जयपुर। महिपाल सिंह राणा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (एआईआर 2016 एससी 3302) के मुकदमें में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा हाल में दिये गये फैसले के तहत भारत के विधि आयोग को यह निर्देश दिया गया है कि वह अधिवक्ता अधिनियम के तहत वकीलों पर अनुशासनात्मक नियंत्रण के लिए नियमन संबंधी प्रावधानों पर दोबारा गौर करे तथा उचित संशोधनों का सुझाव दे ताकि अधिनियम और समग्र बने एवं संसद को ऐसा कानून बनाने में सुविधा हो जिसके तहत प्रभावशाली नियमन के लिए प्राधिकारियों को सशक्त किया जा सके। आयोग ने 22 जुलाई, 2016 तारीख की एक नोटिस अपनी वेबसाइट पर डालकर सभी हितधारकों से सुझाव मांगे हैं कि किस तरह प्रणाली में सुधार संभव है। 3 अगस्त, 2016 को एक पत्र के द्वारा बार काउंसिल ऑफ इंडिया का भी इस मामले पर ध्यान आकर्षित किया गया है। सभी उच्च न्यायालयों के महापंजीयकों को भी 4 अगस्त, 2016 को ई-मेल द्वारा जानकारी दी गई है। साथ ही स्टेट बार काउंसिलों, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसियेशन और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकार्ड एसोसियोशन को भी ई-मेल भेजे गए हैं। विधि आयोग के अध्यक्ष ने सभी उच्च न्यायलयों के माननीय मुख्य न्यायाधीशों को भी पत्र भेज कर आग्रह किया है कि वे इस संबंध में आयोग के प्रयासों को अपने स्तर पर प्रसारित करें। इसके संबंध में भारी मात्रा में जवाब प्राप्त हुए हैं। बीसीआई द्वारा गठित सलाहकार समिति ने अधिवक्ता अधिनियम से संबंधित विभिन्न विषयों पर सुझाव दिये हैं। इनमें वकीलों और उनके संगठनों द्वारा किये जाने वाले बहिष्कार या काम से विमुख होने जैसी समस्याओं से निपटने के लिए कठोर उपाय शामिल हैं। इसके अलावा अनुशासन समिति, अदालतों में गैर कानूनी रूप से वकालत करने वालों पर लगाए जाने वाले जुर्माने को बढ़ाने, एक साल के पूर्व-पंजीकरण प्रशिक्षण और लॉ फर्मों तथा विदेशी वकीलों के नियमन संबंधी विषय भी शामिल किये गए हैं। इस संबंध में भारत के विधि आयोग ने 23 मार्च, 2017 को ‘दी एडवोकेट्स एक्ट, 1961 (रेगुलेशन ऑफ लीगल प्रोफेशन)’ शीर्षक से अपनी रिपोर्ट नम्बर 266 केंद्र सरकार को सौंप दी है। रिपोर्ट के चैप्टर XVII में विधि आयोग ने नियमन प्रणाली और नियमन निकायों आदि की समीक्षा करने की आवश्यकता पर जोर दिया है तथा अधिवक्ता अधिनियम में समग्र संशोधन करने का सुझाव दिया है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक, 2017 को भी जोड़ा है।