Supreme Court

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने पारसी विवाह और तलाक कानून में स्वतंत्रता मिलने से पहले के चुनिन्दा प्रावधानों
को चुनौती देने वाली याचिका पर आज केन्द्र सरकार से जवाब मांगा। न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ की अध्यक्षता वाली पीठ ने केन्द्र से कहा कि वह 1936 के पारसी विवाह एवं तलाक कानून के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर जवाब दाखिल करे। यह प्रावधान तलाक के मामले में ‘ज्यूरी प्रणाली’ जैसे हैं। एक पारसी महिला ने इस कानून के प्रावधानों पर सवाल उठाते हुये कहा है कि ये संविधान के अनुच्छेद 14 (समता) और 21 (जीने के अधिकार और निजी स्वतंत्रता) का उल्लंघन करते हैं।

याचिका में कहा गया है कि यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि इस कानून के ये प्रावधान पुरातन हैं जो आजादी से पहले के दौर के हैं। यही नहीं, हमारी अपराध न्याय व्यवस्था में 1960 में ज्यूरी प्रणाली खत्म किये जाने से पहले की तारीख के हैं। याचिका में कहा गया है कि भारत में ज्यूरी व्यवस्था खत्म कर दी गयी है और इसलिए ये सिर्फ एक समुदाय के लिये रखी नहीं जा सकती। इससे पहले, याचिकाकर्ता के वकील ने पीठ से कहा था कि शीर्ष अदालत को इस पर विचार करना होगा। साथ ही उसने अपनी दलील के पक्षमें संविधान पीठ के एक हालिया फैसले का भी हवाला दिया था। शीर्ष अदालत ने 24 नवंबर को याचिका पर सुनवाई के दौरान इसकी एक प्रति अतिरिक्त सालिसीटर जनरल को भी सौंपने का निर्देश देते हुये कहा था कि उसे इस मामले में सरकार का दृष्टिकोण भी जानना है।

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