नयी दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने देहरादून में वर्ष 2009 में एमबीए कर रहे 22 वर्षीय की फर्जी मुठभेड़ में हत्या करने के जुर्म में उत्तराखंड पुलिस के निलंबित सात कर्मियों की उम्र कैद की सजा आज बरकरार रखी। बहरहाल, अदालत ने निलंबित 10 अन्य पुलिस कर्मियों की दोषसिद्धी और उम्र कैद की सजा निरस्त कर दी। न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति आईएस मेहता की पीठ ने नौ जून 2014 को सात पुलिस कर्मियों को उम्र कैद की सजा सुनाने के निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। इन्हीं पुलिस कर्मियों ने तीन जुलाई 2009 को रनबीर सिंह की फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर दी थी। इस मामले में विस्तृत फैसले का इंतजार है क्योंकि न्यायाधीशों ने अपना निर्णय सुनाते समय सिर्फ इसका मुख्य अंश ही पढ़ा।
पुलिस कर्मियों ने अपनी अपील में आरोप लगाया था कि गाजियाबाद का रहने वाला रनबीर सिंह दो अन्य साथियों के साथ डकैती करने और उनमें से एक की सर्विस रिवॉल्वर छीनने के लिए देहरादून गया था।वे सभी तीन जुलाई 2009 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के दौरे के मद्देनजर सुरक्षा ड्यूटी पर थे।सीबीआई ने अदालत को बताया था मृतक तीन जुलाई 2009 को देहरादून नौकरी के लिए गया था और दोषियों की कहानी मनगढंत है।