जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने 2008 के कानून से नियमित हुए राजस्थान विश्वविद्यालय के करीब पौने तीन सौ शिक्षकों को नियुक्ति की तिथि से ही सेवा की गणना करते हुए पेंशन परिलाभ पाने का हकदार माना है। अदालत ने शिक्षा के पेशे में मेघावी युवाओं के पहले की तरह आगे नहीं आने पर चिंता जाहिर की है और दो दशक तक राजस्थान विवि में शिक्षकों की नियुक्ति नहीं होने को गंभीर माना है। इसके साथ ही न्यायाधीश अजय रस्तोगी व न्यायाधीश दीपक माहेश्वरी की खण्डपीठ ने इन शिक्षकों को पेंशन देने के मामले में राजस्थान विवि व राज्य सरकार की अपीलों को खारिज कर दिया है।
कोर्ट ने कहा है कि विवि के संसाधन सीमित हैं, इस कारण वह पर्याप्त धन की व्यवस्था नहीं कर सकता। जहां तक सरकार की ओर से दिए गए धन के दुरुपयोग का मामला है, सरकार 1946 के कानून के तहत उस पर निगरानी व नियंत्रण कर सकती है। कोर्ट ने कहा कि 1980 व 1990 के दशक में शिक्षक पेशे को प्राथमिकता दी जाती थी, लेकिन आज मेघावी युवा इस पेशे में नहीं आ रहे हैं। प्रशासनिक कारणों से दो दशक तक पद नहीं भरे गए। ऐसे में शिक्षण व्यवस्था को सुचारु रखने के लिए तदर्थ आधार पर इन पदों को भरना जरुरी था। अपील में विवि का कहना था कि शिक्षक 2008 में नियमित हुए। इसलिए प्रथम नियुक्ति तिथि से पेंशन के हकदार नहीं हैं। जबकि शिक्षकों की ओर से कहना था कि शिक्षकों को प्रथम नियुक्ति तिथि से ही पेंशन पाने का हक है। कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि 2012 व 2016 में जो आदेश दिए गए हैं। उनके तहत ही पेंशन दी जाए। इन आदेशों पर कोर्ट के दखल की कोई आवश्यकता नहीं है।