नई दिल्ली। देश की पहली महिला शिक्षिका के नाम से ख्यात समाज सेविका व कुरीतियों के खिलाफ लड़ाई में खुद को आगे रखने वाली सावित्री बाई फुले की आज समूचा राष्ट्र 186वीं जयंती मना रहा है। वहीं उनके इस साहसिक, प्रेरणास्पद व महिला सशक्तिकरण के कार्य को खुद गूगल ने याद कर सलाम किया है। यही वजह है कि गूगल ने जो रंगीन डूडल बनाया है। उसमें सावित्री बाई फुले समाज के सभी वर्ग की महिलाओं को अपने पल्लू में समेटे नजर आ रही है। सावित्री बाई फुले ने उस दौर में वह कर दिखाया जो सोचना भी असंभव ही जान पड़ता था। सावित्री बाई ने महिला उत्थान व महिला शिक्षा को लेकर जो कार्य किया। वह अनुकरणीय प्रयास है। सावित्री बाई का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थित एक छोटे से गांव नायगांव में 3 जनवरी 1831 को एक दलित परिवार में हुआ। उस दौर में देश में अशिक्षा सहित बाल विवाह, छूआछूत, सती प्रथा जैसी कुरीतियों का बोलबाला था। यही वजह रही कि महज 9 साल की उम्र में 1840 में उनका विवाह विवाह 13 वर्षीय ज्योतिराव फुले से कर दिया गया। लेकिन सावित्री बाई ने तो शुरू से ही कुरीतियों के साथ संघर्ष कर उनके खात्मे की मंशा मन में ठान रखी थी। सामाजिक भेदभाव व कई अवरोधों के बाद भी सावित्री बाई ने अपनी मेहनत व लगन को उनके पति व क्रांतिकारी नेता ज्योतिराव फुले ने भांप लिया। उन्होंने सावित्री बाई को पढऩे के लिए प्रेरित कर उनकी शिक्षा को पूरा कराया। शिक्षा पूरी करने के बाद सावित्री बाई ने देश में महिला शिक्षा का ग्राफ ऊंचा करने व सभी को शिक्षित करने का काम अपने हाथों में लिया। बाद में दोनों ने मिलकर 1848 में पूणे में बालिका विद्यालय की नींव रखी। उसके बाद तो वे निरंतर आगे ही बढ़ती रही और बालिका शिक्षा के लिए पूणे में 17 और स्कूलों की स्थापना की। उन्होंने सती प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह निषेध सरीखी कुरीतियों के खिलाफ भी बिगुल बजाया। उनकी इस मुहिम को देखकर अंग्रेज अफसरों ने उनको सहयोग किया। कहा भी जाता है कि फुले दंपत्ति ने जिस यशंवत राव को गोद लिया वो एक ब्राह्मण विधवा का पुत्र था। यशंवत राव के साथ मिलकर ही 1897 में सावित्री बाई ने प्लेग के मरीजों के उपचार के लिए अस्पताल भी खोला। मरीजों की देखभाल के दौरान वह खुद बिमार हो गई। जहां 10 मार्च 1897 को उनका निधन हो गया।