जयपुर। हिन्दु धर्म का सबसे प्रमुख त्यौहार में शुमार दिवाली पर्व धनतेरस के साथ शुरु हो गया है। पांच दिन तक चलने वाले इस दीपोत्सव के दौरान मां लक्ष्मी की पूजा होती है घर-घर में। बाजार और घर रोशनी से जगमगा जाते हैं। दिवाली के दिन मंदिरों में अन्नकूट का भोग लगता है और तीसरे दिन भाई-बहन के पर्व के तौर भैयादूज मनाया जाता है। दिपावली को रोशनी का त्योहार भी कहा जाता है। दिवाली मनाने के पीछे भी कई किवंदतियां है, जिसमें प्रमुख तौर पर यह है कि चौदह साल के वनवास के बाद भगवान राम का अपने राज्य अयोध्या लौटना है। वह भी लंकापति रावण का वध करके विजय प्राप्त करके अयोध्या लौटे थे। इसे हर साल बुराई पर अच्छाई के प्रतीक के रुप में याद किया जाता है। जब राजा श्रीराम अयोध्या में छोटे भाई लक्ष्मण व पत्नी सीता के साथ लौटे तो अयोध्या वासियों ने जोरदार स्वागत किया।
पूरे राज्य को रोशनी से जगमगा दिया और आतिशबाजी की। इसी दिन देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करते है। रोशनी का उत्सव दिपावली असल में दो शब्दों से मिलकर बना है। दीप और आवली। जिसका वास्तविक अर्थ है दीपों की पंक्ति। पांच दिनों के इस पर्व का हर दिन किसी खास परंपरा और मान्यता से जुड़ा हुआ है, जिसमें पहला दिन धनतेरस का होता है। इस दिन लोग सोने, चाँदी के आभूषण या बर्तन खरीदते है। दूसरे दिन छोटी दिपावली होती है। इसे रुपचौदस भी कहते हैं। शरीर के सारे रोग और बुराई मिटाने के लिये सरसों का उपटन लगाते है। तीसरे दिन मुख्य दिपावली होती है। इस दिन लक्ष्मी,गणेश और मां सरस्वती की पूजा होती है।
घर-प्रतिष्ठानों को रोशनी व दीपों से सजाते हैं। आतिशबाजी की जाती है। चौथे दिन मंदिरों में अन्नकूट का भोग लगता है और पाचंवें दिन भाई बहन का त्यौहार भैयादूज बनाया जाता है।