जयपुर। भारतीय क्रिकेट में पिछला एक महीने का घटनाक्रम अगर देखा जाए तो ऐसा लगता जैसे क्रिकेट से ज्यादा क्रिकेट की राजनीति हावी हो रही है। भारत ने चैम्पियन ट्रॉफी में शानदार प्रदर्शन किया। मगर फाइनल में पाकिस्तान के हाथों हारने से उसकी काफी फजीहत हुई यही वजह थी कि इसके तुरन्त बाद वेस्टइंडीज दौरे को लेकर क्रिकेट प्रेमियों में कोई उत्साह नहीं था। इस दौरे में भारतीय क्रिकेट की दुर्दशा जारी जारी रही। वेस्टइंडीज जैसी कमजोर टीम के सामने भारत की बल्लेबाजी की कलाई खुल गई रहाणे को छोड़कर कोई बल्लेबाज अपनी ख्याति के अनुसार नहीं खेल पाए और आखिरी टी-२० में और भी बूरे हालात रहे क्योंकि लुईस जिस तरह से भारतीय गेंदबाजी के धुर्रे उड़ाए वह कहने की जरूरत नहीं है।

अब भारतीय कप्तान की बात करें तो उन्हे अनिल कूंबले से दिक्कत होने लगी और नतीजा यह निकला की कूबंलेे ने अपनी अपना बडप्पन दिखाते हुए पहले ही इस्तीफा दे दिया। आखिर सवाल यह उठता है क्या कोहली को ऐसा कोच चाहिए जो उसके हिसाब से चले जो वह चाहे वहीं वो करे, अगर ऐसा है तो फिर यह क्रिकेट के हित में नहीं है क्योंकि कोई भी खिलाड़ी खेल से बड़ा नहीं होता है। अगर खिलाड़ी खेल में इतना हस्तक्षेप करे तो यह क्रिकेट के लिए अच्छा नहीं है रवि शास्त्री के नाम पर इसीलिए सहमति बन पाई की विराट उन्हें पसंद करते या मान लिजिए की शायद शास्त्री विराट की हां हां मिलाते रहें होंगे। इसिलिए शास्त्री विराट की पहली पसंद बने। अब देखना है कि विराट और शास्त्री की जोड़ी क्या कुछ नया कर पाती है भारतीय क्रिकेट के लिए फिलहाल तो स्थितियां कुछ अच्छी नहीं है।

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