नई दिल्ली। लोकपाल की नियुक्ति के मामले में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट का पूरी तरह सख्त ही नजर आया। कोर्ट ने लोकपाल के मामले में केन्द्र को जमकर लताड़ा और कहा कि लोकपाल एक्ट पर बिना संशोधन के ही काम किया जा सकता है। केन्द्र के पास इसका कोई न्यायोचित कारण नहीं है कि आखिर लोकपाल की नियुक्ति को इतने समय तक सस्पेंश में क्यों रखा गया। कहा कि वर्ष 2013 का लोकपाल और लोकायुक्त कानून व्यवहारिक है। इसका क्रियान्वयन लटकाकर रखना न्यायसंगत नहीं है। 28 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। उस दरम्यान केन्द्र सरकार की ओर से एटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कोर्ट में कहा था कि लोकपाल बिल में कई संशोधन होने हैं। ऐसे में वर्तमान हालात में लोकपाल की नियुक्ति संभव नहीं है। मल्लिकार्जुन खडग़े नेता विपक्ष नहीं है। हालांकि कांग्रेस ने विपक्ष का दर्जा मांगा, लेकिन स्पीकर ने खारिज कर दिया। इससे पहले एनजीओ कॉमन कॉज की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शांति भूषण ने कहा था कि संसद ने वर्ष 2013 में लोकपाल विधेयक पारित कर दिया था और यह अगले ही वर्ष 2014 में लागू हो गया। लेकिन फिर भी सरकार जानबूझकर लोकपाल नियुक्त नहीं कर रही है। एनजीओ ने अधिवक्ता शांति भूषण के जरिए दायर याचिका में अनुरोध किया था कि केन्द्र को निर्देश दिए जाएं कि लोकपाल अध्यक्ष व लोकपाल सदस्य चुनने की प्रक्रिया कानून वर्णित प्रक्रिया के अनुरुप पारदर्शी होनी चाहिए। बता दें लोकपाल चयन समिति में पीएम, लोकसभा अध्यक्ष, विपक्ष का नेता, सीजेआई या नामित सुप्रीम कोर्ट के जज और एक नामचीन हस्ती के होने का प्रावधान है।
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