delhi. उपराष्ट्रपति एम. वैंकेया नायडू ने मीडिया को सलाह दी है कि वह चुनावों के दौरान जनता को सुविज्ञ रूप से विकल्प तय करने में समर्थ बनाने के लिए एकदम तटस्थ रह कर दलों के प्रदर्शन के बारे में रिपोर्ट कार्ड प्रस्तुत करें. भारतीय जन संचार संस्थान द्वारा ‘’प्रबुध मतदाता को ढालने में मीडिया की भूमिका’’ विषय पर आज आयोजित प्रथम ‘अटल बिहारी वाजपेयी स्मृति व्याख्यान’ में उपराष्ट्रपति ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि अगर मीडिया राजनीतिक दलों का रिपोर्ट कार्ड प्रस्तुत करे और जनता राजनीतिक दलों से उनके वादों, संसाधनों में वृद्धि करने और उन्हें खर्च करने के तरीकों के बारे में हिसाब मांगे तो “हमारा देश दुनिया का सबसे विशाल लोकतंत्र होने के साथ-साथ सबसे अधिक जीवंत, स्वच्छ लोकतंत्रों में शुमार होने पर गर्व करेगा।‘’
नायडू ने कहा कि मीडिया को एक दर्पण की तरह कार्य करते हुए केवल सच्चाई का प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करना चाहिए, ना तो उसे किसी घटना को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना चाहिए, ना ही कम करके आंकना चाहिए तथा ना ही तथ्यों को तोड़ना-मरोड़ना चाहिए और ना ही उन्हें रहस्यमय बनाना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने “पेड न्यूज की बुराई” पर भी चिंता प्रकट की। उन्होंने पेड न्यूज के द्वारा बनाये गए विचारों और दृष्टिकोणों के माध्यम से मतदाताओं को रिझाने का जोखिम कम करने के लिए मीडिया को इस प्रवृत्ति से बचने की सलाह दी। उपराष्ट्रपति ने कहा कि वह चाहते हैं कि मीडिया एजेंडा सैट करने और किसी का पक्ष लेने की जगह, चुनावों से पहले मुद्दों और चुनौतियों का विश्लेषण करे।
उपराष्ट्रपति ने विभिन्न राजनीतिक संगठनों द्वारा प्रचारित की जा रही अफवाहों का खंडन करने और पाठकों और दर्शकों के सामने सही तथ्य प्रस्तुत करके फेक न्यूज के आगे पूर्ण विराम लगाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि तथ्य अटूट होते हैं और उनको बहुत ही तटस्थ रूप से प्रस्तुत किया जाना चाहिए तथा उनके बारे में राय कायम करने का जिम्मा जनता पर छोड़ दिया जाना चाहिए। मीडिया की बड़ी तादाद में मतदाताओं को प्रेरित करने में अहम भूमिका निभाने की समर्थता को देखते हुए श्री नायडू ने कहा कि चुनावों को ज्यादा विश्वसनीय और समावेशी बनाने के लिए धन बल और बाहुबल, चुनाव खर्च की सीमाओं का उल्लंघन, जाति और धर्म का सहारा लेना, उम्मीदवारों का आपराधिक चरित्र, पेड न्यूज और फेक न्यूज आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन, विधानसभाओं में महिलाओं के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व जैसे खतरों को जल्द मिटाने की जरूरत है।