंबों की कंपनी और फिर परियोजना स्थल पर जांच होनी थी। कंपनी परिसर में खंबे ओके हो गए। जब यह माल परियोजना स्थल पर आया तो फिर से टेस्टिंग की गई। पचास खंबे छांटे गए, जिसमें से मात्र नौ खंबे ही सही पाए गए और शेष खंबे टेस्टिंग में फेल हो गए।
बताया जाता है कि जो इंजीनियर कंपनी में टेस्टिंग के लिए गया था, उसने मिलीभगत करके खंबों के सही होने की रिपोर्ट दे दी, जब ये खंबे परियोजना स्थल पर जांचें गए तो फेल हो गए। इन फेल खंबों की जांच रिपोर्ट को दिल्ली, नोएडा और अजमेर कार्यालय नहीं भेजा गया और अंदरखाने ही फेल मास्ट खपाने की तैयारी चलती रही। लेकिन जनप्रहरी एक्सप्रेस में यह मामला उजागर होते ही मिलीभगत के इस खेल की पोल सामने आ गई और ठेके को निरस्त कर दिया, हालांकि अभी ऊपरी तौर पर ही ठेके को निरस्त करने और मास्ट को हटाने की कही जा रही है, लेकिन अंदरखाने परियोजना स्थलों पर पड़े मास्टों को नए ठेकों के माध्यम से खपाने की तैयारी चल रही है। फेल और खराब मास्ट हटाए जा रहे हैं।