जयपुर। राजस्थान की तीन सीटों अलवर, अजमेर और मांडलगढ़ में भाजपा की करारी हार ने राज्य भाजपा इकाई और पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व में सकते में ला दिया है। लोकसभा में पच्चीस की पच्चीस सीट और विधानसभा में 163सीटें देने वाले राजस्थान में चार साल में ही ऐसा क्या हो गया कि जनता भाजपा सरकार से इतनी नाराज हो गई कि तीनों सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों को इतनी करारी शिकस्त दी है।
अलवर में तो हार का आंकडा दो लाख वोटों से कुछ ही कम रह पाया है तो अजमेर में भी अस्सी हजार वोटों से दिग्गज जाट नेता सांवर लाल जाट के बेटे रामस्वरुप लांबा को हराया है। मांडलगढ़ की त्रिकोणीय मुकाबले में फंसी सीट को भाजपा आसानी से जीत मान रही थी, लेकिन वहां भी तेरह हजार वोटों से मात मिली है भाजपा प्रत्याशी को। इन भारी भरकम हारों ने यह तो साबित कर दिया कि जनता तो सरकार और पार्टी से नाराज है, साथ ही कार्यकर्ता उससे भी अधिक नाराज दिख रहा है। इसी वजह अलवर व अजमेर की वे शहरी पांच सीटें है, जहां भाजपा हमेशा से ही जीतती आई है। वहां भी बड़े अंतर से भाजपा को हार झेलनी पड़ी है। इन हार के कारणों की तह तक पहुंचने के लिए पार्टी ने आज मुख्यमंत्री कार्यालय में मीटिंग रखी गई है।
केन्द्रीय नेतृत्व ने प्रभारी वी.सतीश को भेजा है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी, संगठन महामंत्री चन्द्रशेखर व कुछ प्रमुख नेता व मंत्री पहले मीटिंग करके हार के कारणों की समीक्षा कर रहे हैं। इसके बाद कोर कमेटी सदस्य और तीनों सीटों व विधानसभावार सीटों के प्रभारियों व विधायकों, मंत्रियों की बैठक होगी। सत्रह सीटों पर पन्द्रह मंत्रियों को जीत की जिम्मेदारी दे रखी थी, लेकिन सभी सीटों पर भाजपा प्रत्याशी पिछड़ गए और कांग्रेस आगे रही। शाम तक चलने वाले इस गहन मंथन में क्या रिजल्ट आता है, यह समय बताएगा, लेकिन यह तय है कि कार्यकतार्ओं की नाराजगी दूर नहीं हुई और धरातल पर काम नहीं दिखा तो विधानसभा चुनाव में भी पार्टी को कुछ इस तरह की करारी हार झेलनी पड़ सकती है।