-दिनेश चंद्र शर्मा
जयपुर। टीबी (क्षय रोग, तपेदिक या ट्यूबरकुलोसिस) और मधुमेह में सीधा संबंध हैं। जिन लोगों को टाइप-2 मधुमेह होता है उनके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। इसलिए मधुमेह के रोगी में संक्रमण होने की संभावना बढ जाती है और उन लोगों में संक्रमणकारी रोगों के होने की संभावना ज्यादा होती है। जिनमें सांस संबंधी रोग विशेषकर ट्यूबरकुलोसिस या तपेदिक प्रमुख है। मधुमेह और टीबी से ग्रसित लोगों पर दवाइयों का असर कम होता है और ऐसे लोगों को मल्टी ड्रग रेजीस्टेंनस-टीबी या एमडीआर-टीबी होने का खतरा भी बढ जाता है।
क्या कहता है शोध
विभिन्न शोधों के अनुसार जिन लोगों में ब्लड शुगर की मात्रा ज्यादा दिनों तक बढी रहती है उनमें ट्यूबरकुलोसिस या टीबी होने का खतरा बढ जाता है, और जिन लोगों को टाइप-2 मधुमेह और टीबी दोनों हो उनमें टीबी की दवाइयों का असर धीरे-धीरे और देरी से होता है। ऐसे लोगों को मल्टी ड्रग रेजीस्टेंट-टीबी का खतरा बढ जाता है। इन दोनों बीमारियों से ग्रस्त लोगों की रोग-प्रतिरोधक (इम्यून सिस्ट्म) क्षमता कम हो जाती है।
मधुमेह और टीबी में संबंध
मधुमेह रोगियों में ब्लड शुगर अधिक दिनों तक रहता जिससे टीबी की संभावना ज्यादा होती हैएमडीआर-टीबी (टीबी का प्रकार) के रोगियों में सबसे प्रभावकारी तपेदिक की दवाइयां कारगर नहीं होती हैं। एमडीआर-टीबी का इलाज लंबे समय तक होता है। टाइप-2 मधुमेह से ग्रसित लोगों में 6 प्रतिशत तक को एमडीआर-टीबी हो सकता है और 30 प्रतिशत एमडीआर-टीबी से ग्रसित लोगों में मधुमेह होने की ज्यादा संभावना होती है।
मधुमेह में आदमी का शरीर इंसुलिन का उचित ढंग से इस्तेमाल नहीं कर पाता है और यदि मधुमेह नियंत्रित न किया गया तो इसके परिणाम खतरनाक हो सकते हैं जिसकी वजह से नसें, आंख की रेटीना, और रक्त वाहिनियां भी प्रभावित हो सकती हैं।
टाइप-2 मधुमेह से ग्रस्त लोगों में टीबी का खासकर दवा-प्रतिरोधक क्षमता वाले टीबी बैक्टीरिया का खतरा ज्यादा होता है। तपेदिक उन लोगों में ज्यादा होने की संभावना होती है जो शराब और अन्य-नशीले और मादक पदार्थों का सेवन करते हैं। टाइप-2 मधुमेह रोगियों को टीबी न होने पर भी तपेदिक की जांच करानी चाहिए और टीबी के मरीजों को मधुमेह नहीं होने पर भी डायबिटीज की जांच करानी चाहिए।भीड-भाड़ वाले इलाकों में बिना साफ-सफाई के रहने वाले लोगों को तपेदिक ज्यादा होने की संभावना होती है और जो लोग भीड-भाड़ वाले इलाकों में नहीं रहते हैं और मादक पदार्थों का सेवन नहीं करते हैं उनको टाइप-2 मधुमेह होने की संभावना ज्यादा होती है। मधुमेह रोग संक्रमण से नहीं होता है लेकिन मधुमेह रोगियों के शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम होने से संक्रमणकारी रोगों (जिसमें टीबी प्रमुख है) के होने का खतरा बढ जाता है। शरीर में जब इंसुलिन हार्मोन उत्पन्न नहीं होता है तब मधुमेह होता है इसके विपरीत टीबी एक संक्रमणकारी रोग है। लेकिन टाइप-2 मधुमेह रोगियों को उपचार के दौरान टीबी के लिए सजग रहना चाहिए। टीबी आशंका होने पर तुरंत उसी जांच करानी चाहिए। टीबी और एमडीआर-टीबी दोनों का इलाज संभव है।
मधुमेह और मुंह की दुर्गंध
मधुमेह की समस्या होने पर कई प्रकार की स्वास्थ्य मस्यायें होने लगती हैं, मुंह के दुगंज़्ध
की समस्या भी इससे जुड़ी है। सामान्यतया मुंह से आने वाली दुर्गंध के पीछे लोग अपने खान-पान को मानते हैं। यह सही भी है, लेकिन अगर व्यक्ति मधुमेह से ग्रस्त है तो इसके लिए यह बीमारी भी जिम्मेदार हो सकती है। इसके अलावा मधुमेह के रोगियों में दांत से जुड़ी दुसरी तकलीफें भी बढ़ जाती हैं। इस लेख में विस्तार से जानिये मधुमेह और मुंह की दुर्गंध के बीच के संबंध के बारे में।
सांसों की दुर्गंध की समस्या मधुमेह के रोगियों में अधिक हो सकती है। क्योंकि मधुमेह रोगियों को मुंह से संबंधित कई समस्यायें हो सकती है। दरअसल हमारे दांत की एलविओलर हड्डी तथा पीरियोडेन्टल लिगामेंट्स मांसपेशियों से एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। ऐसे व्यक्ति जिनका मधुमेह पर नियंत्रण नहीं हो पाता हैं, उनके पीरियोडेन्टल लिगामेंट्स कमजोर होने लगते हैं।
इससे दांतों के बीच एक खाली जगह बन जाती है और खाने के पश्चात खाने के कुछ अंश इन दांतों में रह जाते हैं और इनको नुकसान पहुंचाते हैं। इसके कारण ही दांतों और मसूड़ों में जीवाणु पैदा हो जाते हैं, जिससे गंभीर स्थिति पैदा हो जाती है और मुंह से दुर्गंध आने लगती है। इसक अलावा व्यक्ति मधुमेह के साथ पायरिया से भी ग्रस्त हो सकता है। ऐसी स्थिति में दांत कमजोर होने शुरू हो जाते हैं और कई बार मसूड़ों में सूजन और तेज दर्द भी शुरू हो जाता है।
दूसरे संक्रमण भी होते हैं
मधुमेह के मरीजों को मुंह से संबंधित दूसरी समस्यायें भी होने लगती हैं, इसका प्रमुख कारण है दांतों के साथ मसूड़ों में संक्रमण होना। इसकी वजह से बाद में दांतों को उखाडऩा भी पड़ता है। मधुमेह के रोगियों के दांतों का रंग भी बदल जाता है, जो काला या फिर गहरा भूरा हो जाता है। मसूड़ों में होने वाले छोटे-छोटे छिद्रों से बैक्टीरिया या अन्य संक्रमण भी हो सकता है, जो खून में मिल कर अन्य छोटी-छोटी बीमारियों का कारण बनते हैं। मधुमेह से ग्रस्त मरीजों में मधुमेह से होने वाले अन्य रोग कितनी जल्दी होंगे, यह बात मधुमेह के रोगियों के खून में उपस्थित शुगर की मात्रा पर निर्भर करती है। इस बात का ध्यान रहे कि सिर्फ मुंह की ही देखभाल से मधुमेह की बीमारी पर नियंत्रण नहीं पाया जा सकता। इसके लिए अनुशासित व नियंत्रित दिनचर्या एवं खानपान पर विशेष ध्यान रखने की जरूरत है।
मुंह की दुर्गंध से बचाव
मधुमेह के कारण होने वाली मुंह की दुर्गंध को कुछ हद तक दूर किया जा सकता है। इसके लिए दांतों की सफाई पर विशेष ध्यान दीजिए, दिन में कम से कम दो बार ब्रश कीजिए। ढेर सारा पानी पीजिए, इससे शरीर के विषाक्त पदार्थ निकलेंगे और शरीर के साथ मुंह भी स्वस्थ रहेगा। माउथवॉश और जेल का प्रयोग न करें, क्योंकि इसमें एल्कोहल होता है और इसके कारण मुंह की बदबू बदतर हो सकती है। डायबिटीज के मरीजों को अपने ब्लड शुगर की जांच नियमित रूप से करनी चाहिए, नियमित व्यायाम के साथ खानपान पर विशेष ध्यान देना चाहिए।