परकोटे के बाहर चांदपोल गेट के पास सबसे पुरानी आवासीय कॉलोनी सीकर हाउस, सिंधी कॉलोनी, हाजी कॉलोनी और आस-पास की कॉलोनियां जयपुर नगर निगम के अफसरों की लापरवाही और सांठगांठ से अवैध कॉमर्शियल कॉम्पलैक्स में तब्दील हो गई। भू-कारोबारियों व अफसरों ने क्षेत्र में करीब एक सौ से अधिक अवैध इमारतें खड़ी करवाकर खुद तो चांदी कूट ली, लेकिन स्थानीय लोगों का सुख-चैन छीन लिया। स्थिति यह है कि घरों के आगे ग्राहक-दुकानदार वाहन खड़े कर जाते हैं, जिससे आए दिन झगड़े होने लगे। वहीं पार्किंग नहीं होने से सड़क ही पार्किंग स्टैण्ड बन गई है। रोज जाम लगता है। कानून व्यवस्था भी बिगड?े लगी है। आवासीय क्षेत्र में हो रहे अवैध निमार्णों और बन चुके अवैध कॉम्पलैक्सों को लेकर हाईकोर्ट के नोटिस से स्थानीय लोगों में आस बंधी है कि इस आवासीय क्षेत्र में अवैध कॉम्पलैक्सों के कारोबार पर रोक लगेगी और जो बन चुके हैं, वे ध्वस्त या सील होंगे।
जनप्रहरी एक्सप्रेस
जयपुर। शहर के चांदपोल बाजार से सटी आवासीय कॉलोनी सीकर हाउस व दूसरी आवासीय कॉलोनियों में बन चुके अवैध कॉमर्शियल इमारतों और निमार्णाधीन अवैध कॉम्पलैक्सों पर गाज गिरेगी। राजस्थान हाईकोर्ट ने अवैध वाणिज्यिक इमारतों को लेकर जयपुर नगर निगम आयुक्त, डीएलबी सचिव और डिप्टी कमिश्नर विद्याधर नगर निगम जोन कार्यालय को नोटिस देकर इस संबंध में जवाब मांगा है। हाईकोर्ट ने सीकर हाउस निवासी मनोज गोयल (मैसर्स जगदम्बा स्टोर्स) की रिट याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई के बाद ये नोटिस दिए हैं। याचिका में सीकर हाउस में कॉमर्शियल कॉम्पलैक्स भूखण्ड के मालिक दुर्गा देवी अग्रवाल, लक्ष्मी देवी अग्रवाल व पूनम देवी अग्रवाल निवासी ए-47, नारायण संगतानी (ए-55), पिंकसिटी मोडलिंग प्राइवेट लिमिटेड (बी-14) के डायरेक्टर विमल गुप्ता, विमल गुप्ता (ए-39), मैसर्स दून वैली पम्पस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक ओमप्रकाश डूंडलोद (ए-56), मक्खन लाल अग्रवाल (ए-43), प्रकाश चन्द्र अग्रवाल (ए-44), मदन चौधरी (ए-5), सुरेश चौधरी (ए-11) को प्रतिवादी बनाया है। याचिका में क्षेत्र में हुए अवैध निमार्णों को तोडने और सील किए जाने की गुहार की है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अरविन्द शर्मा ने कोर्ट में बताया कि सीकर हाउस कपड़ा मार्केट में तेजी से अवैध कॉमर्शियल कॉम्पलैक्स खड़े किए जा रहे हैं। जिससे क्षेत्र की शांति भंग होने लगी है। भूखण्ड मालिक भू-कारोबारियों से मिलकर जयपुर नगर निगम की मंजूरी के बिना और भवन निर्माण नियमों की अवहेलना करते हुए इमारतें खड़ी कर रहे हैं। चार साल पहले ए-५६ को नगर निगम ने अवैध निर्माण मानते हुए सीज कर दिया था, लेकिन सील खुलने के बाद फिर से शपथ पत्र के विपरीत व्यावसायिक कार्य हो रहे हैं। इसी तरह ए-47 में भी अवैध इमारतें खड़ी कर दी गई। वो भी पार्किंग व सेटबैक को छोड़े बिना ही। ए-39 में भी पार्किंग स्थल व सेटबैक को कवर करते हुए अवैध निर्माण कर लिया गया है। ऐसे सभी अवैध निमार्णों को लेकर जयपुर नगर निगम के अफसरों व अभियंताओं को शिकायतें दी गई, लेकिन इनके द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई, जिससे क्षेत्र में नियम विरुद्ध तरीके से अवैध निमार्णों की प्रवृत्ति बढ़ रही है। याचिका में ऐसे सभी अवैध निमार्णों को ध्वस्त एवं सील करने की गुहार की गई है। हाईकोर्ट ने संबंधित पक्षकारों व नगर निगम से जवाब मांगा है। हाईकोर्ट के इस फैसले से स्थानीय लोगों में आस बंधी है कि आवासीय क्षेत्र में अब अवैध व्यावसायिक गतिविधियों पर रोक लग सकेगी। जो अवैध निर्माण बन चुके हैं, उन पर भी कार्रवाई हो सकेगी। इससे रोज होने वाले ट्रैफिक जाम और घरों के बाहर वाहन खड़े होने की समस्या से निजात मिलेगी। हाईकोर्ट के आदेश पर ही जयपुर की आवासीय कॉलोनी लालकोठी में कॉमर्शियल गतिविधियां पर रोक लग पाई। सी.स्कीम, कैलाशपुरी जैसे आवासीय क्षेत्रों में भी व्यावसायिक गतिविधियां व कॉम्पलैक्स बन्द हो चुके हैं।
कोर्ट स्टे की आड़ में खडी करते रहे अवैध बिल्डिंगें
विद्याधर नगर निगम जोन कार्यालय के अधीन आने वाली आवासीय कॉलोनी सीकर हाउस, सिंधी कॉलोनी, हाजी कॉलोनी और पावर हाउस रोड में धडल्ले से अवैध निर्माण हो गए हैं। शिकायतों के बाद नगर निगम की विजीलैंस शाखा के निरीक्षक व निगम के अभियंता रिपोर्ट में अवैध निर्माण की बात स्वीकार कर रहे हैं, लेकिन मिलीभगत के चलते महापौर अशोक लाहोटी, नगर निगम आयुक्त, विद्याधर नगर निगम जोन उपायुक्त,विजीलैंस आयुक्त, डीएलबी सचिव व निदेशक ने कोई कार्रवाई नहीं की। अफसर अपने बचाव में अवैध निर्माण सील करने और ध्वस्त करने के नोटिस तो जारी करते रहे, लेकिन एकाध मामलों को छोड़ किसी भी अवैध निर्माण को ना तो रोका और ना ही सील-ध्वस्त किया। कागजों में ही अफसर,कर्मचारी अवैध निमार्णों को रोकने की कार्रवाई में लगे हैं। ज्यादा शिकायत होने पर निगम अफसरों की सलाह पर भू-कारोबारी कोर्ट से स्टे लेकर आ जाते हैं। कोर्ट स्टे की आड़ में अवैध निर्माण को पूरा करते रहे। कोर्ट आदेश की पालना भी नगर निगम प्रशासन ने कभी भी नहीं की, जिसके चलते सीकर हाउस व आस-पास की कॉलोनियां अवैध कॉमर्शियल कॉम्पलैक्स में तब्दील हो गई।
सुप्रीम कोर्ट-हाईकोर्ट आदेश की अवहेलना
आवासीय क्षेत्र में कॉमर्शियल गतिविधियों और कॉमर्शियल कॉम्पलैक्स, अवैध निर्माण एवं अतिक्रमण को लेकर सुप्रीम कोर्ट और राजस्थान हाईकोर्ट कई अहम फैसले दे चुके हैं। आवासीय कॉलोनी में बिना संबंधित निकाय की अनुमति बिना कॉमशिज्यल कॉम्पलैक्श नहीं बन सकते और ना ही कॉमशिज्यल गतिविधियां चल सकती है। कोर्ट ऐसे अवैध निर्मार्णों को ध्वस्त करने, सील करने और रोक लगाने के आदेश दे चुका है। कुछ महीने पहले राजस्थान हाईकोर्ट ने सिविल रिट 1154/2004 में आदेश दिए हैं कि किसी भी सूरत में मास्टर प्लान में तब्दील नहीं होनी चाहिए। आवासीय क्षेत्रों में कॉमशिज्यल गतिविधियों को आम जनता के खिलाफ बताते हुए कहा कि इन्हें रोकने की जिम्मेदारी सरकार और निकाय संस्थाओं की है। ऐसा नहीं करने वालों के खिलाफ कोर्ट सख्त कानूनी कार्रवाई अमल में लाए।
जनप्रहरी एक्सप्रेस ने उठाया था मामला
सीकर हाउस और आस-पास की आवासीय कॉलोनियों में अवैध निर्माण और इमारतें खड़ी होने से स्थानीय लोगों को हो रही तकलीफों को श्रृंखलाबद्ध समाचार प्रकाशित करके प्रमुखता से उठाया था। इन समाचारों में नगर निगम अफसरों की मिलीभगत और स्थानीय जनप्रतिनिधियों के संरक्षण से हुए अवैध निमार्णों की सच्चाई को सामने लाया गया, साथ ही अवैध निमार्णों और गतिविधियों से जनता को हो रही परेशानियों को उजागर किया था।