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नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी में आंतरिक कलह सामने आने लगी है। पंजाब-गोवा विधानसभा चुनाव के बाद दिल्ली के एमसीडी चुनाव में करारी हार से आप में बयानबाजी का दौर चल रहा है। वरिष्ठ नेता सीधे तौर पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता कुमार विश्वास, भगवंत मान, अमीनतुल्लाह, कपिल मिश्रा जैसे वरिष्ठ नेता चुनावों में लगातार हार को लेकर कुछ दिनों से बयानबाजी कर रहे हैं। एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप के अलावा अप्रत्यक्ष तौर पर आप संयोजक अरविंद केजरीवाल पर भी तंज कसे जा रहे हैं। एक तरह से हार के लिए केजरीवाल को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। एमसीडी चुनाव के बाद जिस तरह बड़े नेताओं ने बयानबाजी की है, उससे जाहिर है कि आप पार्टी में अंदरखाने माहौल ठीक नहीं है। जब कुमार विश्वास का बयान आया कि पार्टी को एमसीडी, गोवा, पंजाब चुनाव में हार के लिए गंभीर सोचना होगा। यह कोई ईवीएम में गड़बड़ी से हार नहीं है, बल्कि जनता हमसे खुश नहीं लगती। इस बयान के बाद विधायक अमानतुल्लाह ने कुमार विश्वास पर भाजपा का एजेन्ट बताते हुए पार्टी में गुटबाजी फैलाने और विधायकों के तोडऩे के आरोप भी लगाए। हालांकि अमानतुल्लाह का यह बयान उन पर ही भारी पड़ गया है। आप दिल्ली के अलावा पंजाब के विधायकों व नेताओं ने अमानतुल्लाह के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। विरोध को देखते हुए सीएम अरविंद केजरीवाल को बयान देना पड़ा कि कुमार विश्वास मेरा छोटा भाई है। पार्टी हार के कारणों पर चिंतन करेंगी। जनता से किए वादों पर खरी उतरने के लिए काम भी करेंगी। इस बयान से साफ संकेत मिलते हैं कि आप पार्टी के नेताओं व विधायकों का एक बड़ा धड़ा संतुष्ट नहीं है। यह भी सामने आ रहा है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली सरकार के साथ पार्टी की समस्त जिम्मेदारी भी खुद के हाथों में ले रखी है, जिसके चलते वे ना तो सरकार के कामकाज पर ध्यान दे पा रहे हैं और ना ही पार्टी को पूरा वक्त। पार्टी नेताओं का मानना है कि इस वजह से पार्टी कमजोर हो रही है। कार्यकर्ताओं में मायूसी है। दिल्ली सरकार जनता के कामकाज पर ध्यान देने के बजाय विरोध की राजनीति कर रही हैं। इसी के चलते पंजाब-गोवा में अच्छी स्थिति होने के बावजूद पार्टी को वो कारनामा नहीं कर पाई, जैसा दिल्ली में हुआ था। दिल्ली जैसा माहौल व कार्यकर्ताओं में जोश पंजाब-गोवा में था, लेकिन उस जोश को वोट में तब्दील नहीं कर पाए। इसके पीछे पार्टी की कई गलतियां रही। नवज्योत सिंह सिद्धू जैसे स्टार नेता को नहीं लेना भी एक भारी गलती रही। राजौरी गार्डन विधानसभा सीट और एमसीडी चुनाव में हार ने पार्टी को अंदर तक हिला दिया। आखिर दो साल में ऐसा क्या हो गया 90 फीसदी से अधिक सीटें जीतने वाली आप पार्टी एमसीडी चुनाव में एक चौथाई सीटें भी जीत नहीं पाई। साफ संकेत है, जिस उम्मीद के साथ जनता ने पार्टी को भरपूर साथ दिया था, वो उस पर खरी नहीं उतर पाई। इस बात को नेता व कार्यकर्ता भी समझते हैं। एक तरह से पार्टी में तानाशाही सी चल रही है। कुछ नेता ही पार्टी के सर्वेसर्वा हो गए हैं। इससे जी जान से जुटे रहने वाले कार्यकर्ता व नेता अब पार्टी से दूर होने लगे हैं। धीरे-धीरे बगावत के संकेत भी दिख रहे हैं। पार्टी के संस्थापक सदस्यों में रहे योगेश यादव, प्रशांत भूषण आदि के पार्टी छोडऩे के बाद अब दूसरा मौका है, जब पार्टी में उथल-पुथल मची हुई है। नेताओं ने बगावती तेवर अपनाए हुए हैं। इसे रोका नहीं तो यह बगावत का ज्वालामुखी कभी भी फट सकता है। पार्टी में कई बड़े नेता ऐसे हैं, जिन्हें कार्यकर्ता और जनता काफी पसंद करती है। लेकिन पार्टी ने उन्हें कभी आगे नहीं बढ़ाया। देखा जाए तो पार्टी में सिर्फ आप संयोजक व सीएम अरविंद केजरीवाल, डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, आशीष खेतान, आशुतोष को तवज्जो दे रही है, लेकिन सर्वाधिक भीड़ खींचने वाले कुमार विश्वास, भगवंत मान जैसे नेताओं को पार्टी ने कोई बड़ा पद या जिम्मेदारी अभी तक नहीं दी है। इससे भी कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। इसी नाराजगी और बयानबजी को देखते हुए आप संयोजक केजरीवाल ने आज सोमवार रात को पार्टी नेताओं की बैठक बुलाई है, जिसमें चुनावों में हार पर चर्चा होगी, साथ ही मीडिया में हो रही बयानबाजी और आरोप-प्रत्यारोप पर रोक लगाने, पार्टी फिर से जनता के बीच विश्वास कायम करे, इस पर भी गहन चिंतन की बात कही जा रही है। देखना है कि पार्टी में चल रहे विरोध को कैसे शांत करती है, साथ ही जनता का विश्वास जीतने के लिए क्या कदम उठाती है।

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