कहा, भले ही पीड़ित अभिभावक सबूत नहीं पेश कर सके, लेकिन बच्चों को शिक्षा का अधिकार
उदयपुर। उदयपुर की स्थानीय अदालत ने एक निजी स्कूल के मामले में स्पष्ट और सख्त आदेश दिया है कि किसी भी बच्चे को फीस विवाद के चलते परीक्षा में बैठने से वंचित नहीं किया जाए। अदालत ने अपने फैसले में यह बात भी कही कि पीड़ित पक्ष इस बात का सबूत प्रस्तुत नहीं कर सके कि स्कूल द्वारा बच्चों को परीक्षा में बैठने से रोका जा रहा है, फिर भी बच्चों का यह शैक्षणिक अधिकार है कि वे परीक्षा में बैठें।
यह निर्णय उदयपुर सिविल न्यायाधीश (दक्षिण) शहर की अदालत ने सुनाया। मामला उदयपुर के सीडलिंग मॉडर्न पब्लिक स्कूल से जुड़ा हुआ है जहां फीस विवाद के चलते अभिभावकों पर मौखिक दबाव बनाया जा रहा था कि फीस नहीं जमा कराने पर बच्चों को परीक्षा में नहीं बैठाया जाएगा। पीड़ित अभिभावक श्रीमती भावना चुघ कोर्ट की शरण में पहुंची। उनके पुत्र व पुत्री दोनों उसी स्कूल में पढ़ते हैं।
न्यायायल ने अपने फैसले में उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश को अंकित करते हुए कहा कि उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है, जहां अभिभावकों व स्कूल प्रशासन के बीच स्कूल फीस को लेकर कोई विवाद हो तो उसका प्रभाव विद्यार्थियों की शिक्षा पर नहीं पड़ना चाहिए। 24 फरवरी 2022 को जारी आदेश में न्यायालय ने सीडलिंग स्कूल को अंतरित अस्थायी निषेधाज्ञा से पाबंद किया है कि वह बच्चों को परीक्षा बैठने से नहीं रोके। अभिभावक की तरफ से पैरवी अधिवक्ता राजेश जाजोदिया ने की।
– स्कूल अभिभावकों को कॉल रिकॉर्ड करने पर मजबूर न करें
न्यायालय के इस महत्वपूर्ण निर्णय के बाद राजस्थान अभिभावक संघ के संयोजक हरीश कुमार सुहालका व लीगल एडवाइजर रमन शर्मा ने संयुक्त रूप से बयान जारी किया है कि निजी स्कूल अभिभावकों को फोन रिकॉर्ड करने पर मजबूर न करें और सुप्रीम कोर्ट के फैसले की पालना करते हुए राजस्थान फीस एक्ट 2016 के अनुसार फीस का निर्धारण करें। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय एक अक्टूबर 2021 को सुनाया था, लेकिन निजी स्कूल अपनी मनमानी पर अड़े हैं और लगातार देश के सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना कर रहे हैं। अब उदयपुर के न्यायालय के इस निर्णय से अभिभावकों और बच्चों को और सम्बल मिला है। सुहालका ने कहा कि दरअसल, फीस एक्ट 2016 को लागू करने से कई निजी स्कूलों की फीसें आधी हो जानी वाली हैं, ऐसे में वे इस एक्ट की पालना करना ही नहीं चाहते हैं। उन्होंने राज्य सरकार और शिक्षा विभाग को भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत फीस एक्ट 2016 को सख्ती से लागू करवाने के लिए त्वरित एक्शन की मांग की।
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