जयपुर। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड के रिकवरी, ग्रेच्यूटी व बकाया संबंधित प्रकरणों में बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी राज्यों के श्रम विभाग और श्रम अदालतों को आदेश दिए हैं कि वे पत्रकारों और गैर पत्रकारों के मजीठिया संबंधी रिकवरी, बकाया व अन्य प्रकरण छह महीने के अंदर भीतर निपटाए। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रंजन गोगोई व न्यायाधीश नवीन सिंहा की पीठ ने ये आदेश अभिषेक राजा व अन्य की याचिकाओं पर दिए। याचिकाकर्ताओं के एडवोकेट कॉलिन गोंजालविश ने सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराया कि १९जून,२०१७ के मजीठिया कंटेम मैटर्स में सुप्रीम कोर्ट ने अखबार कर्मियों के रिकवरी व बकाया मामलों की सुनवाई के लिए समय सीमा तय नहीं हुई है। श्रम कानून व अधिनियम में छह महीने के अंदर मामलों के निपटाए जाने के प्रावधान है। मजीठिया वेजबोर्ड के मामले गत कुछ सालों से कोर्ट में लंबित है।
श्रम विभाग और श्रम न्यायालय लेबर कानून के मुताबिक तय समय में सुनवाई नहीं कर रहे हैं और ना ही फैसले दे रहे हैं। समाचार पत्र प्रबंधन भी जवाब नहीं देकर मामले को लटकाते रहते हैं। मजीठिया वेजबोर्ड से जुड़े पत्रकार व गैर पत्रकार गत तीन-चार साल से एरियर और वेतन भत्तों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। बहुत से कर्मियों को प्रताडित करके नौकरी से हटा दिया है और दूसरे राज्यों में तबादले कर दिए। ऐसे में मजीठिया वेज बोर्ड के पक्षकारों व कर्मियों के प्रकरणों की जल्द सुनवाई हो सके, इसके लिए लेबर कानून व अधिनियम में तय समय अवधि में सुनवाई पूरी होने के लिए श्रम विभाग व श्रम अदालतों को पाबंद किया जाए। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट कर दिया है कि श्रम विभाग व लेबर कोर्ट मजीठिया मामलों की सुनवाई छह महीने में पूरी करे। उधर,सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से गत चार साल से संघर्षरत पत्रकारों व गैर पत्रकारों में खुशी है, वहीं मीडिया संस्थानों के मालिकों में खलबली मची हुई है। पूरे देश में इस फैसले की चर्चा है। इस फैसले से ना केवल वेजबोर्ड के लिए लड़ रहे पत्रकारों व दूसरे कर्मचारियों का हौंसला बढ़ा है। वहीं उन्हें अब जल्द न्याय मिलने की आस है।
– समाचार-पत्र मालिकों में खलबली
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से समाचार पत्र के मालिकों व प्रबंधन में खलबली मच गई। मीडिया प्रबंधन इस मामले को लंबित रखना चाहता था, ताकि वे कोर्ट में गए कर्मचारियों को झांसा देकर केस विड्रो करवा सके। लेबर कोर्ट में जवाब नहीं देकर वे तारीख पर तारीख लेने में लगे थे। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अब उनके सारे मंसूबे ध्वस्त हो गए। बल्कि वे कर्मचारी भी लेबर कोर्ट में पहुंचेंगे, जो कुछ महीनों के दौरान रिटायर्ड हुए हैं। वे पत्रकार व गैर पत्रकार भी हिम्मत जुटा सकते हैं, जो दबाव और प्रलोभन में कोर्ट केस करने से बचते रहे। वे यह जानते हैं कि श्रम विभाग उन्हें लाखों का एरियर और बढ़ा हुआ वेतन नहीं दिला सकता है। लेबर कोर्ट में जाने से ही यह राशि मिल पाएगी। जैसे ही चार साल से संघर्षरत कर्मचारियों को कोर्ट से राहत मिलने लगी और एरियर मिला तो वे भी मीडिया प्रबंधन के खिलाफ हो सकते हैं। कोर्ट केस से वंचित रहे कर्मचारी यह भी जानते हैं कि अखबार मालिक कर्मचारियों के सगे नहीं है। इसके उदाहरण पिछले कई महीनों के दौरान सभी अखबारों में देखने को मिल चुके हैं। कोर्ट केस नहीं करने वाले पत्रकारों व दूसरे कर्मचारियों को मीडिया प्रबंधन ने दूरदराज तबादले कर दिए थे, ताकि वे नौकरी छोड़ जाए। उनके वेतन-भत्ते भी नहीं बढ़ाए। मजीठिया वेजबोर्ड में कोर्ट केस नहीं करने को लेकर वे दबाव डालकर सहमति पत्र भी ले चुके हैं। करीब-करीब सभी मीडिया संस्थानों में स्थायी कर्मचारियों की कंपनी भी बदल दी है।