नई दिल्ली। अपनी जिद और कूटनीति से दुनिया पर राज करने वाले अमरीका के आगे कभी नहीं झुकने वाले क्यूबा के क्रांतिकारी कम्युनिस्ट नेता फि देल कास्त्रो का 90 साल की उम्र में शनिवार को निधन हो गया। जीते जी अमरीका की आंखों के किरकिरी रहे कास्त्रो ने कहा था कि वह कभी भी राजनीति से संन्यास नहीं लेंगे लेकिन उन्हें जुलाई 2006 में अपनी आंतों का ऑपरेशन कराना पड़ा और फि र उन्होंने सत्ता अपने भाई राउल कास्त्रो को सौंप दी। जैतून के रंग की वर्दी, बेतरतीब दाढ़ी और सिगार पीने के अपने अंदाज के लिए मशहूर फि देल ने स्वास्थ्य कारणों के चलते अनिच्छा से राजनीति छोड़ी। फि देल ने अपने देश में पैदा होने वाले असहमति के सुरों पर कड़ा शिकंजा बनाए रखा और अमरीका की मर्जी के विपरीत चलकर वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाई। फि देल को अंतत: राजनीति के खेल में जीत मिली। हालांकि क्यूबा के लोग गरीबी में ही जीते रहे और जिस क्रांति का एक समय बहुत प्रचार किया था, उसने अपनी चमक खो दी। उधर फि देल के विपरित राउल ने दिसंबर 2014 में संबंधों में सुधार के लिए अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ हाथ मिलाने की घोषणा करके दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया।
तेजतर्रार व्यक्तित्व के धनी और शानदार वक्ता फि देल कास्त्रो ने अपने शासन में अपनी हत्या की साजिशों, अमरीका के समर्थन से की गई आक्रमण की कोशिश और कड़े अमेरिकी आथिज़्क प्रतिबंधों समेत अपने सभी शत्रुओं की सभी कोशिशों को नाकाम कर दिया। 13 अगस्त 1926 को जन्मे फि देल के पिता एक समृद्ध स्पेनी प्रवासी जमींदार थे और उनकी मां क्यूबा निवासी थी। बचपन से ही कास्त्रो चीजों को बहुत जल्दी सीख जाते थे। वह बेसबॉल खेल के प्रशंसक थे। उनका अमेरिका की बड़ी लीगों में खेलने का सुनहरा सपना था लेकिन खेल में भविष्य बनाने का सपना देखने वाले फि देल ने बाद में राजनीति को अपना हमसफ र बनाया। उन्होंने फु लगेंसियो बतिस्ता की अमेरिका समर्थित सरकार के विरोध में गुरिल्ला संगठन बनाया। बतिस्ता ने 1952 के तख्तापलट के बाद सत्ता पर कब्जा किया था। बतिस्ता के विरोध के कारण युवा फि देल को दो साल जेल में रहना पड़ा और इसके बाद वह निर्वासन में चले गए जहां, उन्होंने विद्रोह के बीज बोए। फि देल ने अपने समर्थकों के साथ ग्रानमा पोत से दक्षिण पूर्वी क्यूबा में कदम रखते ही 2 दिसंबर 1956 को क्रांति की शुरुआत की। फिदेल ने सभी चुनौतियों से पार पाते हुए 25 महीने बाद बतिस्ता को सत्ता से बेदखल किया और प्रधानमंत्री बने। एक समय निर्विवाद रूप से सत्ता में रहे फिदेल का झुकाव सोवियत संघ की ओर था। इस दौरान अमरीका के 11 राष्ट्रपति सत्ता में आकर चले गए लेकिन फि देल सत्ता में बने रहे। इस दौरान अमेरिका के हर राष्ट्रपति ने 1959 की क्रांति के बाद से उनके शासन पर दशकों तक दबाव बनाने की कोशिश की। कास्त्रो के सोवियत रूस के साथ जुड़ाव के कारण 1962 में विश्व परमाणु युद्ध के कगार पर पहुंच गया था। क्यूबा ने तत्कालीन सोवियत रूस को अपनी सीमा में परमाणु मिसाइल तैनात करने की इजाजत दी थी। रूस ने अमेरिका के फ्लोरिडा राज्य से मात्र 144 किलोमीटर दूर परमाणु हथियार ले जाने वाली मिसाइल स्थापित करने की योजना बनाई थी। प्रतिद्वंद्वी महाशक्तियों के बीच तनावपूर्ण गतिरोध के बाद क्यूबाई जमीन से मिसाइल दूर रखने पर मॉस्को के सहमति जताने पर दुनिया परमाणु युद्ध के संकट से बच गई। कास्त्रो विश्व के मंच पर ऐसे समय में कम्युनिस्ट नेता बन कर उभरे जब दुनिया शीतयुद्ध के चरम पर थी। उन्होंने 1975 में अंगोला में सोवियत संघ के बलों की मदद के लिए 15000 जवान भेजे और 1977 में ईथियोपिया में जवान भेजे। कास्त्रो ने अमरीका की इच्छा के विपरीत काम किया और अमेरिका को कई बार नाराज, शर्मिंदा और सचेत किया।

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