उदयपुर. राजस्थान के उदयपुर में श्रीनाथजी की नगर नाथद्वारा में होली पर बादशाही सवारी निकालने की परम्परा है। यह परम्परा औरंगजेब के शासनकाल से जुड़ी मानी जाती है। औरंगजेब ने मेवाड़ पर जब आक्रमण किया और नाथद्वारा तक पहुंचा। कहते हैं जब उसने वहां मंदिर तोडऩे का प्रयास किया तो सफ ल नहीं हो सका। मंदिर के दरवाजे पर वहां जड़वत् हो गया। उसके बाद उसने प्रभु श्रीनाथजी को एक हीरा भेंट किया। मान्यता है कि प्रभु श्रीनाथजी के सम्मान में बादशाह ने अपनी दाढ़ी से मंदिर के कमल चैक को बुहारा। इसी परम्परा के निर्वहन के लिए धुलण्डी पर बादशाही सवारी निकाली जाती है। इसमें बादशाह का स्वांग रचने वाला व्यक्ति दाढ़ी से कमल चैक को बुहारता है।
-लुप्त होती परम्परा
भगवान शिव के श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप के दर्शन करने के लिए नट के स्वरूप को धारण करने से जुड़ी ‘इलूजीÓ की परम्परा अब लुप्त हो रही है। उदयपुर शहर में भी ‘ईला जी का नीमÓ एक चैक है, जहां इस परम्परा का निर्वाह होता था जो पिछले सालों में बंद हो गया। दरअसल, इलूजी आज के जोकर शब्द का पर्यायवाची माना जा सकता है। मान्यता है कि भगवान शिव ऐसा ही रूप धारण करके श्रीकृष्ण की होली लीला के दर्शन को आए थे। इसी परम्परा के निर्वहन के लिए बच्चे इलूजी की सवारी निकालते थे। एक बच्चे को नीम के पत्तों के ही कपड़े पहनने होते थे। उसे गधे पर बिठाकर दूसरे बच्चे मस्ती करते हुए चलते थे। अब ऐसा नजारा नहीं मिलता।

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