जयपुर। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडु ने आज देश में प्रशासनिक सेवाओं के नैतिक पुनरुत्थान का आह्वान किया जिससे आम आदमी को सेवा प्रदान करने में सुधार लाया जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि विकास का लाभ लोगों तक पहुंचे।

इस संबंध में, उन्होंने भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहिष्णुता और शासन के सभी स्तरों पर पूर्ण पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने का आग्रह किया। यह देखते हुए कि भ्रष्टाचार लोकतंत्र के मर्म को नष्ट कर देता है, उन्होंने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत भ्रष्ट प्रशासनिक अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के खिलाफ सख्त और समयबद्ध कार्रवाई की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों से जुड़े भ्रष्टाचार से संबंधित मामलों के दीर्घ रूप से लंबित मामलों को प्राथमिकता के आधार पर शीघ्र निपटाने का आह्वान किया।

इसके साथ-साथ, नायडु ने सावधान किया कि वास्तविक सक्रिय कार्रवाई करने वाले प्रशासनिक अधिकारियों को हतोत्साहित या परेशान न किया जाए। उन्होंने कहा, “भ्रष्ट प्रशासनिक अधिकारियों से सख्ती से निपटा जाना चाहिए, लेकिन हमें अधिकारियों को व्यापक जनहित में निर्भीक निर्णय लेने से निरूत्साहित नहीं करना चाहिए।”

उपराष्ट्रपति आज उप-राष्ट्रपति निवास में झारखंड के पूर्व राज्यपाल और भारत सरकार के पूर्व कैबिनेट सचिव प्रभात कुमार द्वारा लिखित पुस्तक ‘लोक सेवा नैतिकता’ के विमोचन के अवसर पर संबोधित कर रहे थे। नायडु ने कहा कि समाज में नैतिक मूल्यों में सामान्य रूप से गिरावट आई है और उन्होंने ‘नैतिक भारत’ के लिए व्यापक आधार वाले सामाजिक आंदोलन का आह्वान किया।

इस संबंध में, नायडु ने ईमानदार प्रशासनिक अधिकारियों की उपलब्धियों का सम्मान करने और उनके योगदान की सराहना करने की अपील की। उन्होंने सुझाव दिया कि यह न केवल युवा अधिकारियों को उत्कृष्ट कार्य करने के लिए प्रेरित करने के लिए एक प्रोत्साहन होगा, बल्कि इस तरह के प्रचार से दूसरे भी ऐसा करने के लिए प्रेरित होंगे। उन्होंने मीडिया को स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों के ऐसे योगदान को रेखांकित करने और उन्हें प्रोत्साहित करने की सलाह दी।

उद्यमी प्रशासनिक अधिकारियों के साथ काम करने के अपने अनुभव का स्मरण करते हुए, नायडु ने कहा कि स्वच्छ भारत जैसे कार्यक्रमों में कई युवा अधिकारी अपने काम में नवोन्मेषण लाते रहे हैं।

इसके अतिरिक्त, उपराष्ट्रपति ने सार्वजनिक जीवन में शुचिता सुनिश्चित करने के लिए सभी प्रशासनिक अधिकारियों को मूल्य आधारित प्रशिक्षण के महत्व का भी उल्लेख किया।  उन्होंने कहा कि पेशागत नैतिकता सभी प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में अभिन्न अंग होनी चाहिए। उन्होंने द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर प्रशासनिक अधिकारियों के लिए एक व्यापक आचार संहिता की अपील की।

एक नैतिक और जन-उत्साही प्रशासनिक अधिकारी के गुणों का वर्णन करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि एक आदर्श अधिकारी को अपने अधिकार क्षेत्र में मुद्दों की शून्य विचाराधीनता सुनिश्चित करनी चाहिए, कार्यालय में शुचिता और सत्यनिष्ठा के उच्चतम गुणों को प्रदर्शित करना चाहिए, लोगों के लिए सरकार द्वारा कदम उठाने में सक्रिय होना चाहिए और सबसे बढ़कर समाज के सीमांत वर्गों के ध्येय के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।

‘सुशासन’ के लिए ‘अच्छे संस्थानों’ के महत्व को प्रदर्शित करते हुए, नायडु ने कहा कि देरी को कम करने और सेवाओं की समय पर प्रदायगी सुनिश्चित करने के लिए हमारे संस्थानों की रूपरेखा फिर से तैयार करने और प्रक्रियाओं को युक्तिसंगत बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने सेवाओं में मानव इंटरफेस को कम करने के लिए आईटी का अधिक से अधिक उपयोग करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि इस तरह की प्रक्रियाओं से न केवल गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि विशेषाधिकार को कम करने तथा सेवारत अधिकारियों के हितों के टकराव में भी कमी आएगी।

 

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