– राकेश कुमार शर्मा
जयपुर। मानसून की शुरुआत में जब जयपुर शहर और आस-पास के ग्रामीण अंचल में जोरदार बारिश हुई तो ना केवल सवा तीन दशक बाद (1981 की बाढ़ के बाद) बाणगंगा (ताला) नदी में पानी की भारी आवक हुई। पानी की आवक इतनी थी कि देखते ही देखते नदी का पानी रामगढ़ बांध के डूब क्षेत्र घाटी घनश्यामपुरा तक गया है। यह रामगढ़ बांध का प्रवेश स्थल है। बाणगंगा नदी सत्तर फीट चौड़ाई में एक फीट ऊंचाई तक बही है। जल संसाधन विभाग के इंजीनियरों का भी दावा है कि 1981 की बाढ़ के बाद सिर्फ चार-पांच घंटे की तेज बारिश में ही इतना पानी की आया कि वह रामगढ़ बांध के डूब क्षेत्र घाटी घनश्यामपुरा तक पहुंच गया। यहां से बांध तीन किलोमीटर दूर है। हालांकि बाद के दिनों में बारिश अच्छी नहीं होने से रामगढ़ बांध में आने वाली नदियां बाणगंगा, माधोबेणी, गौमती समेत अन्य नदियों में इतना पानी नहीं आया कि वे बांध तक पहुंच सके। अभी मानसून पूरे प्रदेश में मेहरबान है। जिस तरह से प्रदेश के बांध अच्छी बारिश से लबालब हो रहे हैं। पानी इतना आ रहा है कि बांधों के गेट तक खोलने पड़ रहे हैं। शेष बचे मानसून के समय में पूरे जिले में अच्छी बारिश की उम्मीद जयपुरवासियों को है, साथ ही यह आस भी है कि रामगढ बांध फिर से लबालब भले ही ना हो पाए, लेकिन इतना पानी तो आ सकेगा कि उसका खाली पड़ा पेटा भर जाए और सूखी धरती पानी से लबालब हो सके। स्थिति यह है कि बांध रीता होने से इसके क्षेत्र में रहने वाले मगरमच्छों पर संकट खड़ा हो गया है। पहले कुछ पानी (दलदली)रहता था तो वहां ये पड़े रहते थे। इस बार तो पानी नहीं होने और पानी के अभाव में जलीय जीव नहीं होने से इनका पेट भरना मुश्किल हो गया और ये बांध छोड़कर आस-पास की आबादी क्षेत्रों में पहुंचने लगे है। हाल ही बांध से सटे एक गांव में पहुंचे एक मगरमच्छ को ग्रामीणों ने पकड़कर वन विभाग को सौंपा है। करीब पांच से छह दर्जन मगरमच्छ बताए जाते हैं बांध क्षेत्र में। अगर पानी नहीं आया तो इनके भी बांध क्षेत्र से बाहर निकलने का अंदेशा है। जल विशेषज्ञों का मानना है कि मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन योजना के तहत रामगढ़ बांध को भी हाथ में लेना चाहिए। क्षेत्र के लोगों को जोड़कर बहाव क्षेत्र में हुए अतिक्रमण को हटाकर कैसे बांध तक पानी पहुंचे, इस बारे में सरकार को सख्त कदम उठाने की जरुरत है। तभी यह बांध बच पाएगा। नहीं तो धीरे-धीरे जैसे राजधानी जयपुर में स्थित छोटे बांध व तालाब (खानिया बांध, रावलजी का बंधा, अमानीशाह, राजमल का तालाब) खत्म हो गए हैं, वैसे ही यह बांध भी खत्म हो जाएगा।
हमने ही मार दिया रामगढ़ बांध
कभी जयपुर की लाइफ लाइन कह जाने वाले रामगढ़ बांध में हर मानसून में भरने की उम्मीद रहती है, लेकिन यह खाली ही रह जाता है। ऐसा नहीं है कि रामगढ बांध, उसके भराव क्षेत्र एवं आस-पास की तहसीलों (विराटनगर, जमवारामगढ़, शाहपुरा, आमेर)में अच्छी बारिश भी होती है, लेकिन कहीं ना कहीं हमारे स्वार्थ (बहाव क्षेत्र व नदियों के रास्ते में अतिक्रमण) के चलते तो कही सरकार के स्तर पर बरती भारी गलतियों की सजा यह बांध तो भुगत रहा है, साथ ही इस बांध से प्यास बुझाने वाली जनता और सिंचाई करने वाले किसान भी मरने लगे है। सरकार ने ही इस बांध तक पानी पहुंचाने वाली नदियों और बरसाती नालों पर एनिकट और चेकडेम बना डाले। बताया जाता है कि बांध की नदियों व नालों में करीब साढ़े चार सौ से अधिक छोटे बड़े एनिकट व चेकडेम बन चुके हैं, जिनके चलते बरसाती पानी बांध तक पहुंच ही नहीं पा रहा है। यही नहीं जगह-जगह बांध पेटे और बहाव क्षेत्र में अतिक्रमण होने से भी पानी का बहाव बदल गया है। राजस्थान हाईकोर्ट भी कई बार सरकार को बांध पेटे व बहाव क्षेत्र में हो रहे अतिक्रमणों को हटाने की कह चुका है। कोर्ट कमिश्नर तक भी इनके दौरे कर चुके है। फिर भी सरकार इस बांध को बचाने की तरफ ध्यान नहीं दे रही है। यहीं कारण है कि आजादी से पहले से ही जयपुर की प्यास बुझाने वाला यह बांध धीरे-धीरे मरता जा रहा है। बांध का करीब तीन सौ मील का कैचमेंट एरिया बर्बाद हो गया है अतिक्रमण व एनिकट से। रामगढ़ बांध में पानी नहीं आने का प्रमुख कारण बाणगंगा, माधोबेणी, अचरोल, ताला, रोड़ा, रणिया, दायरा और सालावास जैसी नदियों पर बन चुके चेकडेम, एनीकट और फार्म हाउस व दूसरे अतिक्रमण है। जयपुर जिले की चार पंचायत समितियों में फैले रामगढ़ बांध के कैचमेंट एरिया में सबसे ज्यादा 157 एनीकट विराटनगर पंचायत समिति में बने हैं। इसके अलावा आमेर क्षेत्र में कैचमेंट एरिया में 128, जमवारामगढ़ में 82 और शाहपुरा में 48 चेकडेम- एनीकट बने हैं। कई जगह तक कॉलोनियां और बड़े-बड़े फार्म हाउस तक बन चुके हैं। बांध के बीचोंबीच कच्चे-पक्के मकान बन गए बल्कि भराव क्षेत्र में खेती भी होने लगी है। बांध क्षेत्र की सरकारी जमीनों पर कब्जे हो गए। बांध क्षेत्र में पूर्व जयपुर राजघराने की जमीनों पर कई लोगों ने फार्म हाउस व कॉलोनियां बसा दी है। कई जमीनों के मामले सीलिंग और अन्य कानून के तहत अदालतों में भी चल रहे हैं। जमवारागढ़ तहसील में तो निम्स विश्वविद्यालय ने बहाव क्षेत्र में ही हॉस्टल व दूसरे अतिक्रमण कर लिए। रामगढ़ बांध की महत्वपूर्ण पानी आवक नदी बाणगंगा में सड़कें तक बना दी गईं। सामरेड़ कलां से गोडयाना होते हुए टोडामीणा तक जाने वाले पुराने रास्ते पर यह सड़क बनी है। यह सड़क भी सरकार ने बनाई है, जबकि अब्दुल रहमान बनाम सरकार मामले में राजस्थान हाईकोर्ट के स्पष्ट आदेश हैं कि नदी-नालों का बहाव किसी भी स्थिति में रोका नहीं जा सकता। इसी तरह माधोबेणी नदी के बीच कॉलोनी काट दी गई। इन वजह से ही एक दशक से बांध में पानी नहीं आ पा रहा है। अंतिम बार वर्ष 1999 में 33.9फीट पानी आया था। इसके बाद पानी नहीं आ पा रहा है। सरकार और प्रशासन ने एनिकट व चेकडेम बनाने पर करीब दो सौ करोड़ रुपए खर्च कर दिए 200 करोड़ रुपए खर्च करके इस बांध का गला घोंट दिया। फिर जयपुर की प्यास बुझाने के लिए टोंक जिले के बीसलपुर बांध से पानी लाने के लिए पाइप लाइन बिछाने व दूसरे कार्यों पर करीब बारह सौ करोड़ रुपए फूंक दिए। अगर एनिकट व डेम नहीं बने होते तो बांध नहीं सूखता और ना ही सरकार को इतनी बड़ी धनराशि खर्च कर बीसलपुर से पानी लाने की योजना बनानी पड़ती। ऐसा नहीं है कि यह बांध फिर से लबालब नहीं हो सके। लेकिन सरकार दृढ इच्छा शक्ति रखते हुए अतिक्रमणों को हटा देंवे और बहाव क्षेत्र में बन चुके डेम व एनिकट को हटा दे तो यह बांध फिर से जी उठ सकता है। पानी से लबालब होने पर ना केवल लोगों को पेयजल उपलब्ध हो सकता है, बल्कि एक बड़े रकबे में फिर से सिंचाई भी हो सकती है।
पहले बांध सूखाया, अब भूजल के पीछे पड़े
भले ही बांध सूखा पड़ा हो और पानी नहीं आ रहा है, लेकिन बांध के पेटे में अब भी भरपूर पानी है। इस भूजल का भी जलदाय विभाग जबरदस्त दोहन करके जयपुर व आस-पास के क्षेत्रों में पानी सप्लाई कर रहा है। रामगढ़ बांध के बीचोंबीच जलदाय विभाग आठ ट्यूबवैल से पानी ले रहा है। एक दशक से इतना पानी खींच रहे है कि यहां आठ में से दो पानी की कमी से फेल हो गए है। दो ट्यूववैलों में पानी नहीं आ रहा है। शेष छह से अब भी पानी खींच कर भूजल को भी सूखाया जा रहा है। बताया जाता है कि चार सौ फीट से भी अधिक नीचे तक पानी पहुंच गया है। इसी तरह बांध क्षेत्र की रोडा नदी, ढूंढ नदी और जामडोली में भी करीब पांच दर्जन ट्यूबवैल खोदे जा चुके हैं। सभी ट्यूबवैलों का पानी बांध गेट स्थित जलदाय विभाग के पंप हाउस पर एकत्र कर जयपुर के लक्ष्मण डूंगरी पंप हाउस भेजा जाता है, जो चारदीवारी व आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों में सप्लाई होता है। हालांकि बीसलपुर बांध से पानी की आपूर्ति होने के बाद से यहां से पानी कम ही लिया जा रहा है।
नदियों से जोडऩे की योजना कागजी निकली
यह नहीं है कि सरकार इस बांध के प्रति सजग नहीं है। नदियों के पानी से इसे भरने की योजना बना चुकी है। हालांकि यह योजना भी कागजों में ही ज्यादा चल रही है। मूर्तरुप नहीं ले पा रही है। यमुना, चंबल व दूसरी नदियों के बरसाती पानी को यहां लाने के लिए कई प्रस्ताव व योजना तैयार हो चुकी है। इन्हें मंजूरी भी मिल चुकी है। लेकिन दूसरे राज्यों के जलदाय विभागों से सहमति नहीं बन पाने से यह योजना मूर्तरुप नहीं ले पा रही है। करीब 2573 करोड़ की लागत से लाखेरी से रामगढ़ व ईसरदा से कालख बांध तक पानी लाने की योजना भी तैयार है। जलदाय विभाग ने चम्बल में मिलने वाली पार्वती, कालीसिंध, चाकन नदी से भी जल लाने की संभावना जता चुका है। रामगढ़ बांध को पुनर्जीवित करने का एक तरीका यह भी है कि इसे नदियों से तो जोड़ा जाए, साथ ही सरकार को चाहिए कि विकास की जितनी भी नीतियां बनाएं, उनके मूल में पानी के संरक्षण के उपाय जरूर हों। पानी को लेकर सरकार चेतेगी तभी बांध, नदियां बच सकेंगे।
माधोसिंह ने बनाया था बांध
जयपुर के शासक सवाई महाराजा माधोसिंह द्वितीय ने 1897 में जयपुर के लोगों को साफ पानी पिलाने के लिए रामगढ़ बांध की नींव रखी थी। अंग्रेज इंजीनियरों के सहयोग से पहले बांध क्षेत्र का पूरा खाका खींचा गया था। करीब 65 फीट ऊंचे और सोलह किलोमीटर लम्बे क्षेत्र में फैले इस बांध में आने वाली नदियों व नालों का भी अध्ययन करते हुए जमवारामगढ़ की पहाडिय़ों के बीच इस बांध को बनवाया। हालांकि 1927 में यह बनकर तैयार हुआ। तब से लेकर वर्ष 2000 तक इस बांझ से बराबर जयपुर को ना केवल पानी सप्लाई होता रहा, बल्कि आस-पास के गांवों तक सिंचाई भी होती थी। इसी तरह माधोसिंह ने कचराला नदी पर कूकस बांध बनवाया था। फिर आगरा रोड पर खानिया बांध का निर्माण करवाया। रामगढ़ बांध के मुकाबले कूकस और खानिया बांध छोटे थे, लेकिन इससे आस-पास के दर्जनों गांवों में सिंचाई होती थी। अब खानिया बांध का तो अस्तित्व ही मिट गया। इसी तरह कूकस बांध भी अतिक्रमण, बांध पेटे में जमीनें आवंटन करने, फार्म हाऊस बनाने के कारण यह भी खत्म सा हो गया है। बहाव क्षेत्र बंद होने से पानी की आवक खत्म हो गई है। करीब डेढ़ दशक से यह बांध भी सूख पड़ा है। पांच साल पहले जरुर तेज बारिश से बांध भर गया था, लेकिन आस-पास के भू-माफियाओं और फार्म हाऊस मालिकों ने बांध की मोरी के गेट खोलकर पानी को बहा दिया था। कुछ दिनों पहले आई बारिश से करीब चार फीट पानी आया है। हालांकि अब सिंचाई विभाग ने वहां चौकीदार तैनात कर रखे है, ताकि पिछली बार की तरह इस बार भी कोई मोरी नहीं खोल दे।
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