जयपुर। पूर्व मंत्री एवं सांगानेर के विधायक घनश्याम तिवाड़ी के तेवरों में कोई कमी नहीं आई है पिछले दिनों विधानसभा में हुए घटनाक्रम पर बोलते हुए तिवाड़ी ने कहा है कि हमें लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने वाले पहले खुद अपने गिरेबां में देखें फिर बात करें वे किस लोकतंत्र की दुहाई दे रहे हैं। ये वही लोग हैं जिन्होंने कांग्रेस सरकार के समय सदन की गरिमा की किस कदर धज्जियां उड़ाई थी और अब सदन की मर्यादा और लोकतंत्र की बातें कर रहे हैं। तिवाड़ी ने गृह मंत्री कटारिया तथा राठौड़ के विधानसभा के कथन का जवाब देते हुए कहा कि राजस्थान विधानसभा में शुक्रवार को जब उन्हें बोलने से रोका गया इसे तानाशाही का दिन माना जाएगा। वे सदन में जनहित और राजस्थान की जनसम्पदा से जुड़े बहुत ही अहम मुद्दे उठाना चाहते थे। लेकिन सरकार नहीं चाहती थी कि वे मुद्दे विधानसभा में उठें तथा मीडिया के माध्यम से जनता के बीच जाएँ। इसलिए मुख्यमंत्री के इशारे पर उन्हें सदन से बाहर निकल जाने के लिए कह दिया गया और इसके लिए दुहाई दी गयी लोकतंत्र की।तिवाड़ी ने कहा कि हकीकत तो ये है कि मौजूदा मुख्यमंत्री ने पहले तो सत्ता और संगठन हथिया लिया और अब विधानसभा को भी वे अपने अधीन करने का प्रयत्न कर रही हैं। मुख्यमंत्री राजस्थान में लोकतंत्र को अपनी निजी जागीर में बदलना चाहती हैं ।राजस्थान को इन्होंने चारागाह बना दिया है। गृहमंत्री और संसदीय कार्यमंत्री इनकी इस लूट के सिपहसालार हैं।
तिवाड़ी ने कहा कि उन्हें आश्चर्य हुआ कि गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया और संसदीय कार्यमंत्री राजेन्द्र राठौड़ विधानसभा में अनुशासन की दुहाई दे रहे हैं। अच्छा होता वे एक बार अपने गिरेबां में झांक कर देख लेते।तिवाड़ी ने कहा कि ये दोनों वर्तमान मंत्री याद करें शुक्रवार 20 मार्च, 2010 का वह दिन जब यही विधानसभा अखाड़ा बन गई थी। कटारिया—राठौड़ बार-बार तत्समय सदन के नेता अशोक गहलोत को बोलने नहीं दे रहे थे और सदन की कार्यवाही में निरंतर व्यवधान डाल रहे थे। तत्समय विधानसभा अध्यक्ष ने उन्हें चेताया फिर भी वे नहीं माने तो अध्यक्ष ने सदन से राठौड़ को निलम्बित कर दिया, निलम्बन के बाद भी वे बाहर नहीं गए तो उन्हें निकालने के लिए अध्यक्ष को सुरक्षा प्रहरियों को आदेश देना पड़ा। फिर इन्होंने सुरक्षा प्रहरियों के साथ हाथापाई की। नेता प्रतिपक्ष का पद रिक्त था और वर्तमान मुख्यमंत्री विदेशों में आराम फरमा रहीं थी। तब विरोधस्वरूप तिवाड़ी जी उपनेता होने के नाते ग्यारह विधायकों के साथ इनका निलम्बन वापस लेने के लिए विधानसभा में अनशन पर बैठे थे। अगले दिन तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आकर उनका अनशन तुड़वाया और निष्कासन वापस लेने का प्रस्ताव करवाया। विधानसभा का इतिहास राठौड़ और कटारिया के ऐसे कारनामों से भरा पड़ा है। इसलिए आज इन्हें कर्ण की तरह धर्म का उपदेश देने का कोई अधिकार नहीं है। विषय गम्भीर हो तो सदन में सदस्यों को बीच में बोलने का अवसर दिया जाता है तिवाड़ी ने कहा कि वे ये बात भी याद दिलाना चाहते हैं कि विधानसभा में ऐसे अनेक मौके आएं हैं जब सदन में नेता के बोलने के दौरान भी विषय की गंभीरता को देखते हुए सदस्यों को बीच में बोलने के लिए 5 से 10 मिनट तक बोलने का समय दिया गया। बोलने के बाद प्रश्न पूछने का मौका भी दिया गया। जबकि वे तो अध्यक्ष के टोकने के बाद लोकतंत्र की रक्षा के लिए विरोध के प्रतीक में सदन में सिर्फ खड़ा रहना चाहते थे। तिवाड़ी ने कहा कि पूरी ताकत के साथ वे इस तानाशाही और ढाँचागत लूट के खिलाफ विधानसभा में तथा जनता के बीच जनजागृति का काम करेंगें।