– मनीष गोधा
जयपुर. प्रदेश की राजनीति में एक एफआईआर ने जिस बवंडर के आने के संकेत दिए है, उसकी जड़ में सरकार की ओर से अनायास ही आया एक जवाब है। ऐसा लग रहा है कि इस जवाब पर भाजपा ने विधानसभा में हल्ला करवा एक ट्रैप रचा और फिलहाल सरकार उस ट्रैप में फंसी दिख रही है। हालांकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के राजनीतिक कौशल से हम सब परिचित हैं, इसलिए कह सकते हैं कि पिक्चर अभी खत्म नहीं हुई है और शह और मात का ये खेल खासा दिलचस्प होने वाला है।
कहानी शुरू होती है विधानसभा के पिछले सत्र में भाजपा के विधायक कालीचरण सराफ के सवाल से। यह सवाल सरकार के सियासी संकट के समय की गई कथित फोन टैपिंग से जुडा हुआ था। सरकार ने फोन टैंिपंग स्वीकार की, लेकिन जवाब बहुत हद गोलमाल और सरकारी था, क्योंकि जिस मंतव्य से सवाल पूछा गया था, उसका जवाब इसमें नहीं था। सरकार ने यह नहीं बताया कि फोन टैपिंग किसी की और कब हुई।
बहरहाल भाजपा ने सरकार की स्वीकारोक्ति को ही पकड़ लिया और लगता है कि यहीं से इस ट्रैप की शुरूआत हुई। दिल्ली में बैठे पटकथा लेखकों ने विधानसभा में हल्ला मचवाया। सरकार को अगले दिन जवाब देने को मजबूर कराया। सम्भवतः भाजपा नेता यह मान कर चल रहे थे कि सरकार कुछ तो बोलेगी और जो बोलेगी, उसी के आधार पर इस ट्रैप का अगला सीन लिखा जाएगा।
विधानसभा में संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल ने बहुत खुल कर जवाब दिया और यह स्वीकार कर गए कि हां…… मुख्यमंत्री के ओएसडी ने आॅडियो वायरल किए थे। धारीवाल यू ंतो काफी मंझे हुए नेता माने जाते हैं, लेकिन अब जो कुछ हो रहा है, उसे देखते हुए लगता है कि उनसे चूक हुई, क्योंकि इस ट्रैप के रचियता यही चाहते थे। विधानसभा में जो बोला गया, उससे ज्यादा प्रामाणिक कुछ नहीं हो सकता।
सरकार के जवाब के साथ ही ट्रैप का अगला सीन तैयार हो गया और दिल्ली के एक थाने में एफआईआर दर्ज हो गई। एफआईआर दर्ज होते ही जो हल्ला होना था, वह हो रहा है। सियासत के इस शतरंज की एक बडी चाल चली जा चुकी है। अब देखना यह है कि इसका जवाब क्या आता है। फिलहाल यहां की सरकार फंसी दिख रही है।
इसके कुछ अहम कारण यह है-
– सरकारी मुख्य सचेतक ने यहां जो केस दर्ज कराया था, वह एफआर लगा कर बंद कर दिया गया है। अब फिर से केस खोला तो जा सकता है, लेकिन उससे सरकार को हासिल कुछ नहीं होगा।
– जिन तीन लोगों के नाम आॅडियो में होने का दावा किया गया था, उनमें से दो भंवरलाल शर्मा और विश्वेन्द्र सिंह से सरकार वाॅयस सैम्पल लेगी या ले सकती है, ऐसा मौजूदा हालात में सम्भव नहीं दिख रहा।
– प्रदेश में तीन सीटों के उपचुनाव होने हैं। सरकार के तीन विधायकों के दिवंगत होने के कारण अभी इसकी सदस्य संख्या 104 है। ऐसे में दो सीट हारने का मतलब है स्थिति कमजोर होना, हालांकि गहलोत समर्थक दस निर्दलीय विधायक पुख्ता तौर पर उनके साथ हैं, लेकिन राजनीति में कुछ भी सम्भव है।
– केस दिल्ली में दर्ज किया गया है। सरकार ने सीबीआई के आने पर तो रोक लगा रखी है, लेकिन दूसरे राज्य की पुलिस के आने और जांच करने पर रोक नहीं है और दिल्ली पुलिस केन्द्र सरकार के अधीन आती है। इसके मायने हम सब समझ सकते हैं।
– सबसे बडा सवाल जिस पर जांच होनी है, कि मुख्यमं़त्री के ओएसडी के पास आॅडियो कहां से आए?
तो फिलहाल भले ही सरकार के लिए कुछ संकट दिख रहा हो, लेकिन अब नजर इस बात पर ही है कि राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले अशोक गहलोत क्या पासा फेंकते हैं। उनके तरकश में ऐसा कुछ ना कुछ जरूर होगा जो इसकी काट करे क्योंकि इसमें कोई शक नहीं है कि प्रदेश और देश की राजनीति को उनसे बेहतर कोई नहीं जानता। यही कारण है कि आने वाला समय प्रदेश की राजनीति में खासा दिलचस्प दिख रहा है।