जयपुर। फाल्गुन मास की शुरुआत होने के साथ बसंत ऋतु की मंद-मंद बहती हवाओं के बीच होली का खुमार लोगों को उल्लास और उत्साह से भर देता है। इन सबके बीच होली पर धमाल मचाने को लेकर हर कोई बेताब ही नजर आता है। होली देश के प्रमुख त्योहारों में एक है। तीन दिन चलने वाले इस त्योहार में पहले दिन होलिका दहन होता है। इसके अगले दिन होली खेली जाती है। जिसे कहीं पर छारंडी और कहीं धूलण्डी कहा जाता है। इस दिन पूरे देश में लोग आपसी बैर भाव भुलाते हुए रंग, अबीर और गुलाल लगाकर एक दूसरे को रंगनें में व्यस्त रहते हैं। तीसरे दिन भाई दूज मनाने के साथ ही त्योहार खत्म हो जाता है। देश में इस बार होली का दहन 12 मार्च को और धूलण्डी 13 मार्च को मनाई जाएगी।
देश में होली का त्योहार मनाने की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है। इसको लेकर एक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नामक एक राक्षस का राज हुआ करता था। उसने वर्षों तक कठिन तपस्या कर ब्रह्माजी को खुश कर लिया और उनसे वरदान पा लिया। वरदान में यह मिला कि संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे न मार सके। न ही वह रात में मरे, न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर में, न घर से बाहर। यहां तक की कोई शस्त्र भी उसे न मार पाए। ऐसा वरदान पाकर वह अत्यंत निरंकुश बन बैठा। वह लोगों से जबरन अपनी पूजा कराने लगा, नहीं करने वालों पर अत्याचार करने लगा। कुछ समय बाद हिरण्यकश्यप को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिसका नाम प्रहलाद रखा। प्रहलाद बचपन से ही भगवान विष्णु का परम भक्त था और उस पर भगवान विष्णु की कृपा भी थी। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को आदेश दिया कि वह उसके सिवाय किसी अन्य की पूजा न करे। यह मानने को प्रहलाद तैयार नहीं हुआ। इस पर हिरण्यकश्यप ने उसे जान से मारने के लिए पहाड़ी से फैंका, विषैले सर्पों के बीच छोड़ दिया। लेकिन प्रभु की कृपा के चलते वह हर बार बच जाता। अंत में हिरण्यकश्यप ने उसे अपनी बहन होलिका की सहायता से आग में जलाकर मारने की योजना बनाई। होलिका को अग्नि से बचने का वरदान था। वरदान में उसे एक ऐसी चादर मिली हुई थी, जिसे ओढऩे से वह आग में नहीं जल सकती थी। प्रहलाद को जान से मारने की नियत से होलिका प्रहलाद को गोद में उठाकर आग के बीच जा बैठी। तभी बहुत तेज आंधी चली और वह चादर उड़कर बालक प्रहलाद पर आ गई। जिससे होलिका जलकर भस्म हो गई तो प्रहलाद बच गया। इसके बाद हिरण्यकश्यप को मारने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया और खंभे से निकल कर गोधूली समय में दरवाजे की चौखट पर बैठकर अत्याचारी हिरण्यकश्यप को अपने नाखूनों से मार डाला। उसी दिन से बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक में होली का त्योहार मनाया जाने लगा। होली दहन से पूर्व महिलाएं होली का पूजन करती है और श्रद्धापूर्वक गाय के गोबर से बने बड़कूले इत्यादि अर्पित है। बाद में परिवार के बुजुर्गों से आशीर्वाद लेती है। होली का त्योहार एक संकेत यह भी देता है कि किसानों ने अपने खेतों में कड़ी मेहनत कर जो फसल बोई वह अब पककर तैयार हो गई है। इस दिन समूचे देश में लोग होली की अग्नि के बीच गेंहू और जौ की बालियों की सिकाई कर घर ले जाते हैं। जिसे प्रसाद के तौर पर परिजनों के बीच बांटते हैं। बाद में घर में जन्म लेने वाले बच्चे को ढूंढऩे की रस्म अदा की जाती है। साथ ही आस-पास के घरों और परिजनों के बीच मिठाई वितरित की जाती है। इस दिन घरों में चावल, फूलके के साथ मूंग के विशेष पकवान बनाए जाते हैं। जिनका आनंद परिवारजन एक साथ लेते हैं। दूसरे दिन लोग एक दूसरे को रंग और गुलाल लगाकर धूलण्डी पर्व मनाते हैं। यह दिन इस बात का संदेश देता है कि संसार में सभी मनुष्य एक समान है कोई छोटा न कोई बड़ा न कोई काला और न कोई गौरा। एक ही रंग में रंगने के बाद लोकगीतों पर जमकर नृत्य करते हुए जमकर धमाल मचाते हैं। राजस्थान के शेखावाटी में तो बकायदा लोकगीतों को लेकर संगठन बने हुए हैं। जो चंग और बांसुरी की सुरीली तानों के बीच हर किसी को झूमने को मजबूर कर देते हैं। इस पर्व का आनंद लेने के लिए विदेशों से पर्यटक खास तौर पर भारत आते हैं। इसमें भी खास तौर पर वे राजस्थान के जयपुर और भरतपुर का रुख करते हैं। वे भी होली के रंग में रंगने से खुद को रोक नहीं पाते।
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