जयपुर। हिन्दू धर्म के सबसे प्रमुख त्यौहार दीपावली पर्व आज 22 अक्टूबर से धनतेरस के साथ शुरु हो गया है। भैयादूज तक चलने वाले दीपोत्सव के स्वागत के लिए बाजार रंग-बिरंगी रोशनी से सज गए हैं तो हर घर में भी दिवाली मनाने की पूरी तैयारियां हो गई है। घरों में सजावट शुरु हो गई है तो रात को पटाखों का शोर भी होने लगा है। धनतेरस पर लोगों ने सोने-चांदी के साथ पीतल के बर्तनों की खरीदादी की, वहीं चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े चिकित्सकों व कर्मियों और सामाजिक संगठनों ने भगवान धंवंतरी की पूजा की। साथ ही कुबेर की पूजा हुई। इस दिन यम की भी पूजा होती है। जयपुर के चांदपोल दरवाजे पर भगवान यम की पूजा अर्चना की गई। जयपुर समेत प्रदेश और देश के प्रमुख शहरों-कस्बों में बर्तनों की दुकानों पर तो लोगों की भीड़ रही, वहीं ज्वैलर्स के यहां भी लोगों का हुजूम उमड़ा रहा। दुकानदारों ने भी बाजारों, दुकानों और शोरुमों को रंग-बिरंगी रोशनी से सजा रखा है। व्यापारियों के मुताबिक इस दिन पूरे राजस्थान में एक हजार करोड़ रुपए का कारोबार ज्वैलरी, बर्तनों, बही खातों , रियल स्टेट और इलेक्टॉनिक्स सामान में हुआ है। इसी तरह देश के दूसरे शहरों में भी खरीदारी का अच्छा रिस्पांस रहा। इसी तरह 23 अक्टूबर को नरक चौदस (रुप चौदस भी कहते हैं)है। इस दिन घर व प्रतिष्ठान के साथ अपने तन और मन की सफ ाई का रिवाज है। यह दिन महिलाओं के लिए खास है। वे विशेष श्रृंगार करती है और पूजा अर्चना भी। इस दिन आटे का चौमुंखा दीपक जलाकर दरवाजे पर रखा जाता है। इस दिन को छोटी दिवाली भी कहा जाता है। इसी तरह दिवाली पर घर-प्रतिष्ठान दीपकों से सजेंगे। मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना होगी। बाजारों में रोशनी सजावट चरम पर रहेगी और पूरी रात पटाखों के शोर से आबाद रहेगी। मंदिरों में अन्नकूट का भोग लगेगा और गोवर्धन पूजा होगी। भैयादूज के साथ दीपोत्सव की पूर्णाहुति होती है।
– मां लक्ष्मी के स्वागत में सजे बाजार-शहर
मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए पूरे देश में खुशी व उल्लास का माहौल है। घर-प्रतिष्ठानों के साथ बाजार रंग-बिरंगी रोशनी से सजे हुए हैं। व्यापार मण्डलों ने शहर और बाजार को भी रोशनी से सजा रखा है। बाजारों में हुई सजावट को देखने के लिए हजारों-लाखों लोग निकलेंगे।
– रूप चौदस: महिलाओं के संजने-संवरने का पर्व
दीपोत्सव के प्रथम दिन धनतेरस पर धन के देवता धनवंतरी और यम को याद किया जाता है तो दूसरे दिन नरक चर्तुदशी आती है। इसे रुप चौदस भी कहा जाता है। यह कहे कि यह दिन महिलाओं के लिए विशेष रहता है। इस दिन उन्हें खूब संजने-संवरने की छूट रहती है। वे खूब संजती संवरती है। रुप चौदस पितरों और यमराज की पूजा के लिए माना जाता है। इस दिन पितरों को अर्पण करते हैं और अमावस्या भी होती है। पितरों के लिए विशेष पूजन और भजन होते हैं। ऐसी भी धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन नरकासुर राक्षस का वध किया था और उसके चंगुल से सौलह हजार कन्याओं को मुक्त करवाया था। यहीं नहीं भगवान श्रीकृष्ण ने इन सभी कन्याओं से विवाह करके पत्नी का दर्जा दिया। नरकासुर के चंगुल से मुक्त होने और पत्नी का दर्जा मिलने के बाद सभी कन्याएं सजी और संवरी। भगवान ने उनके साथ विवाह किया। इस पुनीत कार्य में भगवान विष्णु की धर्मपत्नी रुकमणी ने भी सहयोग किया। इसलिए इस दिन को रुप चर्तुदशी भी कहा जाता है। यहीं वजह है कि महिलाएं खूब सजती है।
धनतेरह से भैयादूज तक दीपोत्सव की धूम
– मान्यता है कि छोटी दिवाली के दिन हनुमान जी का जन्म हुआ
इस दिन नरक और रुप चतुर्दर्शी भी मनाई जाती है। नरक चतुदर्शी पर राम भक्त हनुमान जी और यमराज की भी पूजा अर्चना होती है। इस दिन हनुमान जी और यमराज जी के साथ मां लक्ष्मी जी की भी पूजा का विशेष महत्व भी है। ऐसी मान्यता है कि छोटी दिवाली के दिन हनुमान जी का जन्म हुआ था। इस दिन मध्यरात्रि को मां अंजनी के गर्भ से हनुमानजी का जन्म हुआ था। इस दिन भगवान राम और हनुमान जी के भक्त अपने इष्ट देव की विशेष पूजा अर्चना करते हैं और व्रत रखते हैं। सुख-शांति के लिए बजरंग बली की उपासना करते हैं। इस दिन लोगों को शरीर पर तिल के तेल का उबटन लगाकर स्नान करना चाहिए और भगवान हनुमान जी को सिंदूर लगाना चाहिए। इस दिन यमराज जी की भी पूजा का महत्व है।