राजस्थान में फिर से कोयले की कमी से बिजली संकट गहरा गया है। कोयले की कमी के चलते प्रदेश के बिजलीघरों की कई यूनिट्स बंद है। कारण तकनीकी बताया जा रहा है, लेकिन वजह कोयला नहीं मिलना है। सरकार को ना राज्यों और ना ही केन्द्र सरकार से पर्याप्त कोयला मिल पा रहा है और ना ही आपूर्ति हो पा रही है। जिसके चलते बिजली यूनिट्स प्रभावित हो रही है, वहीं बिजली संकट भी मंडराने लगा है। गर्मी बढऩे के साथ ही प्रदेश में बिजली की डिमांड भी काफी बढ़ गई। डिमांड के मुकाबले तीनों बिजली कंपनियां बिजली की आपूर्ति नहीं कर पा रही है। कोयले की कमी कोढ़ में खाज साबित हो रही है। कोयला नहीं मिलने के कारण बिजली संकट फिर से आना पड़ा है। अब सरकार ने बिजली आपूर्ति सही तरीके से हो सके, इसके लिए विदेशों से कोयला खरीदने जा रही है। विदेश से कोयला खरीदना महंगा साबित होगा। इससे बिजली घरों को कोयला तो मिल जाएगा, लेकिन महंगा कोयले की मार उपभोक्ताओं की जेब पर पडऩे वाली है। महंगा कोयला खरीद में जो अतिरिक्त खर्चा आएगा, वह बिजली बिलों से निकाला जाएगा। बताया जाता है कि प्रति यूनिट एक रुपये बिजली महंगी हो सकती है। यानि हर महीने पांच सौ से एक हजार रुपये का बिजली बिल अधिक होने की संभावना है। क्योंकि गर्मी में वैसे ही बिजली खपत ज्यादा होने लगी है। किसी भी सामान्य घर में तीन सौ से पांच सौ यूनिट बिजली बिल सामान्य बात है। इस बार बिजली संकट ज्यादा लग रहा है। कोयले का पूरा स्टॉक नहीं मिलने के कारण सूरतगढ़, कालीसिंध, कोटा थर्मल जैसे पावर प्लांट में बिजली प्रोडक्शन गड़बड़ाया हुआ है। प्रदेश के बिजलीघरों में केवल 3 से 4 दिन का ही कोयला स्टॉक बचा है, जबकि गाइडलाइंस के मुताबिक 26 दिन का कोयला स्टॉक होना चाहिए। प्रदेश में बिजली की खपत बढ़कर 25 करोड़ यूनिट प्रतिदिन के पार पहुंच चुकी है, जबकि पिछले साल रोजाना औसत खपत 19 करोड़ 90 लाख यूनिट थी। यकायक तेजी गर्मी से बिजली की खपत बढ़ गई। इसका असर यह हो रहा है कि अलग-अलग क्षेत्रों में बिजली की अघोषित कटौती भी होने लगी है। इसकी सर्वाधिक मार ग्रामीण क्षेत्रों में हो रही है। वहां बिजली कटौती ज्यादा हो रही है। वो भी अनियमित तरीके से। बिजली खपत लगातार बढऩे से ट्रिपिंग और फ ाल्ट के मामले भी बढऩे लगे हैं। कोयले की सप्लाई गड़बड़ाते ही कभी भी बिजलीघरों में प्रोडक्शन में रुकावट आ सकती है। केन्द्र के बाद हाल ही में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की छत्तीसगढ़ सीएम भूपेश बघेल से रायपुर में मुलाकात के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने राजस्थान को पारसा ईस्ट कांटे बेसिन और पारसा कोल ब्लॉक एक्सटेंशन से खनन की मंजूरी दे दी है। इन नए माइन ब्लॉक्स से कोयला खनन होने के बाद राजस्थान तक सप्लाई होने में करीब एक महीने लग सकता है। तब तक बिजली संकट बरकरार रहता है। बार-बार कोयले की कमी से बिजली संकट बना हुआ है। इसकी मार उपभोक्ताओं पर पड़ रही है। ऐसे हालात में सरकार को चाहिए कि वह पहले से ही कोयला खरीद की व्यवस्था रखे और तय सीमा में स्टॉक को मेंटेन रखे। चाहे इसके लिए दूसरे राज्यों या विदेश कोयला खरीदने पड़े। ऊर्जा के दूसरे ोत सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा को बढ़ावा देने की कवायद तेज करनी होगी। खासकर सौर ऊर्जा के प्लांट घरों पर लगाने के लिए सरकार को सब्सिडी ज्यादा देनी चाहिए, ताकि लोग इसे अपना सके। इसका फायदा यह होगा कि लोग सोलर प्लांट लगाने के लिए आगे आएंगे। इससे बिजली खपत कम होगी और ज्यादा बिजली मिलने पर सरकार को आपूर्ति भी हो सकेगी।

LEAVE A REPLY