नयी दिल्ली, 24 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय आजादी से पहले के समय के पारसी विवाह और तलाक कानून के प्रावधानों की वैधता पर सवाल उठाने वाली याचिका पर आज विचार के लिये तैयार हो गया और उसने कहा कि वह इस मामले में केन्द्र का दृष्टिकोण जानना चाहेगा। न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति अमिताव राय की पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि इस याचिका की एक प्रति अतिरिक्त सालिसीटर जनरल को सौंपी जाये। न्यायालय ने इसके साथ ही इस मामले को अगले सप्ताह सुनवाई के लिये सूचीबद्ध कर दिया। पीठ ने पारसी महिला की याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा, ‘‘केन्द्र सरकार का दृष्टिकोण मालूम किया जाये। हम सरकार का दृष्टिकोण जानना चाहते हैं।’’ यह याचिका एक पारसी महिला ने दायर की है। इस महिला की वकील ने पीठ से कहा कि उन्होंने पारसी विवाह और तलाक कानून, 1936 के प्रावधानों को चुनौती दी है जो तलाक के मामले में ‘ज्यूरी प्रणाली’ सरीखा है और जो संपूर्ण भारत में प्रभावी होगा।
इस वकील ने मुस्लिम समाज में फौरी तौर पर तीन तलाक देने की परपंरा को गैरकानूनी और असंवैधानिक करार देने वाले शीर्ष अदालत के फैसले का हवाला देते हुये कहा है कि पारसी समाज में भी इस विषय के संबंध में विचार करने की आवश्यकता है। संक्षिप्त सुनवाई के दौरान पीठ ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि कानून में ये प्रावधान 1936 से चले आ रहे हैं ओर अभी तक किसी ने इसे चुनौती नहीं दी। इस पर वकील ने कहा, ‘‘हां, किसी ने इसे चुनौती नहीं दी। आज देश भर में इस विषय के अलावा ऐसे सभी मामलों के लिये कुटुम्ब अदालतें हैं। इस पर शीर्ष अदालत को विचार करना चाहिए।’’