नयी दिल्ली। झारखंड में हाल में कथित रूप से भुखमरी के चलते एक बच्ची की मौत के संदर्भ में मानव संसाधन विकास मंत्रालय की एक शीर्ष अधिकारी ने आज कहा कि स्कूल की छुट्टियों के दौरान भी मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराने की संभावनाओं का रास्ता तलाशा जाना चाहिए। अधिकारी ने कहा कि यह स्पष्ट है कि 11 वर्षीय बच्ची मध्याह्न भोजन से वंचित नहीं थी जबकि यह भी सत्य है कि वह स्कूल में छुट्टियों के दौरान इसका लाभ नहीं ले सकी और इसी के चलते उसकी मौत हुई।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एचआरडी) के अंतर्गत स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग में विशेष सचिव रीना रे ने कहा, ‘‘क्या हम अत्यंत गरीब तबके के लिये कुछ ऐसा नहीं सोच सकते जिसमें हम उन्हें छुट्टियों के दौरान भी मध्याह्न भोजन उपलब्ध करा सकें?’’ मध्याह्न भोजन योजना के तहत कक्षा एक से आठ में पढ़ने वाले छह से 14 साल के हर स्कूली बच्चे को निश्चित अधिसूचित पोषण मानकों के आधार पर पका हुआ गर्म भोजन उपलब्ध कराया जाता है। यह योजना एचआरडी मंत्रालय के स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के अंतर्गत आती है। अधिकारी यहां राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा आयोजित बच्चों, स्तनपान कराने वाली माताओं और गर्भवती महिलाओं के संदर्भ में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 को लागू करने के विषय पर आयोजित एक दिवसीय सम्मेलन में बोल रही थीं। उन्होंने माना कि इस तरह के कदम में भारी वित्तीय खर्च आने की संभावना है और उनके विभाग द्वारा संचालित यह योजना पहले से ही ‘‘गंभीर वित्तीय संकट’’ से जूझ रही है। इस अवसर पर महिला एवं बाल विकास सचिव राकेश श्रीवास्तव ने उल्लेख किया कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने हाल में जिलाधीशों को बच्चों में कुपोषण की स्थिति की समीक्षा के लिये तीन महीने में कम से कम एक बार बैठक करने का निर्देश दिया है।