जयपुर. असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक विजयादशमी पर्व आज प्रदेशभर में मनाया जा रहा है। प्रदेश के ज्यादातर इलाकों में रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाए गए। जोधपुर में 62 फीट के रावण के पुतले का दहन किया गया। अग्नि बाण लगने पर दशानन की आंखों से अंगारे बरसने लगे। जयपुर के आदर्श नगर में 105 फीट के रावण के पुतले का दहन किया गया। कोटा के नांता स्थित जेठी समाज के बड़े अखाड़े में मिट्टी के रावण को पैरों से कुचल कर विजयादशमी पर्व मनाया गया। वहीं, झालावाड़ के झालरापाटन स्थित मेला मैदान में रावण दहन नहीं हुआ। यहां रावण अपने परिवारजन के साथ 183 साल से अडिग खड़ा है।
-विद्याधर नगर में 121 फीट का रावण
जयपुर के विद्याधर नगर में प्रदेश का सबसे ऊंचा रावण का पुतला 121 फीट का है। कुंभकर्ण का पुतला 111 फीट और मेघनाद का पुतला 105 फीट का है। विद्याधर नगर स्टेडियम में रावण दहन देखने बड़ी संख्या में लोग जुटे हैं। कार्यक्रम में कलाकार सांस्कृतिक प्रस्तुतियां देंगे। रात 8 बजे दशानन, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों का बैंड की धुनों के साथ दहन किया जाएगा। इस बार पूर्व राजपरिवार के सदस्य पद्मनाभ सिंह रावण के पुतले का दहन करेंगे। वहीं, आदर्श नगर में रात 7:45 बजे 105 फीट के रावण और 90 फीट के कुंभकर्ण के पुतले का दहन किया गया। रावण और कुंभकर्ण के पुतलों की आंखों से शोले और मुंह से आग के गोले निकलते दिखे। बीच-बीच में धूमकेतु जैसा नजारा दिखा। पुतलों को आकर्षक एलईडी लाइट से सजाया गया था। इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल सिस्टम से दहन किया गया।
-3डी रावण का दहन
राजस्थान में कोटा का दशहरा मेला देशभर में मशहूर है। इस बार यहां दशहरा मैदान पर रावण का 3डी पुतला तैयार किया गया है। खासियत यह है कि इसे किसी भी दिशा से देखा जाए, यह एक जैसा दिखेगा। मंगलवार सुबह 75 फीट के पुतले को खड़ा करने के लिए 100 मजदूरों को जुटना पड़ा। रावण के कुनबे को पैरों पर खड़ा करने के लिए प्लेटफाॅर्म बनाया गया। दो क्रेन से पुतलों को खड़ा किया गया। यहां कुंभकर्ण और मेघनाद, दोनों के पुतले 50-50 फीट के हैं। कुछ ही देर में रावण दहन होगा। रावण का पुतला इस बार रथ में सवार होकर युद्ध के लिए ललकारता दिखेगा। अलग से बनाए गए रथ को पुतले के साथ जोड़ा गया है। रावण की छाती पर कवच और भाला लगाया गया। इसके 16 फीट के हिस्से में 3डी इफेक्ट डाला गया। रावण गर्दन घुमाएगा, तलवार चलाएगा, पलकें और होंठ हिलाएगा। मूंछों पर ताव देकर अट्टहास भी करेगा। पुतलों में आतिशबाजी के लिए ग्रीन पटाखे लगाए गए। पुतले को इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम से जोड़ा गया है। आतिशबाजी रिमोट से कंट्रोल होगी। इस दौरान मुंह से चिंगारी और नाक-कान से धुआं निकलता दिखेगा। सिर पर स्काई शॉट के जरिए आसमान में रोशनी होगी। सिर पर स्थित ताज में चकरी घूमेगी। एक हाथ में तलवार चमकेगी तो दूसरे हाथ में ढाल फूटेगी। रावण के पुतले के कान की बालियों, कमर पेटी, जनेऊ और पेट में भी बारूद भरा गया है। गले की माला भी आतिशी नजारे के साथ जलेगी। पुतले में चक्कर, फायर, स्मोक समेत कई बम लगाए गए हैं। कोटा के नांता स्थित जेठी समाज के बड़े अखाड़े में मिट्टी का रावण बनाने की परंपरा है। मंगलवार को मिट्टी के रावण को समाज के लोगों ने पैरों से कुचल कर विजयादशमी पर्व मनाया। इसके बाद उसी मिट्टी में कुश्ती हुई। यहां मिट्‌टी का रावण बनाने का काम अखाड़े में स्थित लिम्बजा माता के मंदिर में श्राद्ध पक्ष से शुरू हो जाता है। अमावस्या तक इसे पूरा कर लिया जाता है। रावण के सिर और मुंह पर ज्वारे उगाए जाते हैं। नवरात्र स्थापना के दिन पूजा-अर्चना कर मंदिर का मुख्य द्वार बंद कर दिया जाता है। नवमी के दिन मंदिर का यह दरवाजा खुलता है। जेठी समाज के आशीष जेठी ने बताया- कोटा के राज परिवार में गुजरात के कच्छ की राजकुमारी का विवाह हुआ था, उनकी सुरक्षा के लिए गुजरात से वे लोग कोटा आए थे। उस दौरान यहां पर एक कुश्ती का आयोजन हुआ था, जिसमें विदेश से आए पहलवानों को हमारे पूर्वजों ने हरा दिया था। इससे खुश होकर राज परिवार ने उससे कोटा में रहने का आग्रह किया और उनके पूर्वजों को पूरी व्यवस्था दी गई। इसी दौरान कोटा में तीन अखाड़े बनाए गए, जिनमें से एक किशोरपुरा और दो नांता में हैं। नांता अखाड़े की परंपरा थी, रावण का मिट्‌टी का पुतला बनाकर उस पर दंगल करने की। यह परंपरा आज भी कायम है।
झालावाड़ जिले के झालरापाटन में मेला मैदान में रावण अपने परिवारजन के साथ लगभग दो सदियों से अडिग खड़ा है। 1840 में झालावाड़ के पहले राजा झाला मदन सिंह ने पत्थर और मिट्टी से रावण के कुनबे का निर्माण करवाया था। तब से अब तक रावण का कुनबा जैसा था, वैसा ही खड़ा है। हर साल इसे रंग-रोगन कर नया कर दिया जाता है।
जोधपुर के रावण का चबूतरा मैदान में 62 फीट के पुतले का दहन किया गया। जोधपुर के पूर्व राजपरिवार के सदस्य गज सिंह ने शाम 6:02 बजे अग्नि बाण चलाया। अग्नि बाण लगने पर दशानन की आंखों से अंगारे बरसने लगे। इस दौरान सीएम अशोक गहलोत भी मौजूद रहे। आचार संहिता के कारण मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अग्नि बाण नहीं चलाया। पिछले साल सीएम ने रॉकेट जलाकर रावण के पुतले का दहन किया था। जोधपुर नगर निगम उत्तर और दक्षिण की ओर से यह कार्यक्रम हुआ। दशहरा महोत्सव के लिए शाम 4 बजे से लोग रावण का चबूतरा ग्राउंड पर आना शुरू हो गए थे। इस दौरान विदेशी पर्यटक भी मौजूद रहे। रावण के पुतले बनाने वाले कारीगर मेहराज अंसारी ने बताया रावण के पुतले को धोती, जोधपुरी अचकन और जूतियां पहनाई गई। इसके साथ ही मेघनाद, कुंभकर्ण, शूर्पणखा और ताड़का के पुतले भी बनाए गए। इससे पहले, मंगलवार सुबह 11:00 बजे पूर्व राज परिवार के सदस्य मेहरानगढ़ दुर्ग पहुंचे और प्रभु श्रीराम और मां चामुंडा की पूजा-अर्चना की। दोपहर में विधिवत पूजा-अर्चना कर राज व्यास श्रीराम की सवारी को रवाना किया। विजयादशमी के मौके पर स्टेडियम प्रांगण में शाम 6:42 बजे रावण का दहन किया गया। आयोजकों ने बताया कि रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों को बनाने में करीब 1.45 लाख रुपए की लागत आई। सभी में आतिशबाजी के लिए पटाखे भी लगाए गए थे, जिससे 4 मिनट तक रावण जलता रहा। बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ रही।
अलवर के दशहरा मैदान में शाम 7:15 बजे 75 फीट के रावण के पुतले का दहन किया गया। इसके साथ मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों का भी दहन किया गया। पहली बार पुतलों के ऊपर चक्कर लगाए गए, जो 360 डिग्री घूमे। इसके बाद पटाखे चलाने के लिए बटन दबाया गया।

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