कोच्चि। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) को किसी फिल्म के पुन: परीक्षण तक उसे रोके रखने का अधिकार है, ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि वह प्रमाणन की कसौटी पर खरी उतरती है। हालांकि अदालत ने सेंसर बोर्ड और तिरुवनंतपुरम के उसके क्षेत्रीय अधिकारी को निर्देश दिए हैं कि फैसले की प्रति प्राप्त करने की तिथि से तीन हफ्तों के भीतर अधिनियम और नियमों के प्रावधानों के मुताबिक फिल्म के पुन: परीक्षण के लिए जरूरी कदम उठाए जाएं। न्यायमूर्ति शाजी पी चाली ने मलयाली फिल्म एस दुर्गा के निर्माता व निर्देशक द्वारा दाखिल की गई याचिका पर यह फैसला दिया। याचिका में सीबीएफसी द्वारा फिल्म के प्रमाणन को स्थगित करने के निर्णय को चुनौती दी गई थी। उच्च न्यायालय ने चलचित्र (प्रमाणन) नियमों के तहत सीबीएफसी की शक्तियों का हवाला देते हुए कहा कि बोर्ड के पास उचित कार्रवाई के लिए पर्याप्त शक्तियां हैं।
अदालत ने 11 जनवरी को यह फैसला दिया था। उच्च न्यायलय ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि अगर याचिकाकर्ता पूर्व में मिले प्रमाणन के आधार पर विभिन्न मंचों के जरिए फिल्म को लोगों को दिखाना चाहते हैं तो उन्हें ऐसा करने की जल्द से जल्द इजाजत दी जाए। अपनी याचिका में निर्माता शाजी मैथ्यू और निर्देशक सनल कुमार शशिधरन ने कहा था कि वे सीबीएफसी द्वारा 28 नवंबर को फिल्म के प्रमाणन को रोकने के लिए अपनाए गए अवैध, मनमाने और कठोर तरीके से बेहद हताश हैं। सेंसर बोर्ड ने 28 नवंबर को विवादित फिल्म के पुन: परीक्षण के आदेश दिए थे जिसके बाद अदालत द्वारा आईएफएफआई में फिल्म की स्क्रीनिंग के लिए दिए गए आदेश का कोई महत्त्व नहीं रह गया था।