नयी दिल्ली। देश में संशोधित राष्ट्रीय क्षयरोग नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) के तहत ट्यूबरकुलोसिस (तपेदिक) के उपचार के लिए रोजाना दवा वाली व्यवस्था आज सभी राज्यों में लागू हो गयी। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने नयी उपचार नीति को लागू करने की तैयारियों को जानने के लिए कल सभी प्रदेशों के स्वास्थ्य सचिवों और मिशन निदेशकों के साथ बैठक की। स्वास्थ्य मंत्रालय में स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक डॉ जगदीश प्रसाद ने कहा कि राज्यों ने दवा खरीद से संबंधित सभी साजो-सामान का बंदोबस्त और प्रशिक्षणों को पूरा कर लिया है। उन्होंने कहा कि कुछ राज्य पहले ही इसे लागू कर चुके हैं।मंत्रालय के अधिकारियों ने नयी उपचार नीति पर हाल ही में प्रधानमंत्री के सामने भी जानकारी रखी थी।स्वास्थ्य मंत्रालय में टीबी विभाग के प्रभारी अरुण कुमार झा ने कहा कि दैनिक दवा की व्यवस्था को लागू करने से ट्यूबरकुलोसिस के उपचार में बड़ा बदलाव आएगा।
अधिकारी ने बताया कि रोगी को सप्ताह में तीन बार के बजाय रोजाना आधार पर एक ही गोली में तीन या चार दवाएं दी जाएंगी। झा ने कहा कि दवा की मात्रा रोगी के वजन के अनुसार तय की जाएगी। पहले यह सभी वयस्कों के लिए समान होती थी। उन्होंने कहा, ‘‘क्षयरोग से पीड़ित बच्चों को भी अब और कड़वी गोली नहीं लेनी होगी और इनकी जगह वे आसानी से घुलने वाली और फ्लेवर वाली दवा ले सकते हैं।’’ आरएनटीसीपी के तहत 1997 से रोगियों को सप्ताह में तीन बार दवा देने की व्यवस्था चल रही थी। डॉ प्रसाद ने कहा कि रोजाना दवा लेने की व्यवस्था अधिक प्रभावशाली हो सकती है जहां रोग की पुनरावृत्ति की आशंका कम से कम हो जाती है।विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2010 में अपने टीबी प्रबंधन दिशानिर्देशों में बदलाव किया था और आरएनटीसीपी के तहत दैनिक दवा लेने की व्यवस्था लागू करने की सिफारिश की थी।
स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2015 में प्रति लाख आबादी में 217 लोगों को टीबी होने की बात सामने आई थी जो 2016 में घटकर 211 प्रति लाख आबादी रह गयी। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कल जारी एक नयी वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल दुनियाभर में टीबी के आये 1.04 करोड़ नये मामलों में से 64 प्रतिशत मामलों वाले सात देशों में भारत का नाम सबसे ऊपर रहा। इसी तरह 2016 में दर्ज मल्टीड्रग-रजिस्टेंट टीबी (एमडीआर-टीबी) के 4,90,000 मामलों में से करीब आधे केवल भारत, चीन और रूस में दर्ज किये गये। रिपोर्ट में कहा गया कि टीबी के मामलों का सामने नहीं आना और उनकी पहचान नहीं होना चुनौती बना हुआ है।