-जितेन्द्र शर्मा
जयपुर। घोटालों को लेकर अपनी अलग ही पहचान बना चुके जलदाय विभाग अधिकारियों का एक और बड़ा खेल सामने आया है। एक एनजीओ को फायदा पहुंचाने के लिए विभाग के अधिकारियों पर न केवल करोड़ों के टेंडर की शर्तों के साथ छेड़छाड़, बल्कि मोटे कमीशन के लिए टेंडर की सौदेबाजी भी कर डाली। टेंडर को लेकर कई जगह शिकायत होने के बाद भी विभाग के अधिकारियों ने सभी शिकायतों को नजर अंदाज करते हुए एनजीओ को वर्क आॅर्डर देने की पूरी तैयारी कर ली थी, लेकिन विभाग में इस करोड़ों के खेल को लेकर मुख्यमंत्री और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में शिकायत पहुंचने के बाद विभाग को यह वर्क आॅर्डर रोकना पड़ा। पिछले कई महिनों से ये वर्क आॅर्डर अटका पड़ा है और एनजीओ की ओर से अधिकारियों पर दबाव बनाया जा रहा है, कि वर्क आॅर्डर जारी किया जाए। लेकिन विभाग के अधिकारी वर्क आॅर्डर जारी करने की स्थिति में नहीं होने के कारण बड़े परेशान चल रहे हैं। वर्क आॅर्डर को लेकर विभाग के अधिकारी इतने परेशान क्यों है ये तो वो ही बता सकते हैं। हां लेकिन जब टेंडर को लेकर इतनी शिकायतें हो चुकी है और मामला मुख्यमंत्री और एसीबी तक पहुंच चुका है तो फिर विभाग टेंडर को फाइल करने की बजाए एनजीओ को देने पर क्यों तुला है। क्या इस टेंडर में विभाग के अधिकारियों की वाकई में कोई सौदेबाजी हुई, जो इस विवादित टेंडर का वर्क आॅर्डर एनजीओ को देने पर तुले हैं।
दरअसल ये सारा मामला है जलदाय विभाग के ़वाटर सप्लाई एण्ड सेनीटेशन आॅगेर्नाईजेशन की निविदा सोशियल मोबिलाईजेशन एण्ड बिहेवियर चेंज एक्टीविटिज इन राजस्थान से जुड़ा हुआ है, जिसमें नुक्कड़ नाटक, स्कूल रैली, चित्रकला प्रतियोगिता, स्कूल बालसभा, स्व्च्छता सर्वे, वॉल पैंटिंग, पंचायत और जिला स्तरीय जल जागरूकता कार्यशालाओं का आयोजन किया जाना है। डब्ल्यूएसएसओ की ओर से 12 अक्टूबर, 2017 को सोशियल मोबिलाईजेशन को लेकर 25.54 करोड़ की एक ही निविदा निकाली। निविदा में विभाग की ओर से जानबूझकर शर्तों में बदलाव किया, ताकि एक चहेती फर्म को पूरा काम दिया जा सके। डब्ल्यूएसएसओ के निदेशक अरूण श्रीवास्तव ने निविदा की प्री-बिड मीटिंग का आयोजन किए बिना ही मर्जी से मापदण्ड और शर्तों में बदलाव कर दिया। डब्ल्यूएसएसओ की ओर से जो निविदा तैयार की गई, वो उत्तरप्रदेश की एक एनजीओ वेलफेयर एण्ड इलुस्ट्रेशन आॅफ नीडि ग्रामीण सोसायटी (विंग्स) के लिए तैयार की गई थी। निविदा में जो मापदण्ड और शर्तें निर्धारित किए गए, वे विंग्स संस्था के कार्यों के अनुभवों को आधार मानकर तैयार की गई, जिसकी शिकायत निविदा जारी करते समय हुई, लेकिन विभाग के अधिकारियों ने इसे नजरअंदाज कर दिया। और बाद में जो शिकायत हुई वो सही भी साबित हुई, निविदा में सिर्फ एक ही एनजीओ विंग्स की शर्तों की पालना कर पाई। डब्ल्यूएसएसओ की ओर से इससे पहले वर्ष 2013 में भी इसी तरह के कार्यों की 20 करोड़ लागत की निविदा आमंत्रित की गई थी। डब्ल्यूएसएसओ की ओर से 11 जिलों की इन आईपीसी गतिविधियों की निविदाओं को पांच भागों में विभाजित कर निविदाएं निकाली थी, ताकि अच्छा कम्पीटिशन हो और समय पर कार्य पूरे हो सके। क्योंकि देश में इतने संसाधन और मैनपावर किसी भी एनजीओ के पास नहीं होता, जो एक साथ पूरे प्रदेश में इस तरह की गतिविधियां कर सके। डब्ल्यूएसएसओ के निदेशक अरूण श्रीवास्तव की ओर से वर्ष 2017 की निविदा में इन सभी मापदण्डों और परिस्थितियों को नजरअंदाज करते हुए जानबूझकर निविदा में ऐसी शर्तें और मापदण्ड डाले, जिनकी पालना सिर्फ विंग्स एनजीओ ही कर सकती थी। निविदा में कार्यों को सबलेट करने की छूट भी शामिल कर ली गई, ताकि एनजीओ द्वारा प्रदेश की अन्य एनजीओ को कार्य सबलेट किया जा सके। साथ ही फर्म के कार्यों में कमी होने पर कोई कार्रवाई नहीं हो और भुगतान नहीं रोका जा सके, इसके लिए निविदा शर्तों में प्रस्तावित कार्यों की मॉनीटरिंग किसके द्वारा की जाएगी और कार्यों का भुगतान किसके सत्यापन के बाद किया जाएगा, इसका कोई जिक्र ही नहंी किया गया। निविदा में एक एनजीओ को लाभ पहुंचाने के लिए किए गए इस खेल को लेकर जलदाय मंत्री सुरेन्द्र गोयल, प्रमुख शासन सचिव रजत मिश्र तक भी शिकायत पहुंची, लेकिन मिलीभगत के इस खेल कोई कार्रवाई नहीं हुई, और एनजीओ को काम देने की पूरी तैयारी कर ली। कार्रवाई नहीं होने पर मुख्यमंत्री कार्यालय, लोकायुक्त और एसीबी तक शिकायतें पहुंचने के बाद आलाधिकारियों ने फिलहाल वर्क आॅर्डर देने पर रोक लगा दी है। विंग्स एनजीओ की ओर से डब्ल्यूएसएसओ अधिकारियों पर वर्क आॅर्डर जारी करने का लगातार दबाव बनाया जा रहा है। लेकिन विभाग के आलाधिकारी खुद को बचाने के लिए वर्क आॅर्डर जारी करने से बच रहे हैं।
विवादित निविदा फाइल करने की बजाए वर्क आॅर्डर पर क्यों अड़े हैं अधिकारी ?
डब्ल्यूएसएसओ की ओर से जारी 25.54 करोड़ लागत की निविदा के जारी होते ही शिकायतें शुरू हो गई थी। निविदा को लेकर प्री-क्वालीफिकेशन मीटिंग का आयोजन नहीं करने पर भी बड़े सवाल खड़े हुए। निविदा जारी होने के साथ विंग्स एनजीओ को कार्य मिलने का खुलासा हो गया। इतना ही नहीं इस निविदा की सौदेबाजी के आरोप लगने के बाद भी विभाग के अधिकारियों ने सभी शिकायतों को नजर अंदाज करते हुए निविदा को खोल ही दिया। निविदा में गड़बड़ी को लेकर मुख्यमंत्री, लोकायुक्त और एसीबी में शिकायत होने के बाद विभाग के आलाधिकारियों ने निविदा का वर्क आॅर्डर जारी नहीं किया। अब सवाल उठता है कि निविदा शुरू से ही विवाद और शिकायतों में फंस जाने और कई स्तर पर शिकायत पहुंचने के बाद भी डब्ल्यूएसएसओ के निदेशक निविदा को फाइल करने की बजाए वर्क आॅर्डर जारी करवाने के लिए क्यों प्रयासरत है। जबकि विभाग में कई छोटी-छोटी शिकायतें सामने आने के बाद भी निविदाओं को फाइल कर दिया जाता है, तो फिर डब्ल्यूएसएसओ के निदेशक को ऐसा क्या मिलने वाला है, जो वो इस निविदा को फाइल करने की सिफारिश करने की बजाए वर्क आॅर्डर जारी कराने की जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं।
शर्तें लगाकार एब्ल्यूएसएसओ ने क्यों रोका निविदा का कम्पीटिशन
जलदाय विभाग एक तरफ आॅनलाइन निविदा प्रक्रिया को लेकर पूरी पारदर्शिता का दावा करता है, दूसरी तरफ खुद की निविदाओं में मनमर्जी की शर्तें लगाकर कम्पीटिशन को रोकता है। डब्ल्यूएसएसओ की 25.54 करोड़ की निविदा में भी ऐस ही हुआ। विभाग की ओर से निविदा में ऐसी शर्तें लगा दी, जो प्रदेश की एक भी एनजीओ पूरा नहीं कर सकती थी। ये निविदा शर्तें यूपी की एनजीओ विंग्स के मापदण्डों के अनुसार तैयार की गई थी। शर्तें लगाने के साथ ही प्रदेश की अन्य एनजीओ को कैसे पता चल गया कि ये निविदा यूपी की एनजीओ विंग्स के लिए तैयार किया गया है। और उन्हें ये भी कैसे पता चल गया कि यह निविदा विंग्स एनजीओ को ही मिलेगी। जब निविदा खुलने से पहले ही सबको पता चल गया कि यह निविदा विंग्स एनजीओ को मिलेगी, तो फिर इस टेंडर में गोपनीयता और पारदर्शिता कहां रही।
42 करोड़ से घटाकर 25.54 करोड़की निकालनी पड़ी निविदा
दअरसल डब्ल्यूएसएसओ के निदेशक अरूण श्रीवास्तव की ओर से चहेती एनजीओ को ज्यादा फायदा पहुंचाने के लिए पहले मनमर्जी से बिना बजट के प्रावधान के ही 42 करोड़ रूपए की निविदा का प्रस्ताव तैयार कर लिया गया। डब्ल्यूएसएसओ के सीनियर अकाउंट आॅफिसर द्वारा एतराज जताए जाने पर उन्होंने फाइन को बाईपास करते हुए सीधे ही आलाधिकारियों से फाइल को एप्रूव्ड करने के लिए भेज दिया। आलाधिकारी दबाव में प्रस्ताव को पास करने की तैयारी कर चुके थे, लेकिन विभाग के तत्कालीन वित्तीय सलाहकार ने प्रस्ताव पर डब्ल्यूएसएसओ के अकाउंट अधिकारी के कमेंट्स नहीं होने पर एतराज जताते हुए फाइल को वापस लौटा दिया। मजबूरीवश डब्ल्यूएसएसओ के निदेशक अरूण श्रीवास्तव को प्रस्ताव में बदलाव करना पड़ा और बजट के प्रावधान के अनुसार 25.54 करोड़ लागत की निविदा का प्रस्ताव बनाकर भेजना पड़ा।
एक एनजीओ को फायदा देने के लिए सबलेट की छूट
डब्ल्यूएसएसओ की ओर से निविदा में विंग्स एनजीओ को फायदा पहुंचाने के लिए कार्यों को सबलेट करने की छूट दी गई। इसके लिए डब्ल्यूएसएसओ निदेशक अरूण श्रीवास्तव ने लिए कार्य का नाम ही बदल दिया गया। क्योंकि विंग्स एनजीओ यूपी की संस्था है और राजस्थान में एनजीओ का कोई भी कार्यालय नहीं है, ऐसे में फर्म द्वारा बिना संसाधन और मैनपावर जुटाए बिना ही प्रदेश की छोटी एनजीओ से कार्य करवाने के लिए निविदा में कार्यों को सबलेट करने की शर्त डलवाई गई। जबकि इससे पहले वर्ष 2013 में इसी तरह के कार्यों में सबलेट करने की छूट नहंी दी गई थी।