नयी दिल्ली : सीबीआई ने रेयान इंटरनेशनल स्कूल में सात वर्षीय बच्चे की हत्या के आरोपी और स्कूल के ही 11वीं कक्षा के छात्र की जमानत याचिका का आज गुड़गांव की एक अदालत में विरोध किया। जांच एजेंसी ने कहा कि उस पर एक वयस्क के तौर पर मुकदमा चलाने के लिए किशोर न्याय बोर्ड का हालिया आदेश उसकी मानसिक परिपक्वता और उसके जघन्य अपराध को बयां करता है। सीबीआई ने जमानत याचिका को इस आधार पर खारिज करने की मांग की है कि बोर्ड ने आरोपी छात्र को वैधानिक जमानत से इनकार करते हुए एक बहुत ही तर्कसंगत आदेश जारी किया है।
दरअसल, बोर्ड ने 20 दिसंबर को कहा कि रेयान इंटरनेशनल स्कूल के 16 वर्षीय छात्र पर एक वयस्क की तरह मुकदमा चलाया जाए। 16 वर्षीय यह छात्र सात वर्षीय प्रद्युम्न ठाकुर की हत्या का आरोपी है। जांच एजेंसी ने कहा कि आरोपी पर वयस्कों की तरह मुकदमा चलाने का अदालती आदेश काफी मायने रखता है क्योंकि यह उसकी मानसिक परिपक्वता और उसके जघन्य अपराध को बयां करता है। सीबीआई ने कहा कि जमानत के लिए दायर आरोपी की अपील न्याय के हित में खारिज की जा सकती है।
अतिरिकत सत्र न्यायाधीश जसबीर सिंह कुंडु ने कहा कि वह आरोपी की अपील पर छह जनवरी को विस्तार से दलीलें सुनेंगे। आरोपी ने उसे जमानत देने से इंकार करने के बोर्ड के आदेश के खिलाफ यह अपील दायर की है। जांच एजेंसी ने अपील पर यह दलील एक लिखित जवाब में दी, जिसके बाद अदालत ने मामले को अगली सुनवाई के लिए टाल दिया क्योंकि आरोपी के वकील ने एक स्थगन की मांग की थी। किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और सुरक्षा) कानून, 2015 के तहत बलात्कार, हत्या, डकैती और हत्या, जैसे गंभीर अपराध ….. जिनमें न्यूनतम सजा सात वर्ष हो ….. के आरोपी किशोरों के लिए आयु सीमा को 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष कर दिया था।
बोर्ड ने पीजीआई रोहतक के एक मनोचिकित्सक की सदस्यता वाली एक समिति गठित की थी ताकि उसे आरोपी के संबंध में विशेषज्ञ राय मिल सके। किशोर को सीबीआई ने पिछले महीने हिरासत में लिया था। समिति ने दो सीलबंद लिफाफों में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। सीबीआई का दावा है कि किशोर ने इस वारदात को इसलिए अंजाम दिया कि स्कूल बंद हो जाए ताकि अभिभावक – शिक्षक मुलाकात कार्यक्रम और एक परीक्षा टल जाए। प्रद्युम्न के पिता बरून ठाकुर की ओर से पेश होते हुए अधिवक्ता सुशील टेकरीवाल ने जमानत की अपील का विरोध करते हुए कहा कि जांच पूरी होनी अभी बाकी है।
वहीं, बाल अधिकार पर काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ने कहा है कि किशोर आरोपी को सुधरने के लिए एक मौका दिया जाना चाहिए। ‘सेव द चिल्ड्रेन’ नाम के गैर सरकारी संगठन ने एक बयान में कहा कि अपराध के लिए किशोरों को जिम्मेदार ठहराना विवेकपूर्ण नहीं है। वक्त आ गया है कि हम अपनी किशोर न्याय प्रणाली को मजबूती से काम करने योग्य बनाएं। इसने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत को बच्चों के अपराधीकरण के मामलों से रूबरू होना पड रहा है।