मुंबई। पद्मावती फिल्म को लेकर मचे हंगामे के बीच पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने आज दावा किया कि आज जो ये तथाकथित जाबांज महाराजा एक फिल्मकार के पीछे पड़े हैं और दावा कर रहे हैं कि उनका सम्मान दांव पर लग गया है, यही महाराजा उस समय भाग खड़े हुए थे जब ब्रिटिश शासकों ने उनके मान सम्मान को रौंद दिया था। यहां एक समारोह में शशि थरूर से सवाल किया गया था कि उनकी किताब एन एरा आफ डार्कनेस : द ब्रिटिश एम्पायर इन इंडिया में पीड़ा का भाव क्यों है जबकि उनकी राय यह है कि भारतीयों ने अंग्रेजों का साथ दिया था । थरूर ने कहा, यह हमारी गलती है और मैं यह कहता हूं । सही मायने में तो मैं पीड़ा को सही नहीं ठहराता हूं । किताब में दर्जनों जगहों पर मैं खुद पर बहुत सख्त रहा हूं । कुछ ब्रिटिश समीक्षकों ने कहा है, वह इस बात की व्याख्या क्यों नहीं करते कि ब्रिटिश कैसे जीत गए ? और ये बेहद उचित सवाल है ….।
उन्होंने कहा, असलियत तो यह है कि इन तथाकथित महाराजाओं में हर एक …….जो आज मुंबई के एक फिल्मकार के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं, उन्हें उस समय अपने मान सम्मान की कोई चिंता नहीं थी जब ब्रिटिश इनके मान सम्मान को पैरों तले रौंद रहे थे। वे खुद को बचाने के लिए भाग खड़े हुए थे । तो इस सचाई का सामना करो …..इसलिए ये सवाल ही नहीं है कि हमारी मिलीभगत थी। कांग्रेस नेता की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। श्री राजपूत सेना और कुछ अन्य संगठनों ने फिल्मकार पर इतिहास को तोड़ मरोड़ कर परोसने और हिंदू भावनाओं को भड़काने का आरोप लगाया है। इस बीच, थरूर ने कहा कि उनकी किताब याचना नहीं करती कि ओह , हम बेचारे पीड़ित हैं , हमें क्षमादान दे दो । यह पूरी तरह इस बात को केंद्र में रखती है कि ब्रिटिश साम्राज्य वो नहीं है जैसा कि लोगों को समझा दिया गया । उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासकों को आईना दिखाया था । उन्हें अहसास कराया था कि वे क्या कर रहे हैं । महात्मा गांधी ने उन्हें आईना दिखा कर कहा था, खुद को देखो , तुम खुद को शर्मसार कर रहे हो , क्या यही तुम्हारे मूल्य हैं? सौभाग्य से, ब्रिटिश शासकों को खुद पर शर्मिन्दगी हुई । थरूर यहां टाटा लिटरेचर लाइव के आठवें संस्करण में प्रोफेसर पीटर फ्रैंकोपैन के साथ उद्घाटन समारोह में चर्चा कर रहे थे ।