-दिनेश चंद्र शर्मा
जयपुर। बदलता मौसम जहां एक ओर ताजगी और रोमानियत का अहसास होने लगता है वही बदलता मौसम बीमारियों के आगमन का समय भी होता है। बदलते मौसम में मच्छडर जनित बीमारियां अधिक पनपती है। डेंगू बुखार भी ऐसी ही मच्छौर जनित बीमारी है जिससे मौसम का मजा खराब हो जाता है। मलेरिया की भांति ही डेंगू के भी कई रूप है। इनमें डेंगू हेमरेजिक बुखार के बाद की तीसरी अवस्था डेंगू आघात सिंड्रोम है। डेंगू आघात सिंड्रोम को डेंगू शॉक सिंड्रोम (डीएसएस) भी कहा जाता है। यह डेंगू की सबसे खतरनाक स्थिति होती है। आइए जानते है डेंगू आघात सिंड्रोम के बारे में।
डेंगू आघात सिंड्रोम
डेंगू वायरस के तीन मुख्य प्रकार हैं। एक व्यक्ति अपने जीवनकाल में सिर्फ एक बार ही किसी खास प्रकार के डेंगू से संक्रमित होता है। यदि वही व्यमक्ति दूसरी बार डेंगू से ग्रसित होता है तो वह डेंगू के दूसरे रूप से ग्रसित होगा। हालांकि डॉक्टरों के मुताबिक ये जरूरी भी नहीं है लेकिन आमतौर पर यही डेंगू बुखार को लेकर यही मिथ बना हुआ है। साधारण डेंगू में मरीज थोड़े समय बाद अपनेआप ही ठीक हो जाता है यानी इस प्रकार के डेंगू में कोई खास फर्क नहीं पड़ता और इससे मृत्यु भी नहीं होती। लेकिन यदि डेंगू हेमरेजिक बुखार (डीएचएफ) और डेंगू आघात सिंड्रोम (डीएसएस) है और इसका तुरंत उपचार शुरू नहीं किया जाता तो ये दोनो ही डेंगू मरीज के लिए घातक हो सकते है। इसीलिए समय रहते डेंगू के स्वुरूप का पता लगाना बहुत आवश्यकक है। जब रोगी डेंगू आघात सिंड्रोम से ग्रसित होता है तो कई बार उसका बचना नामुमकिन हो जाता है।
आमतौर पर डेंगू की गंभीर और तीसरी अवस्था को डेंगू आघात सिंड्रोम कहा जाता है। डेंगू आघात सिंड्रोम की पहचान रोगी में कुछ लक्षणों को देखकर की जाती है।
मरीज तेज कंपकंपी के साथ पसीने से तर हो जाता है।आघात सिंड्रोम की स्थिति आते ही मरीज के शरीर पर पडऩे वाले लाल चकते अधिक गहरे हो जाते है और उनमें खुजली होने लगती है। रोगी की नब्जों पर दबाव कम पडऩे लगता है साथ ही नब्जे सामान्यम से कम चलती है।अधिक ठंड के साथ-साथ शरीर में बेचैनी होने लगती है। इसके अलावा साधारण और हेमरेजिक बुखार के लक्षणों के बावजूद संक्रमित व्यक्ति हर समय बेचैन रहने लगता है। मरीज धीरे-धीरे अपने होश तक खोने लगता है। जिससे मरीज को मानसिक आघात पहुंचने का भी खतरा रहता है। मरीज का ब्लड प्रेशर बहुत कम हो जाता है। डेंगू बुखार में लगतार बदलते लक्षणों और परिवर्तनों के दौरान समय-समय पर शारीरिक जांच करवानी चाहिए। डॉक्टर्स से परामर्श कर रक्तो जांच भी करवानी चाहिए।
डेंगू बुखार एडीस नामक मच्छर के काटने से फैलता है। एडीस मच्छर तो सिर्फ डेंगू का वाहक होता है लेकिन असली काम डेंगू परजीवी करते हैं। जिनसे संक्रमित व्यक्ति की जान भी जा सकती है। आइए जानते है कैसे डेंगू से जान का खतरा बना रहता है।
बुखार हर उम्र के व्यक्ति को हो सकता है, लेकिन छोटे बच्चों और बुजुर्गों को ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है। साथ ही दिल की बीमारी के मरीजों का भी खास ख्याल रखने की जरूरत होती है। डेंगू बुखार के लक्षण आम बुखार से थोड़े अलग होते हैं। इसमें बुखार बहुत तेज होता है। साथ में कमजोरी हो जाती है और चक्कर आते हैं। डेंगू के दौरान मुंह का स्वाद बदल जाता है और उल्टी भी आती है। सिरदर्द के साथ ही पूरा बदन दर्द करता है। डेंगू में गंभीर स्थिति होने पर कई लोगों को लाल-गुलाबी चकत्ते भी पड़ जाते हैं। अक्सर बुखार होने पर लोग घर में ‘क्रोसिनÓ जैसी दवाओं से खुद ही अपना इलाज करते हैं। लेकिन डेंगू बुखार के लक्षण दिखने पर थोड़ी देर भी भारी पड़ सकती है। लक्षण दिखने पर तुरंत अस्पताल जाना चाहिए। नहीं तो ये लापरवाही रोगी की जान भी ले सकती है। डेंगू ज्वर में नाक, मुंह व दांतों में रक्ताव के साथ तेज बुखार हो जाता है और मरीज के बुखार का स्तर 105 डिग्री तक भी जा सकता है, जिसका सीधा असर मस्तिष्क पर भी पड़ता है। डीएचएस पॉजीटिव जांच के बाद मरीज को प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत होती है। यदि ऐसा न किया जाए तो वह किसी घातक बीमारी का शिकार हो सकता है या फिर रोगी की मृत्यु भी हो सकती है।इंटरनेशनल मेडिकल एसो. के मुताबिक अगर डेंगू के मरीज का प्लेटलेट्स काउंट 10,000 से ज्यादा हो तो प्लेटलेट्स ट्रांसफ्यूजन की जरूरत नहीं होती और ना ही यह खतरे का संकेत है। लेकिन अगर डेंगू के मरीज का प्लेटलेट्स काउंट 10,000 से कम होने लगें तो खतरनाक हो सकता है। डेंगू संक्रमित व्यक्ति अगर पानी पीने और कुछ भी खाने में परेशानी महसूस करता है और बार-बार कुछ भी खाते ही उल्टी करता है तो डीहाइड्रेशन का खतरा हो जाता है। इससे लीवर का खतरा हो सकता है। प्लेटलेट्स के कम होने या ब्लड प्रेशर के कम होने या खून का घनापन बढऩे को भी खतरे की घंटी मानना चाहिए। साथ ही अगर खून आना शुरू हो जाए तो तुरंत अस्पताल ले जाना चाहिए। सामान्यत: डेंगू से ग्रसित होने वाले सभी लोगों को इससे खतरा होता है। खासतौर पर जब साधारण डेंगू बुखार के बजाय रोगी में आघात सिंड्रोम के लक्षण पाए जाते है। डेंगू बुखार होने पर सफाई का ध्यान रखने की जरूरत होती है। इलाज में खून को बदलने की जरूरत होती है इसलिए डेंगू के दौरान कुछ स्वस्थ व्यक्तियों को तैयार रखना चाहिए जो रक्तदान कर सकें। डेंगू की गंभीर व तीसरी अवस्था को डेंगू शॉक सिंड्रोम कहा जाता है, जिसके तेज कपकपाहट के साथ मरीज को पसीने आते हैं। इस अवस्था में इलाज की देरी मरीज की जान ले सकती है। शॉक सिंड्रोम की स्थिति आने तक मरीज के शरीर पर लाल चकत्ते के दाग स्थाई हो जाते हैं, जिनमें खुजली भी होने लगती है।जरूरी नहीं हर तरह के डेंगू में प्लेटलेट्स चढ़ाए जाएं, केवल हैमरेजिक और शॉक सिंड्रोम डेंगू में प्लेटलेट्स की जरूरत होती है। जबकि साधारण डेंगू में जरूरी दवाओं के साथ मरीज को ठीक किया जा सकता है। इस दौरान ताजे फलों का जूस व तरल चीजों का अधिक सेवन तेजी से रोगी की स्थिति में सुधार ला सकता है।
डेंगू वायरस के प्रकार
डेंगू वायरस चार भिन्न-भिन्न प्रकारों के होते हैं। यदि किसी व्यक्ति को इनमें से किसी एक प्रकार के वायरस का संक्रमण हो जाये तो आमतौर पर उसके पूरे जीवन में वह उस प्रकार के डेंगू वायरस से सुरक्षित रहता है। हलांकि बाकी के तीन प्रकारों से वह कुछ समय के लिये ही सुरक्षित रहता है। यदि उसको इन तीन में से किसी एक प्रकार के वायरस से संक्रण हो तो उसे गंभीर समस्याएं होने की संभावना कापी अधिक होती है। डेंगू आमतौर पर डेन1, डेन2, डेन3 और डेन4 सरोटाइप का होता है। 1 और 3 सरोटाइप के मुकाबले 2 और 4 सेरोटाइप कम खतरनाक होता है। टाइप 4 डेंगू के लक्ष्णों में शॉक के साथ बुखार और प्लेट्लेट्स में कमी, जबकि टाइप 2 में प्लेट्लेट्स में तीव्र कमी, हाईमोरहैगिक बुखार, अंगों में शिथिलता और डेंगू शॉक सिंडरोम प्रमुख लक्षण हैं। डेंगू की हर किस्म में हीमोरहैगिक बुखार होने का खतरा रहता है, लेकिन टाइप 4 में टाइप 2 के मुकाबले इसकी संभावना कम होती है। डेंगू 2 के वायरस में गंभीर डेंगू होने का खतरा रहता है।
डेंगू से बचाव के तरीके
डेंगू की रोकथाम के लिए जरुरी है कि डेंगू के मच्छरों के काटने से बचे और इन मच्छरों के फैलने पर नियंत्रण रखा जाए। डेंगू के मच्छरों को कंट्रोल करने के लिए उसके पनपने की जगहों को ही नष्ट कर देना चाहिए। एडीज एजिप्टी मच्छर ज्यादातर दिन में काटते हैं ऐसे में पानी के कंटेनर खाली कर दें और जिन जगहों पर पानी के जमा होने की उम्मीद हैं वहां कीटनाशकों का उपयोग करें।रोजाना मच्छरदानी लगाकर सोएं और पूरे कपड़े पहनकर रहें. मच्छर ना काटें इसके लिए क्रीम लगाकर रखें। घर में और घर के आसपास साफ-सफाई रखें क्योंकि गंदगी में डेंगू के मच्छरों के पनपने की आशंका बढ़ जाती है. कचरे के डिब्बे को हमेशा ढककर रखें।
डेंगू वायरस से जल्द निजात पाने के लिए इसके लक्षणों को पहचान कर सही समय पर डॉक्टर की सलाह लें. डेंगू के उपचार में अगर अधिक देरी हो जाए तो यह डेंगू हेमोरेजिक फीवर का रूप ले लेता है।