- राकेश कुमार शर्मा
जयपुर। दक्षिण भारत की राजनीतिक में सर्वाधिक तौर पर संवेदनशील राज्य की श्रेणी में आने वाले केरल प्रांत सियासी हत्याओं को लेकर फिर चर्चाओं में है। ४ दिन पहले ही भाजपा के एक युवा कार्यकर्ता रेमिथ को सरेआम धारदार हथियारों से काट डाला गया। भाजपा, आरएसएस के साथ कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर हमले हो रहे हैं। हाल ही युवक कांग्रेस के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता राजीव को सरेआम धारदार हथियारों से काट दिया गया। इससे पहले आरएसएस के स्वयं सेवक सुजीत को उसके माता-पिता और भाई के सामने धारदार हथियारों से हमला किया, जिसकी बाद में अस्पताल में मौत हो गई। उसके माता, पिता और भाई इस हमले में बुरी तरह से घायल हो गए। पुलिस ने भाजपा व कांग्रेस कार्यकर्ताओं की हत्या के मामले में सीपीएम के कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया है। इन हमलों की प्रतिक्रिया स्वरुप वामदलों व उनसे जुड़े संगठनों पर भी हमले हो रहे हैं। यह पहला मौका नहीं है, जब इस तरह से राजनीतिक रुप से हमले हो रहे हैं। इससे पहले भी कई सियासी खूनी संघर्ष होते रहे हैं, जिनमें अब तक सभी दलों के सैकड़ों कार्यकर्ताओं की जानें जा चुकी हैं। हर कोई एक-दूसरे दल पर कार्यकर्ताओं की हत्या व हमले का आरोप लगाता रहा है। मई-2016 में विधानसभा चुनाव से पहले भी राजनीतिक हमले बढ़ गए थे। वहीं अब केरल में वामदल सरकार बनने के बाद हमलों में फिर से तेजी आई है। अधिकांश हमले भाजपा व आरएसएस कार्यकर्ताओं पर हो रहे हैं। भाजपा कार्यकर्ता रेमिथ की हत्या के बाद भाजपा ने केरल में एक दिन का बंद रखकर जबरदस्त विरोध जताया, वहीं इन हमलों के पीछे अतिवादी वामपंथी संगठनों का हाथ होने के आरोप लगाया है। हालांकि वामदल सरकार और संगठन इन आरोपों से इनकार कर रहे हैं। लेकिन रेमिथ की हत्या के बाद केरल का राजनीतिक माहौल गरमा गया है। भाजपा व आरएसएस ने इसे राजनीतिक हत्या करार देते हुए संघर्ष का ऐलान किया है। उधर केरल सरकार ने कुछ लोगों को गिरफ्तार किया है।
भाजपा व आरएसएस कार्यकर्ताओं की हत्याओं का मसला तो भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में उठा और वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने हमले की भत्र्सना करते हुए सीबीआई से जांच करवाने की गुहार की। राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा, कि इन हमलों से पार्टी व कार्यकर्ता डरेंगे नहीं, बल्कि विध्वंसकारी ताकतों के खिलाफ पूर जोर तरीके से लड़ेंगे। केरल में बड़े नेताओं व कार्यकर्ताओं की हत्याओं के मामले में राज्य सरकार की उदासीनता को देखते हुए केन्द्र सरकार ने कुछ मामलों की जांच सीबीआई से करवा रही है। केरल में हर साल बड़ी संख्या में राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं की हत्याएं होती है। विधानसभा व लोकसभा चुनाव में यह सिलसिला ज्यादा हिंसक और खूनी हो जाता है। हालांकि केरल, पश्चिम बंगाल में ही राजनीतिक दलों में यह संघर्ष ज्यादा दिख रहा है। बंगाल में गठजोड करके चुनाव लड़ रहे वामपंथी और कांग्रेस का सीधा मुकाबला सत्तारुढ तृणमूल कांग्रेस के बीच में है। कुछ क्षेत्रों में भाजपा भी इन सभी दलों को चुनौती दे रखी है। केरल की तरह बंगाल में भी खूनी राजनीतिक संघर्ष का इतिहास रहा है, लेकिन वहां वामदलों व तृणमूल कांग्रेस के बीच यह संघर्ष ज्यादा रहा है। हालांकि केरल की अपेक्षा यहां राजनीतिक झड़पों व हत्याएं कम है। केरल में तो वामदलों, कांग्रेस और आरएसएस-भाजपा के बीच सीधा संघर्ष होता रहा है। कोई अपना वजूद बचाने के लिए दूसरे दलों के कार्यकर्ताओं पर हमले करके उन्हें रोकना चाह रहा है तो कोई अपनी पैठ बढ़ाने के लिए दूसरे दलों की किलेबंदी में सेंध मार रहा है। आजादी के बाद से चल रहा यह सिलसिला आज तक बदसूरत चल रहा है। धारधार हथियारों के साथ अब पिस्टल-बमों से हमले होने लगे हैं। केरल में शुरु से ही वामपंथी और कांग्रेस विचारधारा हावी रही है। दोनों विचारधाराओं से जुड़े दलों यूडीएफ, एलडीएफ, सीपीआई, सीपीआई (एम) के हाथों में केरल की बागडोर रही है। करीब दो दशक से धर्म पर आधारित राजनीतिक के दम पर केरल में मुस्लिम लीग ने काफी प्रभाव जमा लिया है। कुछ इतने ही सालों से भाजपा और आरएसएस ने भी केरल में अपना वजूद खड़ा कर लिया है। मुस्लिम लीग, भाजपा-आरएसएस और दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों के उभार से वामपंथी और कांग्रेस की अगुवाई वाले दलों में वोट प्रतिशत घट रहा है, बल्कि उनकी विचारधारा की धार भी कम होने लगी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राज्य की राजनीति और सत्ता पर पकड़ बनाए रखने और अपने वोटर प्रतिशत को बरकरार रखने के लिए राजनीतिक हत्याओं का दौर चल रहा है, बल्कि लगातार बढ़ता जा रहा है। आजादी के बाद कांग्रेस और वामपंथी कार्यकर्ताओं में संघर्ष का दौर रहा है, वहीं कुछ सालों से तेजी से राज्य में पकड़ बना रही भाजपा व आरएसएस पर भी हमले होने लगे हैं। खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक आजादी से अब तक केरल में राजनीतिक झड़पों में करीब एक हजार से अधिक मौतें हो चुकी है। जिसमें कांग्रेस और भाजपा-आरएसएस से जुड़े संगठनों के कार्यकर्ता अधिक हैं। हालांकि वामदलों के कार्यकर्ता भी बड़ी संख्या में हताहत हुए हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि एक दशक से आरएसएस व भाजपा का केरल में वोट प्रतिशत बढ़ा है। हर क्षेत्र में इनका संगठन मजबूत हो रहा है, चाहे वह शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों हो या संगठित या असंगठित क्षेत्र। केरल के मुस्लिम समाज पर मुस्लिम लीग का खासा प्रभाव है। ईसाई व अनूसूचित जाति-जनजाति का कांग्रेस व दूसरे क्षेत्रीय दलों के प्रति विश्वास कायम है। हिन्दू समाज पर वामदलों की खासी पकड़ है। आज भी सैकड़ों ऐसे गांव है, जहां सिर्फ वामदलों का ही दबदबा है। ऐसे क्षेत्रों में आरएसएस-भाजपा ने सेंधमारी करके वामदलों को चुनौती देना शुरु कर दिया है। वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने छह फीसदी वोट हासिल किए। लोकसभा चुनाव में यह आंकडा ग्यारह फीसदी तो हाल ही हुए निकाय चुनाव में भाजपा के पक्ष में 17 फीसदी मत प्रतिशत बढ़ा। जैसे-जैसे आरएसएस-भाजपा का प्रभाव बढ़ रहा है, वहीं वामदलों के साथ कांग्रेस नेता भी भाजपा के लगातार बढ़ते जनाधार से न केवल चिन्तित है, बल्कि विधानसभा चुनाव में भाजपा का खाता नहीं खुल जाए, इसके लिए अंदरखाने वामदलों व कांग्रेस ने गठजोड भी कर लिया है। इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा ने करीब 18फीसदी से अधिक वोट हासिल किए हैं और पहली बार एक सीट पर भाजपा ने जीत हासिल की है। यही वजह है कि संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमले हो रहे हैं, ताकि उन्हें रोका जा सके। सियासी संघर्ष का यह खेल तो कब खत्म होगा, कहा नहीं जा सकता, लेकिन इतना जरुर है कि वाम और कांग्रेस विचारधारा के इस प्रांत में संघ-भाजपा ने अपनी पैठ जमा ली है और वह वाम-कांग्रेस को चुनौती देने की स्थिति में आ गई है।
- खूनी संघर्ष के लिए बदनाम कन्नूर
केरल का कन्नूर जिला राजनीतिक हत्याओं के लिए कुख्यात है। यहां आरएसएस और सीपीएम के बीच हत्याओं व हमले के सर्वाधिक मामले सामने आए हैं। भाजपा के एक युवा कार्यकर्ता रेमिथ की हत्या कन्नूर में हुई। बताया जाता है कि गत तीन दशक के दौरान यहां राजनीतिक झड़पों में करीब दो सौ लोगों की हत्याएं हो चुकी है। हर कोई दल खुद के कार्यकर्ताओं की हत्याएं होने और इसके लिए दूसरे दलों को जिम्मेदार बताता रहा है। इस बदले की आग में केवल कार्यकर्ता ही नहीं सुलग रहे हैं, बल्कि बड़े नेता भी बख्शे नहीं जा रहे हैं। युवा मोर्चा के उपाध्यक्ष जय कृष्णन को उनके छात्रों के सामने ही मार डाला था। सियासी जंग की यह लड़ाई विचारधारा और पार्टी की पैठ बनाने को लेकर है। असल में आरएसएस उन गांवों में पैठ बनाना चाहती है, जहां सीपीएम का पूरी तरह क़ब्ज़ा है। केरल में अब यह बात पुरानी हो चुकी है कि कन्नूर के जिस गांव पर सीपीएम की पैठ रही है, वहां विरोधी दल के लोग चुनाव प्रचार तक नहीं कर सकते थे। सीपीएम की इस राजनीतिक किलेबंदी को तोडऩे में आरएसएस पूरी तरह से लगा हुआ है। सीपीएम व दूसरे वामपंथी दलों की लम्बे समय तक राज करने के बावजूद केरल में गरीबी, आर्थिक असमानता, मुस्लिम तुष्टिकरण नीति, बेकारी को मुद्दा बनाकर आरएसएस सीपीएम के घर में सेंधमारी कर रही है।
- केरल: प्रमुख सियासी हत्याएं
19 फरवरी, 2016 को आरएसएस कार्यकर्ता सुजीत की उनके परिवार के सामने ही हत्या कर दी। हत्या का संदेह सीपीएम कार्यकर्ताओं पर।
3 नवम्बर, 2015 को सीपीएम और आल इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के कार्यकर्ताओं में झड़प के दौरान बम विस्फ़ ोट में लीग के नेता कुन्ही की मौत।
3 सितंबर 2014 को आरएसएस कार्यकर्ता मनोज की हत्या। सीपीएम कार्यकर्ताओं पर शक जताया।
30 अगस्त, 2013 को तिरुअनंतपुरम के एक कॉलेज में एसएफआई व एबीवीपी कार्यकर्ताओं के बीच झड़प के दौरान बम हमले में साजिन मोहम्मद की मौत हो गई।
6 नवम्बर, 2013 को सीपीएम के नारायनन नायर की हत्या। संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं पर हत्या का आरोप। हत्या के विरोध में निकाले मार्च के दौरान सीपीएम कार्यकर्ताओं ने आरएसएस कार्यकर्ता विनोद पर जानलेवा हमला किया।
18 मार्च, 2012 को 23 साल के भाजपा कार्यकर्ता नेडुमकंडम अनीश रंजन की चाकू गोदकर हत्या कर दी गई। दो सीपीएम कार्यकर्ता गिरफ्तार।