जयपुर। राज्य विधानसभा ने सोमवार को राजस्थान लिंचिंग से संरक्षण विधेयक, 2019 ध्वनिमत से पारित कर दिया। संसदीय कार्यमंत्री शांति कुमार धारीवाल ने मुख्यमंत्री की ओर से सदन में विधेयक प्रस्तुत किया। उन्होंने विधेयक को सदन में लाने के कारणों एवं उद्देश्यों को रेखांकित करते हुए बताया कि भारत का संविधान समस्त व्यक्तियों को प्राण और दैहिक स्वतंत्रता और विधियों के समान संरक्षण के अधिकार प्रत्याभूत करता है। हाल ही में ऎसी अनेक घटनाएं हुई है जिनके परिणामस्वरूप मॉब लिंचिंग के कारण व्यक्तियों की जीविका की हानि, क्षति और उनकी मृत्यु हुई है।
भारत के उच्चतम न्यायालय ने रिट पिटीशन (सिविल) सं. 754/2016 तहसीन एस. पूनावाला बनाम भारत संघ और अन्य में दिनांक 17 जुलाई, 2018 को अपने निर्णय में इस संबंध में विधायन अधिनियमित करने की सिफारिश की है। इसलिए इस बुराई को आरंभ में ही नियंत्रित करने के लिए और घृणा को फैलाने या मॉब लिंचिंग के उद्दीपन से रोकने के लिए भारतीय दंड संहिता के अधीन अन्य अपराधों के अतिरिक्त ऎसी मॉब लिंचिंग के विरूद्ध इसे विशेष अपराध बनाया जाना प्रस्तावित है।
धारीवाल ने कहा कि देश में 2014 के पश्चात् मॉब लिंचिंग के सौ से ज्यादा मामले सामने आए हैं, उनमें से 86 फीसदी राजस्थान के हैं। सबसे शांत माने जाने वाले प्रदेश की पहचान देश में ‘मॉब लिंचिंग स्टेट’ के रूप में होने लगी थी। ऎसा क्यों हो रहा है, जो पहले कभी नहीं हुआ था? प्रदेश के हर नागरिक का सिर शर्म से झुक जाता है जब राजस्थान में मॉब लिंचिंग की घटना होती है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में ऎसी घटनाओं की पुनरावृति को रोकने के लिए प्रभावी एवं कठोर कानून बनाया जा रहा है। आईपीसी में हर अपराध की सजा का प्रावधान है, लेकिन वह सामान्य कानून है। मॉब लिंचिंग जैसे गंभीर अपराधों को रोकने के लिए एजी की राय लेकर यह विशेष कानून बनाया जा रहा है।
धारीवाल ने ‘मॉब‘ की परिभाषा के संबंध में स्पष्ट करते हुए कहा कि राज्यसभा सांसद एवं प्रख्यात कानूनविद् केटीएस तुलसी के प्रस्ता, मणिपुर के कानून और उत्तरप्रदेश के विधि आयोग की ओर से प्रस्तावित मॉडल बिल में दो या अधिक के समूह को ‘मॉब’ माना गया है। इसलिए पूरा अध्ययन करने के बाद ही यह कानून बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस कानून की धारा-27 के तहत राज्य सरकार को विस्तृत नियम बनाने की शक्ति दी गई है, जिसमें सभी शंकाओं का समाधान हो जाएगा।