यपुर, 27 जनवरी। राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा है कि संस्कृत का प्रभाव बढ़ रहा है। लोग संस्कृत भाषा के प्रति लालायित है। उन्होंने कहा कि संस्कृत सकारात्मक भाषा है। यह भाषा सभी को साथ लेकर चलने का प्रयास करती है।
राज्यपाल श्री मिश्र राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान में बहुद्देश्यीय भवन शिलान्यास समारोह को संबोधित कर रहे थे। राज्यपाल ने परिसर में बनने वाले बहुद्देश्यीय भवन की शिलान्यास पट्टिका का अनावरण किया। बहुद्देश्यीय भवन का निर्माण भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है।
राज्यपाल श्री कलराज मिश्र ने कहा है कि संस्कृत भाषा के अध्ययन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य भारतवर्ष के वास्तविक स्वरूप को जानना है। संस्कृत भारतवर्ष की सांस्कृतिक भाषा है, इसलिए बिना संस्कृत के इस देश की संस्कृति और पारम्परिक विरासत को समझना कठिन है। सांस्कृतिक बोध के बिना किसी भी राष्ट्र के सच्चे स्वरूप का अभिज्ञान कदापि संभव नही है।
राज्यपाल श्री मिश्र ने कहा कि भारतीय चिंतन में राष्ट्र शब्द से तात्पर्य केवल सीमाओं से आबद्ध भूभाग मात्र नही है, अपितु इसमें उस देश की पंरम्परा, सभ्यता, लोक चेतना तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्वरूप का प्रकाशन तथा बोध भी सम्मलित है। उन्होंने कहा कि जब हम भारतवर्ष के लिए राष्ट्र शब्द का प्रयोग कर रहे होते हैं तब उसका तात्पर्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में सागर तक विस्तीर्ण भूभाग मात्र से नही होता है अपितु हमारा तात्पर्य यहां के ज्ञान, विज्ञान, इतिहास, कला, दर्शन, सभ्यता और संस्कृति से भी होता है। यदि हमें इस देश के सांस्कृतिक स्वरूप को समझना हो तो संस्कृत भाषा का अध्ययन नितांत आवश्यक है।
राज्यपाल श्री मिश्र ने कहा कि हमारा सम्पूर्ण साहित्य, गीता, रामायण आदि काव्य एवं शास्त्र सब संस्कृत भाषा में निबद्ध हैं। संस्कृत के विषय में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का भी यह स्पष्ट मानना था कि ‘‘संस्कृत के अध्ययन के बिना कोई भी सच्चा भारतीय और सच्चा विद्वान नही बन सकता।‘‘ यदि हम अपनी महानतम सांस्कृतिक विरासत को सहेजना चाहते हैं तो हमें संस्कृत का अध्ययन जरूर करना चाहिए।
राज्यपाल श्री मिश्र ने कहा कि संस्कृत भाषा के अध्ययन का एक और महत्वपूर्ण उद्देश्य भारतवर्ष के वास्तविक इतिहास को जानना भी है। वैदिक काल से लेकर आज तक भारतीय सभ्यता के विकास में संस्कृत भाषा एक महत्वपूर्ण उपादान रही है। वेद, रामायण, महाभारत, पुराण, साहित्य, उपनिषद्, दर्शन, अर्थशास्त्र, नाट्यशास्त्र, छन्द, व्याकरण, अलंकार, आयुर्वेद आदि शास्त्रों की भाषा संस्कृत ही है। वाल्मीकि, व्यास, भास, दण्डी, श्रीहर्ष, कालिदास, भारवि, भवभूति, माघ, भोज, बाणभट्ट, मुरारी, राजशेखर, भर्तृहरि, भट्टनारायण, पण्डितराज जगनाथ आदि अनेक महाकवियों का साहित्य संस्कृत भाषा में ही रचित है।
राज्यपाल श्री मिश्र ने कहा कि हमें हमारे राष्ट्र के सांस्कृतिक और सामाजिक उत्कर्ष का इतिहास भी संस्कृत बताता है। महर्षि पाणिनि, पतंजलि, कात्यायन, गौतम, कणाद, कपिल, जैमिनि, बादरायण, शंकराचार्य, मण्डनमिश्र, वाचस्पतिमिश्र, रामानुजाचार्य, रामानन्दाचार्य, चैतन्य महाप्रभु, रूप गोस्वामी आदि अनेक आचार्यों द्वारा निबद्ध वाड़म्य को जानना भारत की ज्ञान परम्परा के उत्कर्ष के इतिहास बोध के लिए आवश्यक है। यदि हमें भारत वर्ष में विज्ञान के इतिवृत्त को जानना हो तो हमें चरक, सुश्रुत, आर्यभ, वराहमिहिर, भास्कराचार्य, पिंगल, बोधायन आदि के ग्रन्थों का अध्ययन करना होगा, जो संस्कृत भाषा में ही विद्यमान हैं।
राज्यपाल श्री मिश्र ने कहा कि संस्कृत भाषा भारत के लिए कल्पवृक्ष है। यह भारत की आत्मा है। विवेक की वाणी है। संस्कृति का सेतुबन्ध है। पावनता का संचार है। ऋषियों की तपस्या का प्रतिफल है। कविता का माधुर्य है। भक्ति का विकास है। शक्ति का विलास है। धर्म का प्रसार है। ज्ञान विज्ञान का आधार और अध्यात्म का पावन प्रकाश संस्कृत है।