दिल्ली. उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडु ने मानव अधिकार समूहों की आलोचना करते हुए कहा कि वे मानव अधिकारों के मामले में दोहरे विचार रखते हैं। नई दिल्ली में लावासिया सम्मेलन के समापन समारोह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि हिंसक समूहों द्वारा मानव अधिकार उल्लंघन के मामले में मानव अधिकार समूह या तो उनका बचाव करते है या चुप्पी साधे रहते हैं। वे शांति को बढ़ावा देने वाले तथा कानूनों को लागू करने वाले राज्य की हमेशा आलोचना करते हैं। यह उनकी दोहरी मानसिकता को दिखाता है।
नायडु ने कहा कि किसी भी रूप में हिंसा या आतंक की आलोचना होनी चाहिए और इसे कानून के दायरे में सख्ती से निपटा जाना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि उच्चतम न्यायालय ने देश में मानव अधिकार के संदर्भ में अच्छे निर्णय लिए हैं। आपातकाल के बाद से सर्वोच्च न्यायालय मानव अधिकारों के एक प्रमुख संरक्षक के रूप में उभरा है। इसने एशिया प्रशांत क्षेत्र के देशों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया है।
नायडु ने कहा कि कानून सामाजिक बदलाव का एक उपकरण है। जनहित याचिका के माध्यम से न्यायपालिका मानव अधिकार के जटिल मामलों को सुलझा रही है। भारत सरकार और न्यायपालिका के सम्मिलित प्रयासों से संवैधानिक लक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
नायडु ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की शक्तियों और कार्यों के संदर्भ में स्पष्ट विभाजन रेखाओं का उल्लेख किया है। उन्होंने सलाह देते हुए कहा कि सरकार के इन तीनों अंगों के बीच के संतुलन को बनाए रखा जाना चाहिए और किसी भी अंग द्वारा दूसरे अंग के कार्य क्षेत्र में दखल नहीं देना चाहिए। सम्मेलन में लैंगिक समानता, मानव अधिकार और नई तकनीकों पर चर्चाएं हुई।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि मानव अधिकार के संबंध में भारत की प्रतिबद्धता असंदिग्ध है। इस अवसर पर लावासिया के अध्यक्ष क्रिस्टोफर लियोंग, बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. ललित भसीन, लावासिया के उपाध्यक्ष श्याम दीवान और आयोजन समिति के अन्य सदस्य भी उपस्थित थे।