-बाल मुकुन्द ओझा
यह सर्वविदित है की राजस्थान में सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी भाजपा में सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। दोनों पार्टियों के हाई कमान अपनी अपनी पार्टियों में चेपा सांधी कर रहे है। चूँकि विधान सभा चुनाव नज़दीक है ऐसी स्थिति में सियासी सरगर्मियां तेजी पर है। कांग्रेस में सचिन पायलेट और भाजपा में वसुंधरा राजे अपनी अपनी पार्टियों से नाराज चल रहे है जिनकी नाराजगी दूर करने के प्रयास अपने परवान पर है। कांग्रेस ने हाल ही अपनी एक उच्च स्तरीय बैठक में सचिन पायलेट की नाराजगी दूर करने का भरसक प्रयास किया। सचिन का पूरा मामला पूर्व की भांति राहुल और खडग़े पर छोड़ दिया गया। अब ये नों सर्वोच्च नेता तय करेंगे की सचिन को किस पोस्ट पर काबिज किया जाये। बहरहाल सचिन ने भी इस पर संतुष्टि जाहिर की है। इसी भांति भाजपा येन केन प्रकारेण अपनी नेता वसुंधरा राजे को राजी करने का प्रयास कर रही है ताकि राजस्थान में नेताओं के मन मुटाव दूरकर सत्ता हासिल की जाये। वसुंधरा राजे खुद को स्वाभाविक चेहरा मान रही है। मगर रास्ते में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुन मेघवाल, राजेंद्र राठौड़, सतीश पूनिया और किरोड़ी मीणा अपनी टांग फंसाये हुए है। भाजपा आलाकमान फिलहाल किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में है। ऐसी स्थिति में यह विवाद जल्द नहीं निपटा तो पार्टी को चुनावों में नुक्सान उठाना पड़ सकता है। यह सच है की कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों में आपसी घमासान लाख चेष्टा के बाद भी रुकने का नाम नहीं ले रहा है। विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए भाजपा जी तोड़ कोशिश में लगी है वहीं लोक कल्याणकारी योजनाओं को प्रदेश में अमलीजामा पहनाकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एक बार फिर सत्ता हासिल करने के प्रयासों में जुटे हैं। मगर दोनों ही पार्टियों में आपसी गुटबंदी उनके प्रयासों को पलीता लगाने में पीछे नहीं है। भाजपा आलाकमान ने अपने प्रदेश स्तर के नेताओं को एकता के मंत्र दिए मगर इन मंत्रों का नेताओं पर कोई प्रभाव फ़िलहाल तो परिलक्षित नहीं हो रहा है। जेपी नड्ढा ने साफतौर पर कहा है अनुशासन तोड़ने वालों को बक्शा नहीं जायेगा। भाजपा में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपनी अलग डफली बज़ा रही है। वसुंधरा विरोधी खेमे को केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का भी समर्थन प्राप्त है। इन नेताओं का संगठन पर कब्जा है। वसुंधरा समर्थक विधायक और पूर्व मंत्री अपनी नेता को सीएम फेस बनाकर अगला चुनाव लड़ने की वकालत कर रहे है तो दूसरा खेमा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के फेस पर चुनाव लड़ने की बात पर अड़ा हुआ है। भाजपा आलाकमान भी बिना सीएम फेस के एक होकर चुनाव लड़ने की वकालत कर रहा है। इसी बात को लेकर भाजपा बंटी हुई है। दोनों खेमे एक दूसरे पर वार करने से नहीं चूक रहे है। मोदी और अमित शाह किसी भी स्थिति में वसुंधरा के पक्ष में नहीं है। विपक्षी खेमे में आधा दर्ज़न सीएम के दावेदार है। भाजपा सांसद किरोड़ी मीणा अपने लड़ाकू अंदाज़ के लिए जाने जाते है। वे विभिन्न जन समस्याओं को लेकर निरंतर संघर्षशील है। वे भी सीएम के दावेदार है। पूनिया पहली बार के विधायक है। अब बचे सात बार के विधायक राजेंद्र राठौड़ जो प्रदेशभर में भ्रमण कर गहलोत सरकार के विरुद्ध आंदोलन
की अलख जगाये हुए है।
कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों के आलाकमान के असंतुष्टों की गतिविधियां थामने पर असफल सिद्ध हुए है। भाजपा में वसुंधरा राजे पहले ही अलग थलग पड़ी है। भाजपा आलाकमान राजे को राज्य की सियासत से दूर रखना चाहता है मगर राजे खेमा अपनी नेता को प्रदेश में ही देखना चाहता है। यही स्थिति कांग्रेस में है। गहलोत खेमा पायलट को राज्य की राजनीति से बेदखल करना चाहता है जो पायलट और उनके समर्थकों को किसी भी हालत में स्वीकार नहीं है। इस प्रकार देखा जाये तो दोनों ही सियासी पार्टियों में सिर फुटौअल जोरों से है और कोई भी हार मानने या तनिक भी झुकने को तैयार नहीं दिखता।
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