जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा है कि अनिवार्य विवाह पंजीकरण अधिनियम, 2009 के तहत हुए विवाह पंजीकरण को रद्द करने का अधिकार स्थानीय निकाय को नहीं है। इसके साथ ही अदालत ने फैमिली कोर्ट को निर्देश दिए हैं कि वह प्रकरण में लंबित याचिका को छह माह में तय करे। न्यायाधीश मनीष भंडारी की एकलपीठ ने यह आदेश समर गुप्ता की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।
याचिका में अधिवक्ता उमेश व्यास ने बताया कि याचिकाकर्ता का प्रियंका गुप्ता से विवाह हुआ था। जिसका अलवर नगर परिषद में पंजीकरण हुआ था। वहीं बाद में प्रियंका के प्रार्थना पत्र पर 29 दिसंबर 2016 को स्थानीय निकाय निदेशक ने नगर पालिका अधिनियम, 2009 के तहत पंजीकरण रद्द कर दिया। वहीं विवाह विच्छेद को लेकर फेमिली कोर्ट में याचिका दायर की गई। निकाय निदेशक के पंजीकरण रद्द करने के आदेश को यह कहते हुए चुनौती दी गई कि एक अधिनियम के तहत की गई कार्रवाई को दूसरे अधिनियम के प्रावधानों का हवाला देते हुए रद्द नहीं किया जा सकता। विवाह पंजीकरण की कार्रवाई अनिवार्य विवाह पंजीकरण अधिनियम, 2009 के तहत की गई है, जबकि इसे नगर पालिका अधिनियम, 2009 के तहत रद्द किया गया है। इसके अलावा विवाह पंजीकरण को रद्द करने की कार्रवाई सक्षम न्यायालय में ही की जा सकती है। जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने पंजीकरण रद्द करने के स्थानीय निकाय निदेशक के आदेश को रद्द कर दिया है।