जयपुर। सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के लिए बने कानूनों के दुरुपयोग को रोकने के मामले में एक आदेश जारी कर आवश्यक दिशा निर्देश जारी कर दिए। कोर्ट ने अपने आदेशों के तहत आईपीसी की धारा 498-ए के दुरुपयोग पर गहरी चिंता जताई। जिसके चलते कोर्ट को इस मामले में निर्देश जारी करने पड़े।
कोर्ट ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एएस नादकर्णी और वरिष्ठ वकील वी गिरी की दलीलों पर विचार करते हुए यह निर्देश जारी किए। अदालत के इन निर्देशों के बाद अब दहेज प्रताडऩा यानी आईपीसी की धारा 498-ए के दुरुपयोग पर प्रभावी रुप से रोक लगेगी तो अब पति या ससुराल वालों की तुरंत गिरफ्तारी भी नहीं हो सकेगी। अपने आदशों में कोर्ट ने इस बात पर ध्यान रखा और कहा कि यदि महिला घायल होती है या उसकी मौत होती है तो ये निर्देश लागू नहीं होंगे। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आदर्श कुमार गोयल व जस्टिस यूयू ललित की खंडपीठ ने इस कार्य में सिविल सोसायटी को शामिल करने के लिए भी कहा।
कोर्ट ने कहा कि प्रताडऩा झेल रही महिलाओं के लिए यह कानून बनाया गया था। लेकिन आज स्थिति उलट ही देखने को मिल रही है। इस कानून के तहत बड़ी संख्या में मुकदमें दर्ज किए जा रहे हैं। जो एक गंभीर बात है। इस स्थिति से निपटने के लिए सिविल सोसायटी को जोड़कर सहयोग लिया जाना चाहिए। इन मामलों में इस तरह के प्रयासों की जरुरत है कि समझौता होने की स्थिति में महिला ऊपरी अदालत में न जाकर बाहर ही समझौता करा दिया जाए।
-यह जारी किए कोर्ट ने निर्देश
कोर्ट ने अपने आदेशों में कहा कि मुकदमें के दौरान हर आरोपी की अदालत में उपस्थिति अनिवार्य नहीं होगी। आरोपी विदेश में रह रहा है तो सामान्य तौर पर उसका पासपोर्ट जब्त नहीं होगा न ही रेड कॉर्नर नोटिस जारी होगा। हर जिले में एक परिवार कल्याण समिति बनाई जाए, जिसमें सामाजिक कार्यकर्ता, अधिकारियों की पत्नियां शामिल हो। लेकिन सदस्यों को गवाह नहीं बनाया जा सकता। धारा ४९८-ए के तहत पुलिस या मजिस्ट्रेट तक पहुंचने वाली शिकायतों को समिति के पास भेजा जाए। समिति इस पर एक माह में रिपोर्ट देगी। कोर्ट ने साफ कर दिया कि रिपोर्ट आने तक गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए। इस रिपोर्ट पर जांच अधिकारी या मजिस्ट्रेट वरियता के आधार पर विचार करेंगे। इसी तरह ४९८-ए की शिकायत की जांच विशिष्ट अधिकारी के द्वारा की जानी चाहिए।