जयपुर। राजस्थान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद से अशोक परनामी को इस्तीफा दिए छह दिन हो गए, लेकिन अभी तक पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व इस पद पर किसी की नियुक्ति नहीं कर पा रहा है। छह दिन बाद भी प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी खाली पड़ी है। इस्तीफा देने के बाद से अशोक परनामी भाजपा मुख्यालय नहीं आए, हालांकि उनके इस्तीफे की जानकारी भी दो दिन बाद मिली और उन्होंने भी स्वीकारा कि वे सोलह अप्रेल को ही इस्तीफा दे चुके हैं। इस्तीफा मंजूर होने के बाद भी पार्टी नेतृत्व अध्यक्ष पद पर किसी की घोषणा नहीं कर पा रहा है। इससे राजस्थान भाजपा में असमंजस की स्थिति है तो कार्यकर्ताओं में भी चर्चाओं का दौर शुरु हो गया है।
उनमें चर्चा है कि पार्टी क्यों नहीं अध्यक्ष पद की घोषणा कर रही है। क्या वे डरे हुए है कि वे किसी की घोषणा करेंगे तो प्रदेश में सियासी बवाल हो सकता है, जिसका खामियाजा उन्हें विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है। वैसे परनामी के इस्तीफे की सूचना बाहर आते ही प्रदेश अध्यक्ष पद पर केन्द्रीय कृषि राज्यमंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत का नाम मजबूती से सामने आया है। अभी भी उनका नाम सबसे आगे है, हालांकि दो दिन से उनके नाम को लेकर धड़ेबंदी शुरु हो गई है। अध्यक्ष पद के दावेदार और उनके खेमों ने गजेन्द्र सिंह को पटखनी देने के लिए लामबंदी शुरु कर दी है। गजेन्द्र सिंह को मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और उनका गुट भी पसंद नहीं करता है। वे भी जब से उनका उभरा है, तब से लॉबिंग करके इसकी खिलाफत में लग गए हैं। गजेन्द्र सिंह के नाम को लेकर बयानबाजी भी शुरु हो गई है। अंदरखाने दावेदारों ने अपने-अपने सम्पर्कों से पार्टी नेतृत्व को संदेश पहुंचा दिए है कि अगर उन्हें प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनाया तो पार्टी को क्या-क्या नुकसान झेलना पड़ सकता है, वे बताने में लगे है।
पार्टी के वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी ने बयान दिया है कि गजेन्द्र सिंह को कोई नहीं जानता है और ना ही उनके अध्यक्ष बनने से किसी को फायदा होगा। भाटी ने दूसरे दावेदार केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल भी निशाना साधते हुए कहा कि वे ना तो पार्टी की नीति रीति समझते हैं और ना ही वे दलित वोटों को लुभाने की ताकत रखते हैं। एक तरह से जिस तेजी व मजबूती से गजेन्द्र सिंह का नाम उभरा है, उसी तेजी से उनका विरोध भी शुरु होने लगा है। एक तरह से विरोधियों ने संकेत दिए है कि उन्हें अध्यक्ष बनाया तो वे उनका सहयोग नहीं करेंगे। वसुंधरा राजे खेमा भी गजेन्द्र सिंह को पसंद नहीं कर रहा है। वे यह मानते है कि अगर गजेन्द्र सिंह या उनके गुट का अध्यक्ष नहीं बना तो विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण में ज्यादा दखल नहीं रह जाएगा, साथ ही संगठन पर भी पकड़ खत्म हो सकती है। एक तरह से उन्हें डर है कि दूसरे खेमे से प्रदेश अध्यक्ष बनने से प्रदेश में दूसरा पावर सेंटर खड़ा हो जाएगा। ऐसे में वसुंधरा राजे खेमा अपने गुट के दावेदारों को अध्यक्ष बनाने की जबरदस्त लॉबिंग में लग गया है।
इसी का नतीजा है कि छह दिन बाद भी पार्टी नेतृत्व राजस्थान भाजपा अध्यक्ष पद घोषित नहीं कर पा रहा है, जबकि मध्यप्रदेश भाजपा के लिए सांसद राकेश सिंह का नाम घोषित कर दिया था और उन्होंने पदभार भी संभाल लिया। वसुंधरा राजे खेमा यूडीएच मंत्री श्रीचंद्र कृपलानी, पूर्व मंत्री लक्ष्मी नारायण दवे और सुरेन्द्र पारीक को अध्यक्ष बनाए जाने के पक्ष में है। वहीं पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व अपनी पसंद का अध्यक्ष चाहता है जो वसुंधरा राजे खेमे को ना केवल टक्कर दे सके, बल्कि विधानसभा चुनाव में पार्टी की वापसी भी करवा सके। इसलिए पार्टी नेतृत्व फूंक-फूंक कर कदम उठाना चाहती है। ऐसे नेता को अध्यक्ष बनाने में लगी है, जो दूसरे खेमे को भी संतुष्ठ कर सके और पार्टी को मजबूती भी दे सके। अब देखना है कि पार्टी नेतृत्व किसके नाम पर मुहर लगाता है।