नई दिल्ली। शारदीय नवरात्र 21 सितंबर यानि आज से शुरू हो गई हैं। नवमी 29 सितंबर को होगी और दशहरा पर्व 30 सितंबर को मनाया जाएगा। नवरात्र को लेकर तैयारी शुरू हो चुकी हैं। मंदिरों को भव्य रूप से सजाया जा रहा है। दुर्गा पूजा के लिए भी कलाकार मूर्तियों को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। आचार्य संतोष खंडूड़ी ने बताया कि मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें हरियाली के प्रतीक जौ बोएं। इसके बाद सोने, मिट्टी या तांबे के कलश पर स्वास्तिक बनाएं। पूजा गृह के पूर्वोत्तर भाग में विधि-विधान के साथ कलश स्थापित करें। श्रीफल, गंगाजल, चंदन, सुपारी पान, पंचमेवा, पंचामृत आदि से शक्ति की आराधना करें।
भृगु ज्योतिष केंद्र के पंडित राजेश शर्मा ने बताया कि माता दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना करने से जीवन में ऋद्धि-सिद्धि, सुख- शांति, मान-सम्मान, यश और समृद्धि की प्राप्ति शीघ्र ही होती है। माता दुर्गा हिंदू धर्म में आदिशक्ति के रूप में सुप्रतिष्ठित हैं और माता शीघ्र फल प्रदान करने वाली देवी के रूप में लोक में प्रसिद्ध है।
ये है नवरात्रि और गरबा का खास कनेक्शन
शारदीय नवरात्रि 21 सितंबर से है। 9 दिन तक चलने वाले इस महापर्व का आखिरी दिन उपवास यानी नवमी 29 सितंबर को होगा। इस दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। जिसकी शुरुआत पहले दिन कलश स्थापना के साथ होती है। इसके अलावा नवरात्रि में गरबा और डांडिया का भी एक अलग ही मजा है। इस पर्व के दौरान हर तरफ गरबा खेलने वालों की धूम होती है। इस दौरान बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक पारंपरिक अंदाज में गरबा का लुत्फ लेते हैं। आमतौर पर गरबा नवरात्रि के समय ही खेला जाता है। गरबा का नवरात्रि से बेहद खास कनेक्शन भी है।
दरअसल, ऐसा माना जाता है कि गरबा नृत्य मां दुर्गा को काफी पसंद हैं। नवरात्रि के दिनों में मां को प्रसन्न करने के लिए गरबा नृत्य किया जाता है। गरबा गुजरात और राजस्थान का में काफी प्रसिद्ध है, वहीं इसे लोग अपनी परंपरा से भी जोड़ते हैं। गरबा नृत्य के वक्त लोग पारंपरिक परिधान पहनते हैं। लड़कियां जहां चनिया-चोली पहनती हैं तो वहीं लड़के गुजराती केडिया और सिर पर पगड़ी बांधते हैं।
मां दुर्गा को पंसद इस नृत्य गरबा में ताली, चुटकी, खंजरी, डंडा या डांडिया और मंजीरा का काफी इस्तेमाल किया जाता है। गरबा में लोग एक समूह में मिलकर नृत्य करते हैं और साथ में देवी मां के गीतों को भी गाया जाता है। गरबा का नवरात्रि से कनेक्शन यहीं नहीं खत्म हो जाता है। गरबा को सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है इसलिए भी अश्विन मास की नवरात्रों को गरबा नृत्योत्सव के रूप में मनाया जाता है।
मां दुर्गा की पूजा करने और कलश स्थापना का क्या है शुभ मुहूर्त
इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। अश्विन पक्ष में आने वाले नवरात्रे शारदीय नवरात्रे भी कहलाते हैं। नवरात्रों की शुरूआत सनातन काल से हुई थी। सबसे पहले भगवान रामचंद्र ने समुंद्र के किनारे नौ दिन तक दुर्गा मां का पूजन किया था और इसके बाद लंका की तरफ प्रस्थान किया था। फिर उन्होंने युद्ध में विजय भी प्राप्त की थी, इसलिए दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है और माना जाता है कि अधर्म की धर्म पर जीत, असत्य की सत्य पर जीत के लिए दसवें दिन दशहरा मनाते हैं।
मां दुर्गा का विशेष आशीर्वाद लेने की अगर कामना करते हैं तो आपको कुछ बातें विशेष तौर पर अपनानी होंगी। जिसमें सबसे पहले हैं शुभ मुहूर्त में पूजा करना। नवरात्र में लोग अपने घरों में कलश स्थापना करते हैं। ये कलश शुभ मुहूर्त में स्थापित करने से आपके जीवन में आने वाली परेशानियां खत्म हो जाती हैं। इस बार नवरात्रि का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 3 मिनट से 8 बजकर 22 मिनट तक रहेगा। इसके बाद नौ दिन तक रोजाना मां दुर्गा का पूजन और उपवास किया जाता है। अभिजीत मुर्हूत 11.36 से 12.24 बजे तक है। देवी बोधन 26 सितंबर मंगलवार को होगा। बांग्ला पूजा पद्धति को मानने वाले पंडालों में उसी दिन पट खुल जाएंगे। जबकि 27 सितंबर सप्तमी तिथि को सुबह 9.40 बजे से देर शाम तक माता रानी के पट खुलने का शुभ मुहूर्त है। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना से आपकी पूजा सफल होती है। सुबह उठकर सप्तशती का पाठ करना शुभ रहता है।
इनका लगाएं भोग
-मां शैलपुत्री-आरोग्य जीवन के लिए गाय का शुद्ध घी
-मां ब्रह्मचारिणी-परिवार की सुरक्षा और खुशहाली के लिए शक्कर
-मां चंद्रघंटा-दुखों से मुक्ति के लिए खीर
-मां कूष्मांडा-ज्ञान में वृद्धि के लिए मालपुआ या मीठी पूरी
-मां स्कंदमाता-बेहतर स्वास्थ्य के लिए केला
-मां कात्यायनी-सौंदर्य बढ़ाने के लिए शहद
-मां कालरात्रि-कष्टों को हरने के लिए गुड़
-मां महागौरी-घर में सुख-शांति के लिए नारियल
-मां सिद्धिदात्रि-मृत्यु भय से छुटकारा पाने के लिए काले तिल
राशियों के अनुसार ऐसे करें शक्ति की पूजा
मेष-चंदन, लाल पुष्प और सफेद मिष्ठान अर्पण करें।
वृष-पंच मेवा, सुपारी, सफेद चंदन, पुष्प चढ़ाएं।
मिथुन-केला, पुष्प, धूप से पूजा करें।
कर्क-बताशे, चावल, दही अर्पण करें।
सिंह-तांबे के पात्र में रोली, चंदन, केसर, कपूर केसाथ आरती करें।
कन्या-फल, पत्तों, गंगाजल मां को अर्पण करें।
तुला-दूध, चावल, चुनरी चढ़ाएं और घी के दिए से आरती करें।
वृश्चिक-लाल, फूल, गुड, चावल और चंदन के साथ पूजा करें।
धनु-हल्दी, केसर, तिल का तेल, पीले फूल अर्पण करें।
मकर-सरसों का तेल का दिया, पुष्प, चावल, कुमकुम और सूजी का हलवा मां को अर्पण करें।
कुंभ- पुष्प, कुमकुम, तेल का दीपक और फल अर्पण करें।
मीन-हल्दी, चावल, पीले फूल और केले के साथ पूजन करें।
इन मंत्रों का करें जाप
-या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:
-सर्वबाधा विनिर्मुक्तों धन-धान्य सुतान्वित:, मनुष्यो मत्प्रसादेन भवष्यति न संशय: