रिटायर्ड इंस्पेक्टर ने पेश किया था परिवाद
जयपुर। बिना आधार एवं बिना सबूतों के आरोप लगाते हुए निचली अदालत में पेश किए गए परिवाद को जांच के लिए अशोक नगर थाने में भेजने के आदेश को अपील कोर्ट एडीजे-15 में जज बरकत अली ने अपास्त कर दिया है। अदालत ने एसीएमएम-8 जयपुर मेट्रो के 4 फरवरी, 2०17 को दिए गए आदेश को विधिक एवं तथ्यात्मक त्रुटि बताया है। इस आदेश को लेकर तत्कालीन डीजीपी मनोज भर और एडीजी डी.सी. जैन ने चुनौती देकर रद्द करने की मांग की थी। प्रार्थी-निगरानीकार के एडवोकेट बी.एस. चौहान ने कोर्ट में दलील दी कि परिवाद स्वीकार कर अनुसंधान के लिए थाने में भेजना प्रसंज्ञान लेना है। झूठे आरोप लगाते हुए पेश किए गए परिवाद पर सुनवाई करने से पहले सरकार से अभियोजन स्वीकृति लेना अनिवार्य है। निगरानीकार की पूर्व में किए गए कार्य पदीप निर्वहन में किए गए कार्य थे। साथ ही एससी-एसटी एक्ट में 2०15 में किए गए संशोधन के बाद अब स्पेशल एससी-एसटी कोर्ट ही ऐसे परिवाद को ग्रहण करने, प्रसंज्ञान लेकर जांच के लिए भिजवाने के लिए अधिकृत है। निचली अदालत ने नियमों और कानूनों के विरुद्ध परिवाद की जांच करने के आदेश दिया है, जो अपास्त किए जाने योग्य है। इससे पूर्व राज्य सरकार ने भी उक्त परिवाद को रद्द करने का प्रार्थना पत्र पेश किया था। जिसे कोर्ट ने 25 अप्रेल को लोकस स्टैण्डाई नहीं होने पर खारिज कर दिया था। बाद में मनोज भर और डीसी जैन की ओर से अलग-अलग रिवीजन पेश की गई। जिन्हें कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। अदालत ने मामले में केवल दोनों ही निगरानीकारों को राहत दी है। राज्य सरकार की ओर से कोर्ट में लोक अभियोजक राजेश पारीक ने पैरवी की ।
यह है मामला : सेवानिवृत पुलिस इंस्पेक्टर हरसहाय मीणा ने 27 सितम्बर, 2०16 को अदालत में परिवाद पेश कर विभिन्न पुलिस अफसरों पर ड्यूटी के दौरान प्रताड़ित करने का आरोप लगाया। अदालत ने सीआरपीसी की धारा 2०० में परिवादी के बयान दर्ज कर धारा 2०2 में जांच के लिए अशोक नगर थाने में भेज दिया था। जिसकी जांच एसीपी अशोक नगर कर रहे हैं। आदेश को डीजे कोर्ट में चुनोैती दी गई। अपील कोर्ट ने आदेश में निगरानीकार की सभी दलीलों को स्वीकार करते हुए निचली कोर्ट के जांच करने के आदेश को रद्द कर दिया।