जयपुर। राजस्थान में वह विवादित कानून आज स्वत ही खत्म हो गया है, जिससे भ्रष्ट नेताओं और अफसरों को बचाने के प्रावधान किए गए थे और भ्रष्ट लोगों की पहचान उजागर करने वाले लोगों और मीडिया पर सजा के प्रावधान थे। राजस्थान सरकार ने सीआरपीसी में संशोधन करके यह बिल पास कर लिया था, लेकिन इसके कई प्रावधानों पर सवाल उठने पर सरकार इस बिल को लागू नहीं करा पाई और राष्ट्रपति से मंजूर यह बिल विरोध के चलते विधानसभा में रखा ही नहीं जा सका।
तय समय में इस विवादित बिल को पास नहीं करवाने के कारण यह बिल आज सोमवार स्वत: ही निरस्त हो गया। यह बिल राजस्थान विधानसभा की प्रवर समिति के पास है। समिति की रिपोर्ट के बाद सरकार संशोधित बिल लाएगी। संसदीय कार्यमंत्री राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि अध्यादेश खत्म होने के साथ यह कानून भी खत्म हो जाएगा। बिल प्रवर समिति के पास है। संशोधन के साथ सरकार बिल लाएगी। उधर, गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया ने कहा कि अध्यादेश 42 दिन में पास करवाना जरुरी होता है। चार दिसम्बर को अध्यादेश स्वत: ही समाप्त हो जाएगा। बिल प्रवर समिति के पास है। समिति चाहेगी तो संशोधित बिल लाया जाएगा।
– इसलिए हुआ भारी विरोध
राजस्थान में क्रिमिनटल लॉ संशोधन अध्यादेश 2017 को नवम्बर 2016 में मंजूरी मिल गई थी। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद छह दिसम्बर को यह अध्यादेश प्रदेश में लागू हो गया। सरकार जब अध्यादेश को बिल के तौर पर विधानसभा में ला रही थी, तब इसके कुछ प्रावधानों पर विवाद खड़ा हो गया। धारा 156(3)के तहत नेताओं, अफसरों और सरकारी कर्मियों पर कोर्ट में लगने वाले इस्तगासों और परिवादों पर जांच से पहले सरकार की मंजूरी लेना अनिवार्य कर दिया। यह प्रावधान भी जोड दिया कि अभियोजन स्वीकृति तक भ्रष्ट अफसरों-नेताओं और कर्मियों के नाम और पहचान को उजागर नहीं किया जाए।
अगर कोई इस प्रावधान को उल्लंघन करेगा तो बिल में दो साल की सजा और जुर्माने के प्रावधान तय किए गए। भ्रष्टचारियों को बचाने के लिए अभियोजन स्वीकृति की समय सीमा बिल में 180 दिन की गई, जो काफी लम्बी है। इस बिल के सामने आते ही कांग्रेस के साथ सत्ता पक्ष ने भी विरोध जताया। सामाजिक संस्थाओं, मीडिया संस्थानों और बार एसोसिएशनों ने भी इस बिल का विरोध किया। प्रदेश में भारी विरोध प्रदर्शन के चलते सरकार को बिल प्रवर समिति के पास भेजना पड़ा। इस बिल को एक तरह से मीडिया पर पाबंदी के तौर पर भी देखा गया। ऐसा ही बिल महाराष्ट्र में भी है, लेकिन अभियोजन स्वीकृति की समय सीमा 90 दिन है। भ्रष्ट अफसर, नेताओं की पहचान उजागर करने के और सजा के प्रावधान नहीं है।