जयपुर. राजस्थान को आखिरकार नया मुख्यमंत्री मिल ही गया। भजनलाल शर्मा राजस्थान के नए सीएम होंगे। इसके साथ ही उन तमाम चर्चाओं और अटकलों पर विराम लग गया जो दो बार की सीएम रह चुकीं वसुंधरा राजे को तीसरी बार प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाए जाने का दावा कर रहे थे। केंद्रीय नेतृत्व ने इस बार तीनों ही राज्यों में नए चहरे को मुख्यमंत्री बनाने के फॉर्मूले को अंजाम दिया है। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के नाम के ऐलान के साथ ही संकेत मिल गए थे कि राजस्थान में भी नए चहरे पर दांव खेला जाएगा। हुआ भी वही। नए चेहरे के इस नए फॉर्मूले के कारण वसुंधरा राजे का तीसरी बार मुख्यमंत्री का सपना टूट गया। केंद्रीय नेतृत्व ने इस बात के पहले ही संकेत दे दिए थे कि इस बार तीनों चुनावी राज्यों में 70 वर्ष से कम उम्र का ही मुख्यमंत्री बनाएंगे। मध्य प्रदेश में 58 वर्षीय मोहन यादव को और छत्तीसगढ़ में 59 वर्षीय विष्णुदेव साय को नया मुख्यमंत्री चुना गया है। इसके बाद भी ये लगभग तय हो गया था कि राजस्थान को भी 70 वर्ष से कम मिलेगा। हालांकि पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की वर्त्तमान उम्र ठीक 70 वर्ष है लेकिन लगभग तीन माह बाद मार्च में ही वे इस पड़ाव को पार करा जाएंगी। वसुंधरा का सीएम नहीं बन पाने का सबसे बड़े कारणों में से एक। दरअसल, हालिया चुनाव परिणाम आने और नए मुख्यमंत्री के चयन की कवायद के बीच वसुंधरा राजे और उनके सांसद पुत्र पर भाजपा के कुछ चुने हुए विधायकों कई बाड़ाबंदी के आरोप लगे थे। एक नवनिर्वाचित विधायक के पिता ने तो कोटा संभाग के विधायकों को जयपुर के एक रिज़ॉर्ट में रखे जाने की मीडिया के समक्ष खुलकर अपनी बात रखी थी। जयपुर में हुईं ये तमाम हलचलों की अपडेट्स ज़ाहिर है दिल्ली तक पहुंचीं, जो शीर्ष नेतृत्व की नाराज़गी का कारण भी बनी और उन्हें इस रेस से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। लगता है केंद्रीय नेतृत्व ने इस बार वसुंधरा राजे को तीसरी बार सीएम नहीं बनाने का इरादा ठान ही लिया था। शायद यही वजह रही कि राजे को इस बार के चुनाव में पार्टी का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित नहीं किया गया। भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कमल के निशान पर चुनाव लड़ा और कमीशन जीत लिया। बिना वसुंधरा के चेहरे से मिली जीत ने राजे को इस दौड़ में काफी पीछे छोड़ दिया। राजे पूर्व में कई बार केंद्रीय नेतृत्व को आंख दिखा चुकीं हैं। माना जा रहा है कि ऐसी स्थिति 5 वर्ष में ना आये इसलिए राजे केंद्रीय नेतृत्व के पसंदीदा नामों में शामिल नहीं रहीं। वैसे राजे राष्ट्रीय संगठन में उपाध्यक्ष भी हैं, ऐसे में उनकी भूमिका को संगठन में ज़्यादा उपयोगी मानी जा रही है।

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