जयपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) विजयदशमी पर्व पर 92वें साल में प्रवेश कर जाएगा।
27 सितंबर 1925 को विजय दशमी के दिन महाराष्ट्र के मोहिते के बाड़े नामक स्थान पर संघ के प्रथम संघसंचालक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने इसकी स्थापना की थी। आज भले ही देश-दुनिया में संघ के करोड़ों स्वयं-सेवक है, लेकिन जब इसकी स्थापना की गई तो मात्र पांच स्वयं सेवक हेडगेवार के साथ थे। तब के पांच स्वयं सेवकों के साथ शुरू हुई विश्व की पहली शाखा आज 50 हजार से अधिक शाखाओ में बदल गई और ये 5 स्वयंसेवक आज करोड़ों स्वयंसेवकों के रूप में देश-दुनिया में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। संघ की विचार धारा में राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, हिंदू राष्ट्र, राम जन्मभूमि, अखंड भारत, समान नागरिक संहिता जैसे विजय है जो देश की समरसता की ओर ले जाता है। संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संस्थान है। 1975 में जब आपातकाल की घोषणा हुई तो तत्कालीन जनसंघ पर भी संघ के साथ प्रतिबंध लगा दिया गया। आपातकाल हटने के बाद जनसंघ का विलय जनता पार्टी में हुआ और केन्द्र में मोरारजी देसाई के प्रधानमन्त्रित्व में मिलीजुली सरकार बनी। 1975 के बाद से धीरे-धीरे इस संगठन का राजनीतिक महत्व बढ़ता गया और इसकी परिणति भाजपा जैसे राजनीतिक दल के रूप में हुई, जिसे आमतौर पर संघ की राजनीतिक शाखा के रूप में देखा जाता है। संघ की स्थापना के 75 वर्ष बाद सन् 2000 में प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन की सरकार भारत की केन्द्रीय सत्ता पर आसीन हुई।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की हमेशा अवधारणा रही है कि ‘एक देश में दो प्रधान, दो विधान, दो निशान नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगेÓ जब समूचे राष्ट्र और राष्ट्र के नागरिकों को एक सूत्र में बाधा गया है तो धर्म के नाम पर कानून की बात समझ से परे हो जाती है, संघ द्वारा समान नागरिक संहिता की बात आते ही संघ को सांप्रदायिक होने की संज्ञा दी जाती है। संघ ने हमेशा कई मोर्चों पर अपने आपको स्थापित किया है। राष्ट्रीय आपदा के समय संघ कभी यह नहीं देखता कि किसकी आपदा मे फसा हुआ व्यक्ति किस धमज़् का है। आपदा के समय संघ केवल और केवल राष्ट्र धर्म का पालन करता है कि आपदा में फ ंसा हुआ अमुख भारत माता का बेटा है। गुजरात में आये भूकम्प और सुनामी जैसी घटनाओ के समय सबसे आगे अगर किसी ने राहत कार्य किया तो वह संघ का स्वयंसेवक था। अब तक छह संघ-संचालक आरएसएस की बागडोर संभाल चुके हैं। सबसे पहले डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार, इसके बाद माधव सदाशिवराव गोलवलकर, मधुकर दत्तात्रय देवरस, प्रो. राजेंद्र सिंह, कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन, डॉ. मोहनराव मधुकर राव भागवत अभी वर्तमान में संघ का संचालन कर रहे हैं। संघ के विभिन्न अनुसांगिक संगठनों राष्ट्रीय सेविका समिति, विश्व हिंदू परिषद, भारतीय जनता पार्टी, बजरंग दल, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, राष्ट्रीय सिख संगत, भारतीय मज़दूर संघ, हिंदू स्वयंसेवक संघ, हिन्दू विद्यार्थी परिषद, स्वदेशी जागरण मंच, दुर्गा वाहिनी, सेवा भारती, भारतीय किसान संघ, बालगोकुलम, विद्या भारती, भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम सहित ऐसे संगठन कार्यरत है ,जो करीब 1 लाख प्रकल्पों को चला रहे हैं।
– ऐसे मूर्तरूप में आया संघ
जब डॉ. हेडगेवार को महात्मा गांधीजी के असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के कारण एक वर्ष का सश्रम कारावास मिला, तो उन्होंने बंदीगृह का उपयोग चिन्तन और विचार विमर्श के लिए किया। उनके चिन्तन का मूल बिन्दु यह था कि हम हिन्दू बल, विद्या, बुद्धि और कला-कौशल में संसार में किसी से कम न तो कभी थे और न आज हैं। फि र भी क्या कारण है कि दूर-दूर देशों से आये हुए मु_ीभर लुटेरों ने भी हमें दास बना लिया और हजारों वर्ष तक हम विदेशियों के गुलाम रहे? इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए उन्होंने अपने जेल के साथियों, नेताओं तथा अन्य बहुत से लोगों से विचार-विमर्श किया। सभी ने अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार इस प्रश्न का उत्तर दिया, परन्तु डाक्टर जी संतुष्ट नहीं हुए। अन्तत: वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि हिन्दू समाज का बिखरा होना ही हमारी अधिकांश समस्याओं का मूल कारण है। उन्होंने यह भी सोचा कि जब तक हिन्दू समाज संगठित नहीं होगा, तब तक या तो आजादी मिलेगी ही नहीं और यदि मिल भी गयी तो ज्यादा दिनों तक टिकेगी नहीं। इसलिए हिन्दू समाज का संगठित होना अत्यावश्यक है।
यों तो हिन्दू समाज में तब भी अनेक संगठन कार्य कर रहे थे, परन्तु सबकी दृष्टि संकीर्ण थी अर्थात वे एक विशेष वर्ग को संगठित करना चाहते थे। परन्तु डाक्टर साहब ने सोचा कि संगठन ऐसा होना चाहिए जिसमें सभी वर्गों के हिन्दू बेधड़क आ सकें और साथ-साथ प्रेमपूर्वक कार्य कर सकें। इसलिए उन्होंने संघ की कल्पना की। उनके मस्तिष्क में भगिनी निवेदिता की एक बात गूँज रही थी कि यदि हिन्दू प्रतिदिन केवल 10 मिनट भी सामूहिक प्रार्थना कर लें, तो ऐसी अजेय शक्ति उत्पन्न होगी, जिसे कोई तोड़ नहीं सकेगा। इसलिए डाक्टर साहब ने प्रतिदिन एक निश्चित स्थान पर एकत्र होकर एक घंटे प्रार्थना का कार्यक्रम करने का नियम बनाया।
उस समय तक संघ का कोई नाम भी नहीं रखा गया था। संघ का नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काफ ी बाद में सन् 1928 में रखा गया था और तभी डाक्टर साहब को उनके सहयोगियों द्वारा संघ का पहला सरसंघचालक नियुक्त किया गया। मात्र आधा दर्जन किशोर स्वयं सेवकों से प्रारम्भ हुआ संघ आज विशाल वटवृक्ष का रूप ले चुका है और संसार का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन माना गया है। इस समय भारत भर में 35 हजार से अधिक स्थानों पर संघ की दैनिक शाखायें और 10 हजार से अधिक स्थानों पर साप्ताहिक शाखाएँ लगती हैं। संघ का मूल स्वरूप दैनिक शाखाओं का है, लेकिन साप्ताहिक शाखाएँ ऐसे लोगों के लिए चलायी जाती हैं, जो संघ से जुडऩा तो चाहते हैं, पर प्रतिदिन नहीं आ सकते। इसी प्रकार कहीं-कहीं मासिक एकत्रीकरण भी होते हैं।
संघ में आने वालों को स्वयंसेवक कहा जाता है। इसका अर्थ है, अपनी ही प्रेरणा से समाज की नि:स्वार्थ सेवा करने वाला। संघ की कोई सदस्यता नहीं होती। शाखायें सबके लिए खुली हुई हैं। जो भी व्यक्ति इस देश को प्यार करता है और यहाँ की संस्कृति और महापुरुषों का सम्मान करता है, वह संघ की शाखाओं में आ सकता है। संघ में सभी जातियों के हिन्दू और बहुत से मुसलमान-ईसाई भी आते हैं। लेकिन संघ में एक-दूसरे की जाति पूछना या बताना मना है। सभी हिन्दू हैं, इतना ही हमारे लिए पर्याप्त है। संघ में महिलायें नहीं आतीं। वास्तव में महिलाओं के लिए संघ जैसा ही एक अलग संगठन है, जिसका नाम है राष्ट्र सेविका समिति। उसकी भी तमाम स्थानों पर दैनिक और साप्ताहिक शाखायें लगती हैं।